दहेज, फिजूलखर्च शादी और प्री-वेडिंग पर विराम: हिंदू जीवनशैली में होगा बदलाव! काशी विद्वत परिषद ने नई हिंदू आचार संहिता की जारी

काशी विद्वत परिषद ने हिंदू परंपराओं में सुधार और सामाजिक संतुलन की दिशा में पहल करते हुए एक नई हिंदू आचार संहिता जारी की है। 400 पन्नों के इस दस्तावेज में दहेज, फिजूलखर्ची, ब्रह्मभोज, विवाह, मंदिरों की मर्यादा और धर्म में वापसी जैसे विषयों पर स्पष्ट दिशानिर्देश दिए गए हैं। यह संहिता अक्टूबर 2025 से पूरे देश में लागू की जाएगी।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 25 July 2025, 10:26 AM IST
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Varanasi News: काशी विद्वत परिषद ने हिंदू समाज में अनुशासन और परंपराओं के संरक्षण के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए नई हिंदू आचार संहिता का ऐलान किया है। यह 400 पन्नों की संहिता 11 प्रमुख और 3 सहायक टीमों द्वारा तैयार की गई है, जिसमें उत्तर और दक्षिण भारत के 70 से अधिक विद्वानों ने मिलकर योगदान दिया।

दहेज, फिजूलखर्ची और विवाह समारोहों में बदलाव

संहिता में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि दहेज लेना और देना पूर्ण रूप से वर्जित है। विवाह जैसे पवित्र संस्कार को अब दिन में वैदिक विधि से सम्पन्न करने की सलाह दी गई है, ताकि रात्रिभोज और अन्य दिखावटी परंपराओं से दूरी बनाई जा सके। इसके साथ ही प्री-वेडिंग शूट, महंगी सजावट और सगाई जैसे आधुनिक आयोजनों को हतोत्साहित किया गया है।

ब्रह्मभोज में सीमित मेहमान, पाखंड पर प्रहार

अंतिम संस्कार के बाद होने वाले ब्रह्मभोज में अब अधिकतम 13 लोगों को ही आमंत्रित करने की सिफारिश की गई है। इससे न केवल आर्थिक बोझ कम होगा, बल्कि सादगी और शुद्धता का संदेश भी समाज को मिलेगा।

धर्म में वापसी की आसान प्रक्रिया

जो लोग किसी दबाव, लालच या भ्रमवश हिंदू धर्म छोड़ चुके हैं, उनके लिए अब धर्म में वापसी को आसान बनाया गया है। वे व्यक्ति अब अपने मूल गोत्र, नाम और रीति-रिवाजों के साथ फिर से हिंदू समाज का हिस्सा बन सकेंगे। इस प्रक्रिया को पूरी तरह से सम्मानजनक और वैदिक ढांचे में रखने की बात कही गई है।

मंदिरों की मर्यादा सुनिश्चित करने के दिशा-निर्देश

संहिता के अनुसार, अब मंदिरों के गर्भगृह में केवल पुजारियों और संतों को ही प्रवेश मिलेगा। आम श्रद्धालुओं के प्रवेश पर संयम और नियमबद्धता सुनिश्चित की जाएगी, जिससे धार्मिक स्थल की पवित्रता और परंपरा सुरक्षित रहे।

शास्त्रीय आधार और सांस्कृतिक संतुलन

इस नई आचार संहिता को तैयार करने में मनुस्मृति, पराशर स्मृति, देवल स्मृति, भगवद्गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अंशों का गहन अध्ययन और उपयोग किया गया है। यह प्रयास परंपरा और आधुनिकता के संतुलन को ध्यान में रखकर किया गया है।

अक्टूबर 2025 से देशभर में होगा लागू

काशी विद्वत परिषद के महासचिव राम नारायण द्विवेदी ने बताया कि संहिता को अंतिम रूप देने से पहले 40 से अधिक बैठकें आयोजित की गईं। यह दस्तावेज अक्टूबर 2025 में शंकराचार्यों, रामानुजाचार्यों और प्रमुख संतों की स्वीकृति के बाद आधिकारिक रूप से लागू किया जाएगा। इसकी 5 लाख प्रतियां देशभर में वितरित की जाएंगी, ताकि समाज में व्यापक जागरूकता फैलाई जा सके।

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