The MTA Speaks: बिहार चुनाव में सियासी दलों के सामने टिकट बंटवारे की चुनौतियां, जानिए सत्ता का नया समीकरण

बिहार चुनाव 2025 की तारीखों के ऐलान के साथ ही राज्य की सियासत में हलचल मच गई है। दो चरणों में मतदान 6 और 11 नवंबर को होगा, जबकि नतीजे 14 नवंबर को आएंगे। एनडीए और महागठबंधन दोनों में सीट बंटवारे पर तनातनी जारी है।

Post Published By: Nidhi Kushwaha
Updated : 9 October 2025, 9:22 AM IST
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Patna: चुनाव आयोग ने जैसे ही बिहार चुनाव 2025 की तारीखों का ऐलान किया, पूरे राज्य की राजनीति में एक बार फिर उबाल आ गया है। गांव-गांव में चर्चा अब इस बात की है कि कौन किस दल के टिकट पर मैदान में उतरेगा और अगली बार सत्ता की चाबी आखिर किसके हाथों में होगी। बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों पर मतदान दो चरणों में होगा, जिसमें पहले चरण में 6 नवंबर को 121 और दूसरे चरण में 11 नवंबर को 122 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। नतीजे 14 नवंबर को आएंगे।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks  में आगामी बिहार चुनाव को लेकर सटीक विश्लेषण किया।

पारदर्शिता और निष्पक्षता की पूरी तैयारी

इस बार चुनाव आयोग ने पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए लगभग 1 लाख से अधिक बूथों पर सीसीटीवी निगरानी की व्यवस्था की है और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की ट्रैकिंग के लिए नई डिजिटल मॉनिटरिंग तकनीक अपनाई है। राज्य भर में करीब 6.9 करोड़ मतदाता इस बार लोकतंत्र के महापर्व में भाग लेंगे।

राजनीतिक दलों की चाहत थी कि छठ पर्व के तुरंत बाद एक ही चरण में मतदान हो ताकि बड़ी संख्या में प्रवासी बिहारी अपने गांव लौटकर वोट डाल सकें, लेकिन आयोग ने सुरक्षा, लॉजिस्टिक और त्योहारों के बीच मतदान कर्मियों की तैनाती के कारण इसे दो चरणों में कराने का निर्णय लिया। बिहार के लाखों लोग दिल्ली, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के राज्यों में काम करते हैं और छठ पर घर लौटते हैं, इसलिए यह मुद्दा राजनीतिक विमर्श के केंद्र में है।

इन दो प्रमुख ध्रुवों पर टिकी बिहार की राजनीति

बिहार की राजनीति फिलहाल दो प्रमुख ध्रुवों पर टिकी है, एनडीए और महागठबंधन, लेकिन दोनों के भीतर ही सीट बंटवारे को लेकर भारी खींचतान चल रही है। एनडीए में इस बार भाजपा, जदयू, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) शामिल हैं। जबकि महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, वाम दल, भाकपा-माले, भाकपा, माकपा और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) प्रमुख घटक के रूप में हैं।

एनडीए खेमे में चिराग पासवान और जीतनराम मांझी सीटों को लेकर अड़ गए हैं। चिराग पासवान कम से कम 30 से 35 सीटों की मांग कर रहे हैं और कहते हैं कि लोकसभा में उनकी पार्टी के पांच सांसद हैं, इसलिए विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व भी उसी अनुपात में होना चाहिए। बीजेपी और जदयू ने उन्हें अब तक 25 सीटों का ऑफर दिया है, लेकिन चिराग इसे अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत के साथ न्याय न होने की बात कहकर ठुकरा रहे हैं। ब्रह्मपुर और गोविंदगंज जैसी परंपरागत सीटों पर उनकी विशेष नजर है।

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दूसरी ओर, जीतनराम मांझी की पार्टी ‘हम’ 16 से 18 सीटों की मांग कर रही है, हालांकि अंदरखाने यह माना जा रहा है कि मांझी 10 से 12 सीटों पर समझौता कर सकते हैं। उनका तर्क है कि इतनी सीटें चाहिए ताकि उनकी पार्टी को राज्य स्तरीय दल का दर्जा मिल सके, जिसके लिए विधानसभा में कम से कम सात विधायक होना जरूरी है। बीजेपी और जदयू दोनों को यह समझाना आसान नहीं है क्योंकि दोनों दल अपने-अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।

महागठबंधन की रणनीति

महागठबंधन की तरफ रुख करें तो यहां भी स्थिति उतनी ही उलझी हुई है। तेजस्वी यादव चाहते हैं कि उनकी पार्टी आरजेडी कम से कम 130 सीटों पर लड़े। कांग्रेस पिछली बार 70 सीटों पर लड़ी थी, लेकिन इस बार 50 से 55 सीटों पर राजी हो गई है। समस्या वहां से शुरू होती है जहां वीआईपी और वाम दलों की मांगें टकराती हैं। मुकेश सहनी की वीआईपी 30 सीटों से कम पर मानने को तैयार नहीं है, जबकि भाकपा-माले ने अपनी पिछली जीत के आधार पर कम से कम 30 सीटों की मांग की है।

माले का कहना है कि जब वीआईपी जैसी पार्टी, जिसके पास न विधायक हैं न सांसद, को 20 सीटें दी जा सकती हैं तो 12 विधायक और दो सांसदों वाली पार्टी को कम सीटें देना अन्याय होगा। भाकपा और माकपा ने भी अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग रखी है। भाकपा ने 24 सीटों का दावा किया है जबकि माकपा ने छह से अधिक सीटों पर आग्रह किया है, खासकर बेगूसराय की मटिहानी सीट जहां से उसके पुराने प्रत्याशी नरेंद्र कुमार सिंह इस बार राजद के टिकट पर मैदान में उतरने की तैयारी में हैं।

महागठबंधन लगातार कर रहा बैठक

महागठबंधन की बैठकों का दौर तेजस्वी यादव के आवास पर लगातार जारी है। मंगलवार को भाकपा महासचिव डी. राजा ने तेजस्वी से मुलाकात कर 24 पसंदीदा सीटों की सूची सौंपी और कहा कि महागठबंधन में मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई मतभेद नहीं है। सभी दलों की सहमति से तेजस्वी यादव ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी बिहार में अपने लिए 12 सीटों की मांग रखी है, खासकर संथाल परगना की सीमा से सटे इलाकों में जहां उनका प्रभाव माना जाता है।

पिछले चुनाव का कैसा रहा हाल?

पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2020 के परिणामों को देखें तो तब एनडीए ने 125 सीटें जीती थीं, जिनमें भाजपा को 74, जदयू को 43, और वीआईपी व हम को 4-4 सीटें मिली थीं। महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं, जिनमें राजद 75, कांग्रेस 19 और माले 12 सीटों पर सिमटी थी। उस समय एनडीए और महागठबंधन के वोट शेयर में सिर्फ 0.03 प्रतिशत का अंतर था। यानी कांटे की टक्कर। इसलिए इस बार भी मुकाबला बेहद रोचक होने वाला है।

हालांकि इस बार समीकरण पिछले चुनाव से काफी अलग हैं। 2020 के बाद से जदयू और बीजेपी के बीच तालमेल में कई बार तनाव देखने को मिला है। जदयू के भीतर यह असंतोष है कि केंद्र की राजनीति में उनकी भूमिका घट रही है, जबकि भाजपा ने राज्य में अपनी पकड़ मजबूत की है। नीतीश कुमार ने भले हाल के महीनों में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की पुष्टि की है, लेकिन उनके बयान अब भी राजनीतिक व्याख्याओं के केंद्र में हैं।

तेजस्वी यादव ने चुनावी एजेंडे

इधर, महागठबंधन में तेजस्वी यादव ने अपनी छवि को युवा और निर्णायक नेता के रूप में पेश करने की कोशिश की है। उन्होंने बेरोजगारी, कृषि संकट, शिक्षा और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों को चुनावी एजेंडे में शामिल किया है। वहीं भाजपा ने मोदी सरकार की उपलब्धियों और केंद्र से बिहार को मिले विशेष पैकेज को प्रमुखता से उठाने का फैसला किया है।

बिहार चुनाव में नया समीकरण

इस चुनाव में एक नया समीकरण भी उभर रहा है- प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी। प्रशांत किशोर, जो पहले कई दलों के चुनावी रणनीतिकार रहे, अब खुद अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं। उन्होंने पिछले दो वर्षों में राज्य के 30 से अधिक जिलों की यात्रा की है और दावा किया है कि “इस बार बिहार को नई सोच चाहिए।” हालांकि जनसुराज की चुनावी ताकत कितनी होगी, यह देखना बाकी है, पर इतना तय है कि वह दोनों गठबंधनों के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है, खासकर युवा और शहरी मतदाताओं के बीच।

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एआईएमआईएम भी सीमांचल और मिथिलांचल में अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटी है। 2020 में उसने सीमांचल के चार जिलों में अच्छी उपस्थिति दर्ज कराई थी। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी अब दरभंगा, किशनगंज, कटिहार और मधेपुरा तक विस्तार कर रही है। इस बार उनका सीधा मुकाबला आरजेडी से है क्योंकि मुस्लिम मतदाताओं के बीच विभाजन से महागठबंधन को नुकसान हो सकता है।

बिहार चुनाव में जातीय समीकरण की भूमिका

जातीय समीकरण की बात करें तो बिहार की राजनीति में यह फैक्टर हमेशा निर्णायक रहा है। यादव, कुर्मी, कुशवाहा, पासवान, राजपूत और मुस्लिम मतदाताओं का संतुलन जिस ओर झुकेगा, वही सत्ता की कुर्सी तय करेगा। बीजेपी और जदयू की कोशिश है कि पिछड़े वर्गों और महिलाओं को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ा जाए, जबकि तेजस्वी यादव सामाजिक न्याय और युवाओं के रोजगार को मुख्य नारा बना रहे हैं।

चुनाव से पहले आचार संहिता लागू

इसी बीच चुनाव आयोग ने आचार संहिता लागू कर दी है और अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि हर जिले में निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किया जाए। सोशल मीडिया पर फर्जी सूचनाओं को रोकने के लिए विशेष निगरानी इकाई बनाई गई है और पहली बार बिहार में “सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल” सक्रिय किया गया है।

कुल मिलाकर बिहार में इस बार मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना है- एनडीए, महागठबंधन और जनसुराज-असदुद्दीन ओवैसी की चुनौती। चुनावी माहौल गरम है और सीट बंटवारे के बाद तस्वीर और साफ हो जाएगी। फिलहाल दोनों गठबंधन अपने-अपने सहयोगियों को मनाने और नाराज दलों को साधने की कोशिशों में जुटे हैं।

सवाल अब यही है कि क्या नीतीश कुमार अपने दो दशक के राजनीतिक कौशल से फिर सत्ता में वापसी कर पाएंगे, या तेजस्वी यादव इस बार अपने पिता लालू प्रसाद यादव की विरासत को सत्ता के रूप में दोबारा स्थापित करेंगे? क्या चिराग पासवान एनडीए में रहकर अपनी राजनीतिक जमीन बचा पाएंगे या फिर अलग राह चुनेंगे? और क्या प्रशांत किशोर या ओवैसी की एंट्री इस बार समीकरण पूरी तरह बदल देगी?

ये सारे सवाल फिलहाल जनता की अदालत में हैं, जहां आखिरी फैसला 14 नवंबर को ईवीएम के बटन से निकलने वाला है। बिहार की सियासत में एक बार फिर नया इतिहास लिखा जाएगा या पुराना ही दोहराया जाएगा, यह वक्त तय करेगा।

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  • Patna

Published : 
  • 9 October 2025, 9:22 AM IST