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दिल्ली के लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास 10 नवंबर को हुए भीषण विस्फोट ने पूरे देश को झकझोर दिया। जांच में सामने आया कि यह हमला एक संगठित आतंकी मॉड्यूल द्वारा योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया। बरामद विस्फोटकों, संदिग्धों की गिरफ्तारी, डिजिटल ट्रेल और “शू बम्बर” सिद्धांत ने केस को और रहस्यमय बना दिया है।
लाल किला धमाका केस में बड़ा खुलासा
New Delhi: देश की राजधानी नई दिल्ली में 10 नवंबर की शाम लगभग 6 बजकर 52 मिनट पर लाल किला मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 1 के पास भारी ट्रैफिक के बीच एक सफेद Hyundai i20 कार अचानक विस्फोट से दहक उठी। कुछ ही पलों में वहां अफरा-तफरी मच गई, धुएं का गुबार उठा, आसपास खड़ी गाड़ियों के शीशे टूट गए और लोग चीखते-भागते नजर आए। दमकल की गाड़ियां तेजी से पहुंचीं और सात यूनिट आग बुझाने में जुट गईं। एनसीआर की कई एजेंसियां भी तुरंत मौके पर सक्रिय हो गईं, जो इस घटना को साधारण हादसा नहीं, बल्कि गंभीर आपराधिक साजिश की दिशा में ले आया।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में दिल्ली ब्लास्ट को लेकर सटीक विश्लेषण किया।
जांच के शुरुआती चरण में ही यह सामने आ गया कि कार में साधारण ईंधन-आधारित विस्फोट नहीं हुआ, बल्कि इसमें उच्च क्षमता वाला IED प्रयोग किया गया था। घटनास्थल से मिले टुकड़ों और धातु के अवशेषों के आधार पर फॉरेंसिक टीमों ने यह अनुमान लगाया कि विस्फोटक में अमोनियम नाइट्रेट समेत अन्य रासायनिक यौगिकों का मिश्रण था। जिस तरह कार का फ्रेम उड़ कर दूर तक बिखर गया, उससे यह संकेत मिला कि विस्फोट का डिज़ाइन अत्यधिक प्रभाव पैदा करने वाला था।
सीसीटीवी फुटेज की छानबीन से यह पता चला कि कार विस्फोट से कुछ मिनट पहले सामान्य गति से ट्रैफिक में चल रही थी और सिग्नल पर रुकने के बाद ही धमाका हुआ। इस फुटेज ने जांच को तेजी से आगे बढ़ाया और टीमों ने दिल्ली-एनसीआर में फैले लगभग पांच हजार कैमरों के जरिये संदिग्ध कार की 43 लोकेशन की विस्तृत रूट मैपिंग तैयार की। यह मैपिंग दिखाती है कि संदिग्ध व्यक्ति ने 29 अक्टूबर से फरीदाबाद, बल्लभगढ़, बदरपुर, ओखला, जामिया, निजामुद्दीन और पुरानी दिल्ली के कई हिस्सों में घूम-घूमकर तैयारी की थी।
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इस घटना में मरने वालों की संख्या शुरू में 9 बताई गई, फिर 12 और बाद में हमारे खबर लिखने के समय तक यह आंकड़ा 15 तक पहुंच गया है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में विस्फोट के कारण हुए गंभीर आंतरिक घावों का उल्लेख भी है। घटनास्थल से एक मानव पैर भी मिला था, जिसे बाद में डीएनए जांच के लिए भेजा गया और उसके आधार पर संदिग्ध ड्राइवर की पहचान की पुष्टि की गई।
हालात तब और गंभीर हो गए जब फरीदाबाद में पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों ने छापेमारी करके लगभग 360 किलो अमोनियम नाइट्रेट, इलेक्ट्रॉनिक टाइमर, सर्किट बोर्ड और विस्फोटक बनाने में इस्तेमाल होने वाले उपकरण बरामद किए। इस बरामदगी ने साफ कर दिया कि दिल्ली का हमला कोई एकाकी घटना नहीं, बल्कि एक बड़े आतंकी मॉड्यूल का हिस्सा था।
इस मॉड्यूल का मुख्य चेहरा सामने आया- डॉ. उमर उन नबी, जो फरीदाबाद के अल-फलाह विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर था और मूलतः पुलवामा का रहने वाला बताया गया। जांच से ये संकेत मिला कि वही इस कार का ड्राइवर था। फंडिंग के रूप में लगभग 20 लाख रुपये की लेनदेन की बात सामने आई, जिसका आतंकी गतिविधि में इस्तेमाल होने का संदेह है। उमर के साथियों में से आमिर राशिद अली को गिरफ्तार किया गया और अदालत ने उसे 10 दिन की हिरासत में भेजा। एक अन्य संदिग्ध मुजम्मिल का नाम भी सामने आया, जिसके साथ पैसों को लेकर विवाद हो गया था।
इस मामले की गंभीरता तब और बढ़ गई जब श्रीनगर के नौगाम पुलिस स्टेशन पर हुए विस्फोट में पाया गया कि वहां इस्तेमाल हुआ विस्फोटक भी फरीदाबाद कनेक्शन से जुड़ा हुआ था। यह संकेत मिला कि एक ही मॉड्यूल कश्मीर से दिल्ली तक फैले नेटवर्क के जरिए काम कर रहा था। लॉजिस्टिक्स, फंडिंग, भर्ती और कम्युनिकेशन चैनल की जांच अब एजेंसियों की प्राथमिकता में है।
घटना स्थल की जांच में एक और दिलचस्प संकेत मिला, जिसमें कार के भीतर एक विशेष बूट मिला, जिसे जांच अधिकारी “शू बॉम्बर” सिद्धांत के रूप में देख रहे हैं। यह संभावना जताई जा रही है कि बूट के अंदर विस्फोटक उपकरण लगा हो सकता था, जिसकी वजह से ब्लास्ट का स्वरूप इतना तीव्र हुआ।
अब बात करते हैं कि जांच एजेंसियां कहां तक पहुंचीं हैं। दिल्ली पुलिस, हरियाणा पुलिस, जम्मू-कश्मीर पुलिस, IB और NIA मिलकर इस पूरे मॉड्यूल के नेटवर्क को तोड़ने में लगे हैं। कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, चैट, ई-मेल ट्रेल और लोकेशन डेटा को डिकोड किया जा रहा है। फॉरेंसिक लैब के शुरुआती निष्कर्ष NIA को ये मानने की ओर ले जा रहे हैं कि हमला एक “कार-बोर्न सुसाइड ऑपरेशन” के रूप में डिजाइन किया गया था।
अब बात आती है कि आगे क्या उम्मीद की जाए। एजेंसियों के अनुसार, अभी और गिरफ्तारियां होंगी। फंडिंग नेटवर्क, विस्फोटक का स्रोत, कार की खरीद में शामिल चैनल, और डिजिटल कम्युनिकेशन- इन सभी पहलुओं की गहन जांच जारी है। यह भी संकेत मिले हैं कि यह मॉड्यूल दिसंबर में किसी और बड़े हमले की तैयारी भी कर रहा था। आने वाले दिनों में नेटवर्क के और चेहरे सामने आने की पूरी संभावना है।
संसद का शीतकालीन सत्र 1 दिसंबर से शुरू हो रहा है और इस धमाके का असर निश्चित रूप से संसद की कार्यवाही पर पड़ेगा। विपक्ष सरकार से सुरक्षा में विफलता के सवाल पूछेगा, वहीं सरकार अपनी खुफिया एजेंसियों की कार्रवाई और शून्य-सहिष्णुता की नीति को सामने रखेगी। संसद में राष्ट्रीय सुरक्षा, निगरानी तकनीक, सुरक्षा-कानूनों के कड़े प्रावधान और आतंकी गतिविधियों पर अंकुश जैसे मुद्दे प्रमुख रहेंगे। धमाके के मद्देनजर दिल्ली और संसद क्षेत्र में सुरक्षा और बढ़ाई जाएगी।
अब तक हुई गिरफ्तारियों में मुख्यत: उमर उन नबी की पहचान डीएनए से सुनिश्चित हुई है। उसकी गतिविधियों से जुड़ा आमिर राशिद अली NIA की हिरासत में है। कुछ अन्य संदिग्धों से पूछताछ चल रही है और कश्मीर, हरियाणा और दिल्ली में कई छापेमारियां आयोजित की गई हैं।
यह पूरा मामला एक बार फिर साबित करता है कि आधुनिक आतंकवाद सिर्फ हथियार और विस्फोटकों का खेल नहीं, बल्कि एक सुनियोजित, टेक-सक्षम, फंडेड और बहुस्तरीय नेटवर्क है। इसकी हर कड़ी को तोड़ना बेहद जरूरी है।