The MTA Speaks: क्यों बना 8वां वेतन आयोग? कौन हैं इसकी चेयरपर्सन, कर्मचारियों को क्या मिलेगा फायदा- पूरा विश्लेषण

केंद्र सरकार ने 8वें वेतन आयोग का गठन किया है, जिसकी बागडोर सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई संभालेंगी। यह पहली बार है जब किसी महिला को आयोग को अध्यक्ष बनाया गया है। उम्मीद है कि आयोग कर्मचारियों के वेतन, पेंशन और भत्तों में ऐतिहासिक सुधार लाएगा।

Updated : 4 November 2025, 8:16 AM IST
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New Delhi: भारत में वेतन आयोग केवल सरकारी कर्मचारियों के वेतन तय करने का माध्यम नहीं होता, बल्कि यह देश की आर्थिक नीतियों, सामाजिक न्याय और प्रशासनिक सुधार का महत्वपूर्ण स्तंभ भी है। पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में आठवें केंद्रीय वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दी गई। इस फैसले से देशभर के लगभग 50 लाख केंद्रीय सरकारी कर्मचारी और करीब 69 लाख पेंशनधारक सीधे तौर पर प्रभावित होंगे।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks  में आठवें वेतन आयोग के गठन को लेकर सटीक विश्लेषण किया।

यह निर्णय आने के साथ ही यह चर्चा का प्रमुख विषय बन गया है कि आखिर क्यों किया गया 8वें वेतन आयोग का गठन, क्या है इसका उद्देश्य, कौन हैं इसकी चेयरपर्सन जस्टिस रंजना देसाई, ये आयोग कैसे काम करेगा, कब रिपोर्ट देगा, किससे किससे बात करेगा, रिपोर्ट मिलने के बाद सरकार क्या करेगी, सरकारी कर्मचारियों को क्या फायदा होगा, इसके पहले के 7 आय़ोग के बारे में। इन सब बातों के बारे में आज हम विस्तार से जानेंगे।

भारत में हर दस साल में एक बार वेतन आयोग का गठन किया जाता है ताकि सरकारी कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, पेंशन और अन्य सेवा शर्तों की समीक्षा की जा सके। यह परंपरा 1946 में पहले वेतन आयोग से शुरू हुई थी और अब यह अपनी आठवीं कड़ी तक पहुँच चुकी है।

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कौन हैं आयोग की चेयरपर्सन- जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई?

इस बार का आयोग इसलिए भी खास है क्योंकि पहली बार किसी महिला को इस आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है- सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की वर्तमान चेयरपर्सन, जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई। जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई ने सुप्रीम कोर्ट में कई अहम फैसलों में भूमिका निभाई है- उन्होंने महिला अधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और न्यायिक पारदर्शिता से जुड़े मामलों में गहरी छाप छोड़ी है।

2023 में वह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की चेयरपर्सन बनीं और उस पद पर रहते हुए मीडिया की स्वतंत्रता और जवाबदेही के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया। उनकी नियुक्ति इस बात का संकेत है कि अब आयोग के फैसले केवल आर्थिक आंकड़ों पर नहीं, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण और सामाजिक न्याय की भावना पर भी आधारित होंगे। इससे पहले जस्टिस रंजना देसाई सरकार की तमाम अहम कमेटियों में रह चुकी हैं। इनमें लोकपाल सर्च कमेटी, उत्तराखंड में Uniform Civil Code के लिए बनी ड्राफ्ट कमेटी की चेयरपर्सन और इसके अलावा जम्मू कश्मीर डिलिमिटेशन आयोग की चेयरपर्सन रह चुकी हैं।

आठवें केंद्रीय वेतन आयोग के गठन को मंजूरी

एक तरह से यह भी कहा जा सकता है कि सरकार के इस फैसले से यह भी स्पष्ट संदेश गया है कि नारी नेतृत्व अब केवल प्रेरणा नहीं, बल्कि निर्णय प्रक्रिया का केंद्र भी बन चुका है। यह निर्णय नौकरशाही, न्यायपालिका और नीति निर्माण में महिलाओं की भागीदारी के नए युग की शुरुआत है। पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में देशभर के करीब 50 लाख सरकारी कर्मचारियों और लगभग 69 लाख पेंशनधारकों के लिए यह निर्णय लिया गया- आठवें केंद्रीय वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दी गई।

अब सवाल उठता है- आखिर आठवां वेतन आयोग बनाया ही क्यों गया?

इसका प्रमुख कारण यह है कि 2016 में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद से अब तक महंगाई, GDP और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में बड़ा बदलाव आया है। वर्तमान में केंद्रीय कर्मचारियों का महंगाई भत्ता (DA) 50 प्रतिशत से अधिक हो चुका है। ऐसे में यह आवश्यक था कि उनके मूल वेतन, भत्ते और पेंशन की संरचना को वर्तमान आर्थिक परिस्थिति और महंगाई के दबाव के अनुसार पुनः निर्धारित किया जाए।

आठवें वेतन आयोग का उद्देश्य

सरकारी कर्मचारियों की आय और जीवन स्तर को देश की आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप बनाए रखना, ताकि उन्हें स्थिरता और सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित किया जा सके। आयोग न केवल वेतन पुनर्निर्धारण करेगा, बल्कि Dearness Allowance, House Rent Allowance, Transport Allowance जैसे प्रमुख भत्तों की समीक्षा करेगा। साथ ही पेंशनभोगियों की जरूरतों को देखते हुए नई पेंशन संरचना पर भी सुझाव देगा।

आयोग का कार्यकाल आमतौर पर 18 महीने का होगा। इस अवधि में यह देशभर के विभिन्न मंत्रालयों, कर्मचारी संगठनों, वित्त मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, और कैबिनेट सचिवालय के साथ परामर्श करेगा। कर्मचारियों की समस्याओं और मांगों को प्रत्यक्ष संवाद के माध्यम से सुना जाएगा। आयोग का सचिवालय वित्त मंत्रालय के अधीन काम करेगा और रिपोर्ट कैबिनेट को सौंपी जाएगी।
रिपोर्ट मिलने के बाद वित्त मंत्रालय और कैबिनेट सचिवालय उसकी समीक्षा करेंगे। इसके बाद प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल सिफारिशों को मंजूरी देगा। आमतौर पर, वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से सरकार पर भारी वित्तीय दबाव आता है। उदाहरण के लिए, सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने से केंद्र सरकार पर सालाना लगभग ₹1.02 लाख करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ा था। आठवें आयोग के बाद यह बोझ और बढ़ सकता है।

लेकिन इसके साथ ही यह भी सच्चाई है कि वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से उपभोग, बाजार और अर्थव्यवस्था में एक नया जोश आता है। सरकारी कर्मचारियों की क्रय शक्ति बढ़ने से बाजार में मांग में तेजी आती है, जिससे GDP और आर्थिक प्रवाह में भी सुधार होता है।

कर्मचारियों को इससे क्या फायदा होगा?

कर्मचारी चाहते हैं कि न्यूनतम वेतन जो सातवें वेतन आयोग में ₹18,000 प्रति माह तय किया गया था, उसे अब बढ़ाकर ₹26,000 से ₹30,000 तक किया जाए। साथ ही Pay Matrix को अद्यतन करते हुए हर ग्रेड के वेतन स्तर में औसतन 20 से 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की उम्मीद है। DA और HRA की दरों में भी पुनः संरचना की मांग उठ रही है ताकि वे वास्तविक महंगाई को परिलक्षित कर सकें।

इसी के साथ, New Pension Scheme (NPS) बनाम Old Pension Scheme (OPS) का मुद्दा भी बड़ा राजनीतिक और सामाजिक विमर्श का विषय बन चुका है। देशभर के कर्मचारी संगठन मांग कर रहे हैं कि NPS की जगह पुरानी पेंशन व्यवस्था को बहाल किया जाए, जिसमें रिटायरमेंट के बाद जीवन भर वेतन का एक निश्चित प्रतिशत पेंशन के रूप में मिलता था। आयोग से उम्मीद की जा रही है कि वह इस विषय पर भी व्यवहारिक और न्यायसंगत सिफारिश करेगा।

ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले कर्मचारी विशेष प्रोत्साहन की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे कठिन भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों में काम करते हैं, इसलिए उन्हें अतिरिक्त लाभ और सुविधाएँ मिलनी चाहिए। मेडिकल भत्ता, यात्रा भत्ता और अन्य भत्तों को समान रूप से लागू करने की भी मांग की जा रही है ताकि सभी कर्मचारियों को समान अवसर और लाभ मिल सके।

देश में वेतन आयोगों के ऐतिहासिक सफर

  • पहला वेतन आयोग 1946 में ब्रिटिश शासनकाल में गठित हुआ था। इसका उद्देश्य था स्वतंत्र भारत के लिए सरकारी कर्मचारियों की बुनियादी वेतन संरचना तय करना। तब न्यूनतम वेतन ₹55 और अधिकतम ₹2000 प्रति माह तय किया गया था।
  • दूसरा वेतन आयोग 1957 में बना। इसमें स्वतंत्र भारत की अर्थव्यवस्था की नई परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए न्यूनतम वेतन ₹80 और अधिकतम ₹3000 किया गया।
  • तीसरा वेतन आयोग 1970 में गठित हुआ, जिसने “Dearness Allowance” यानी महंगाई भत्ते को वेतन का स्थायी हिस्सा बनाया- जो आज तक कायम है।
  • चौथा वेतन आयोग 1983 में आया और इसमें वेतन वृद्धि में बड़ा सुधार किया गया, जिससे कर्मचारियों के जीवन स्तर में स्पष्ट सुधार हुआ।
  • पांचवां वेतन आयोग 1994 में गठित हुआ और इसने वेतन में लगभग 30% की वृद्धि की। हालांकि इससे सरकार के राजकोषीय बोझ में भी भारी इजाफा हुआ।
  • छठा वेतन आयोग 2006 में आया, जिसने पहली बार “Pay Band” और “Grade Pay” प्रणाली लागू की, जिससे वेतन संरचना को एकीकृत और पारदर्शी बनाया गया।
  • सातवां वेतन आयोग 2014 में गठित हुआ, जिसके अध्यक्ष जस्टिस ए.के. माथुर थे। इसने “Pay Matrix” प्रणाली लागू की और औसतन 14.27% वेतन वृद्धि दी। इसे 1 जनवरी 2016 से लागू किया गया। न्यूनतम
  • वेतन ₹18,000 और अधिकतम ₹2,50,000 प्रति माह तय हुआ।

आठवां वेतन आयोग क्यों है विशेष?

अब बारी है आठवें वेतन आयोग की, जिसके गठन से कर्मचारियों की उम्मीदें नई ऊँचाइयों पर हैं। यह आयोग न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और नीतिगत दृष्टि से भी ऐतिहासिक होगा, क्योंकि इसकी बागडोर एक ऐसी महिला के हाथ में है जिसने अपने न्यायिक करियर में निष्पक्षता और संवेदनशीलता दोनों को संतुलित रखा है।

आठवां वेतन आयोग इसलिए भी विशेष है क्योंकि यह ऐसे समय में आया है जब देश की अर्थव्यवस्था तेज़ी से डिजिटल और ग्लोबल ट्रांजिशन के दौर से गुजर रही है। Artificial Intelligence, Automation और डिजिटल गवर्नेंस के युग में सरकारी कर्मचारियों की भूमिका और ज़िम्मेदारी बदल रही है। इसलिए यह आयोग केवल वेतन बढ़ाने का दस्तावेज नहीं होगा, बल्कि यह “नई सरकारी कार्य संस्कृति” की रूपरेखा भी तय करेगा- जहाँ दक्षता, जवाबदेही और प्रोत्साहन तीनों समानांतर चलेंगे।

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आठवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद न केवल सरकारी कर्मचारियों के जीवन स्तर में सुधार होगा, बल्कि इससे संपूर्ण अर्थव्यवस्था में मांग और खर्च में वृद्धि होगी, जो GDP वृद्धि को भी गति देगी।

कहा जा सकता है कि आठवां वेतन आयोग भारत के आर्थिक-सामाजिक संतुलन, नारी शक्ति के उदय और न्यायसंगत वेतन नीति की दिशा में एक निर्णायक कदम है। अगर इसकी सिफारिशें कर्मचारियों की अपेक्षाओं पर खरी उतरती हैं, तो यह केवल प्रशासनिक सुधार नहीं बल्कि “न्यायपूर्ण भारत” के निर्माण की दिशा में ऐतिहासिक पड़ाव साबित होगा।

Location : 
  • New Delhi

Published : 
  • 4 November 2025, 8:16 AM IST