

IRCTC घोटाले में दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव सहित 14 लोगों पर भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के आरोप तय किए हैं। यह फैसला बिहार चुनाव से पहले आया है, जिससे राजनीतिक पारा चढ़ गया है। अदालत ने लालू यादव को मुख्य साजिशकर्ता बताया।
New Delhi: बिहार चुनाव को लेकर माहौल गर्म है। इसी बीच आज दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी व पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, उनके पुत्र और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव सहित कुल 14 आरोपितों के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश सुनाया है। यह मामला भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम, यानी IRCTC में कथित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में आगामी बिहार चुनाव को लेकर सटीक विश्लेषण किया।
अदालत के इस निर्णय के बाद अब औपचारिक रूप से मुकदमे की प्रक्रिया शुरू होगी। आज हम आपको बतायेंगे इस फैसले का बिहार की राजनीति पर क्या असर होगा, इसको टाइमिंग को लेकर क्यों सवाल खड़े हो रहे हैं। क्यों यह फैसला लालू परिवार के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है, बिहार विधानसभा चुनाव के संदर्भ में भी इसका प्रभाव देखा जा रहा है।
अदालत ने साफ किया कि यह मामला लालू प्रसाद यादव की जानकारी और सहमति के तहत हुआ और वह इस साजिश के मुख्य साजिशकर्ता हैं। अदालत ने कहा कि रेल मंत्री के रूप में लालू यादव ने अपने सरकारी अधिकारों का उपयोग कर टेंडर प्रक्रिया में हेरफेर किया और निजी कंपनी सुजाता होटल्स को लाभ पहुंचाया। इसके साथ ही अदालत ने यह भी माना कि इस प्रक्रिया में लालू परिवार को प्रत्यक्ष लाभ मिला। इसके तहत राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव को पटना में बेहद कम कीमत पर कीमती जमीनें प्राप्त हुईं।
कोर्ट ने लालू यादव पर IPC की धारा 120B (आपराधिक साजिश) और 420 (धोखाधड़ी) के साथ-साथ प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट की धारा 13(1)(d) और 13(2) के तहत आरोप तय किए। वहीं, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव पर केवल IPC की धारा 120B और 420 के तहत ट्रायल चलेगा। अदालत ने यह भी कहा कि सभी आरोपी व्यापक साजिश में शामिल थे और प्रथम दृष्टया यह सामने आया कि लालू यादव को BNR होटलों के हस्तांतरण की पूरी जानकारी थी।
सुनवाई में लालू यादव और उनके परिवार के सदस्य कोर्ट में उपस्थित थे। लालू यादव व्हीलचेयर पर अदालत पहुंचे, जबकि राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव उनके साथ कोर्ट परिसर में मौजूद रहे। अदालत ने तीनों से पूछा कि क्या वे खुद को दोषी मानते हैं या मुकदमे का सामना करेंगे। सभी आरोपितों ने अपना अपराध न मानने का फैसला किया और कहा कि वे मुकदमे का सामना करेंगे और इसे चुनौती देंगे।
IRCTC घोटाले की जांच 7 जुलाई 2017 को सीबीआई ने शुरू की थी। इस दौरान लालू यादव और उनके परिवार से जुड़े पटना, नई दिल्ली, रांची और गुरुग्राम में कुल 12 ठिकानों पर छापेमारी की गई थी। आरोप था कि 2004 से 2009 के बीच, जब लालू यादव रेल मंत्री थे, IRCTC के दो होटलों- BNR रांची और BNR पुरी के रखरखाव के ठेके अवैध तरीके से दिए गए।
आरोपपत्र के अनुसार, इन ठेकों को विजय और विनय कोचर के स्वामित्व वाली निजी फर्म सुजाता होटल्स को दिया गया। आरोप है कि इसके पीछे लालू परिवार से जुड़ी एक बेनामी कंपनी के जरिए तीन एकड़ कीमती जमीन का लेन-देन हुआ।
सीबीआई के आरोपपत्र में यह भी कहा गया है कि दो होटलों के रखरखाव के ठेके लालू परिवार से जुड़े निजी फर्मों को देने के लिए सरकारी नियमों में बदलाव किया गया। निविदा प्रक्रिया में फेरबदल कर सुजाता होटल्स को लाभ पहुंचाया गया। आरोपपत्र में IRCTC के तत्कालीन समूह महाप्रबंधक वी.के. अस्थाना और आर.के. गोयल, सुजाता होटल्स के निदेशक, और चाणक्य होटल के मालिक विजय और विनय कोचर का भी नाम शामिल है। इसके अलावा, Delight Marketing कंपनी और सुजाता होटल्स प्राइवेट लिमिटेड को आरोपी कंपनियों के रूप में नामजद किया गया है। Delight Marketing अब Lara Projects के नाम से जानी जाती है।
The MTA Speaks: ‘कोल्ड्रिफ’ सिरप से 16 बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन, किसने घोला जहर?
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि कॉन्ट्रैक्ट देने के एवज में लालू परिवार को जमीन की बेहद कम कीमत पर प्राप्ति हुई। कोर्ट ने आरोपपत्र पढ़ते हुए कहा कि बिक्री के लिए उपलब्ध सभी प्लॉट का मूल्यांकन जानबूझकर कम किया गया और जब कंपनी को हिस्सेदारी सौंपी गई, तो ये संपत्तियां लालू, राबड़ी और तेजस्वी के हाथों में चली गईं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सीबीआई ने सबूतों की पूरी श्रृंखला प्रस्तुत की है और अदालत आरोप तय करने जा रही है।
विशेष अदालत ने 29 मई 2025 को आरोप तय करने का फैसला सुरक्षित रखा था। न्याय विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत ने समय लिया क्योंकि यह एक जटिल और विस्तृत मामला था, जिसमें सबूतों, दस्तावेजों और गवाहों की विस्तृत श्रृंखला शामिल थी। फैसले में समय लगने के पीछे यही कारण है कि अदालत ने सुनिश्चित किया कि सभी दलीलों का संतुलित मूल्यांकन हो।
हालांकि, लालू परिवार और उनके समर्थक अब कोर्ट के फैसले पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। उनका कहना है कि अदालत ने फैसला 29 मई को सुरक्षित किया था, लेकिन चुनाव के ऐलान के बाद बीच चुनाव में यह निर्णय आया। उनके मुताबिक, इस टाइमिंग से राजनीतिक संदर्भ और चुनावी लाभ को लेकर संदेह पैदा होता है। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत का निर्णय कानूनी रूप से सही हो सकता है, लेकिन समय और चुनावी माहौल की वजह से जनता के मन में सवाल उठना स्वाभाविक है।
लालू परिवार की प्रतिक्रिया में उन्होंने कहा कि वे सभी आरोपों का कानूनी तौर पर सामना करेंगे और पूरी प्रक्रिया में अपने अधिकारों का इस्तेमाल करेंगे। तेजस्वी यादव ने मीडिया से कहा कि न्यायालय में पेश सबूतों का विश्लेषण करना ही प्राथमिक है और वे ट्रायल के दौरान अपनी सफाई देंगे। राबड़ी देवी ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान करते हुए वे पूरी तरह से अदालत में उपस्थित रहेंगी और अपने पक्ष को रखेंगी।
विपक्षी दलों ने इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि यह न्याय प्रक्रिया का हिस्सा है। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत का निर्णय राजनीतिक दबाव से प्रभावित नहीं होना चाहिए और सभी दल निष्पक्षता बनाए रखें। राजनीतिक विश्लेषक यह भी कह रहे हैं कि इस फैसले का चुनावी प्रभाव नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह मामला सीधे तौर पर लालू परिवार की साख और उनके समर्थकों की धारणा से जुड़ा है।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस फैसले का असर कई स्तरों पर देखा जाएगा। सबसे पहले, राजद इसे अपने पक्ष में भुना सकती है। लालू परिवार और उनके समर्थक इसे राजनीतिक रूप से यह संदेश देने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं कि वे न्यायिक प्रक्रिया का सामना कर रहे हैं और विपक्ष की राजनीतिक लड़ाई में टिके हुए हैं। यह रणनीति उनके समर्थकों को यह भरोसा दिला सकती है कि लालू परिवार किसी भी दबाव या आरोप से नहीं झुकेगा और चुनाव में मजबूती बनाए रखेगा।
दूसरी ओर, भाजपा और जदयू इस फैसले का चुनावी लाभ लेने का प्रयास करेंगे। उनके लिए यह मामला राजद के भ्रष्टाचार और गलत प्रथाओं को उजागर करने का अवसर है। वे यह दिखाने की कोशिश करेंगे कि राजद ने सत्ता में रहते हुए सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग किया और निजी लाभ प्राप्त किया। चुनावी प्रचार में यह मुद्दा बिहार के मतदाताओं के बीच भ्रष्टाचार और प्रशासनिक जवाबदेही के सवाल उठाने का एक मजबूत हथियार बन सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस फैसले का सबसे बड़ा असर उन मतदाताओं पर पड़ेगा जो भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त हैं। बिहार में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में यह मुद्दा मतदाताओं के मन में अहम भूमिका निभा सकता है। अगर राजद इसे अपने पक्ष में सही ढंग से पेश करती है, तो समर्थक इसे “राजनीतिक उत्पीड़न” के रूप में देख सकते हैं। वहीं, विपक्ष इसे “राजनीतिक जवाबदेही” के रूप में पेश करेगा, जो चुनावी माहौल को और अधिक गर्म कर सकता है।
तीसरा पहलू यह है कि इस फैसले की टाइमिंग भी चुनावी रणनीति पर असर डालेगी। अदालत ने फैसला 29 मई को सुरक्षित रखा था और अब चुनाव के बीच में इसका आदेश आया। इससे मतदाताओं में यह धारणा बन सकती है कि कोर्ट का फैसला चुनावी माहौल को प्रभावित कर रहा है। राजद समर्थक इसे चुनावी दबाव का विरोध और न्यायपालिका पर विश्वास की बहाली के रूप में पेश कर सकते हैं, जबकि भाजपा और जदयू इसे राजद के भ्रष्टाचार को उजागर करने के अवसर के रूप में इस्तेमाल करेंगे।
इस फैसले का राजनीतिक नतीजा सिर्फ बिहार विधानसभा तक सीमित नहीं होगा। यह देशभर में चुनावी रणनीतियों और पार्टी छवि पर भी असर डालेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि लालू परिवार का कद्दावर होना और उनके खिलाफ चल रही कानूनी कार्रवाई, दोनों ही चुनावी माहौल को गहराई से प्रभावित करेंगे।
आरोप तय होने के बाद ट्रायल की प्रक्रिया शुरू होगी। अदालत गवाहों की दलीलों, दस्तावेजों और सबूतों की पूरी श्रृंखला की जांच करेगी। सभी आरोपितों को अपने बचाव में अदालत में पेश होना होगा। ट्रायल में अदालत तय करेगी कि आरोप किस हद तक साबित होते हैं। ट्रायल के दौरान दोनों पक्षों को अपनी दलील रखने का पर्याप्त मौका मिलेगा और कोर्ट पूरी निष्पक्षता से फैसला सुनाएगी।
IRCTC घोटाले की जांच और कोर्ट के फैसले ने राजनीतिक, कानूनी और सामाजिक दृष्टिकोण से लालू परिवार की स्थिति चुनौतीपूर्ण बना दी है। आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले यह मामला राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत के फैसले का प्रभाव सिर्फ कानूनी नहीं बल्कि चुनावी रणनीतियों और जनता की धारणा पर भी पड़ सकता है।