The MTA Speaks: ‘कोल्ड्रिफ’ सिरप से 16 बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन, किसने घोला जहर?

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा और बैतूल जिलों में ‘कोल्ड्रिफ’ नामक कफ सिरप से 16 बच्चों की मौत हो चुकी है। जांच में पता चला है कि सिरप में जहरीले रसायन थे, जिससे बच्चों की किडनी और लिवर पर गंभीर असर पड़ा। इस घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग और पुलिस हरकत में आए हैं, लेकिन सवाल अब भी यही है कि इस घातक दवा को बाजार में आने से पहले क्यों नहीं रोका गया?

Post Published By: Nidhi Kushwaha
Updated : 7 October 2025, 11:45 AM IST
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Bhopal: मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा और बैतूल जिले में ‘कोल्ड्रिफ’ नाम के कफ सिरप से 16 बच्चों की जान जा चुकी है। छिंदवाड़ा में 14 और बैतूल में 2 मासूमों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। ये सभी मौतें पिछले कुछ हफ्तों में हुईं, लेकिन अब पूरे देश में चिंता का माहौल है। क्योंकि वही सिरप और उसी कंपनी की दवाएं कई अन्य राज्यों में भी बिक चुकी हैं।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks  में इस घटना  को लेकर सटीक विश्लेषण किया ।

सितंबर में सामने आया पहला मामला

पहली मौत 7 सितंबर को दर्ज हुई थी, लेकिन प्रशासन ने 24 अक्टूबर के बाद कार्रवाई शुरू की। यानी पूरे 42 दिन तक जहरीली दवा दुकानों और अस्पतालों में चलती रही। इतनी बड़ी देरी पर अब जनता पूछ रही है कि इन मौतों का जिम्मेदार कौन है? डॉक्टर? दवा कंपनी? या फिर सिस्टम, जो आंख मूंदे बैठा रहा?

छिंदवाड़ा के इस इलाके में सबसे ज्यादा मौतें

छिंदवाड़ा के परासिया इलाके में सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं। मरने वाले ज्यादातर बच्चे 2 से 6 साल की उम्र के थे। उन्हें खांसी-जुकाम और बुखार की शिकायत थी। स्थानीय डॉक्टरों ने ‘कोल्ड्रिफ कफ सिरप’ नाम की दवा लिख दी, लेकिन इस सिरप में मौजूद जहरीले रसायन ने बच्चों की किडनी और लिवर दोनों को नुकसान पहुंचाया। धीरे-धीरे लक्षण बढ़े और फिर एक-एक कर बच्चों ने दम तोड़ दिया।

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मामले के उजागर होने के बाद अब पुलिस और स्वास्थ्य विभाग हरकत में आए हैं। इस मामले में शनिवार की रात श्रीसन फार्मा कंपनी और स्थानीय डॉक्टर डॉ. प्रवीण सोनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई। डॉ. सोनी को गिरफ्तार कर निलंबित भी कर दिया गया है। आरोप है कि उन्होंने सबसे ज्यादा मरीजों को यही दवा लिखी थी। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ एक डॉक्टर और एक कंपनी ही जिम्मेदार हैं?

तमिलनाडु की कंपनी ने बनाई दवा

दवा का निर्माण तमिलनाडु की कंपनी Srisan Pharmaceuticals ने किया था। यही कंपनी पहले भी विवादों में रही है। जांच एजेंसियां अब तमिलनाडु के फैक्ट्री परिसर की जांच के लिए तैयार हैं। मध्यप्रदेश पुलिस की एसआइटी, जिसकी अगुवाई जबलपुर रेंज के आईजी शैलेंद्र सिंह कर रहे हैं, अब राज्य से बाहर जाकर भी सबूत इकट्ठे कर सकती है।

फिलहाल, प्रदेश सरकार ने ‘कोल्ड्रिफ’ और इसी कंपनी द्वारा बनाए गए सभी सिरप्स की बिक्री पर तत्काल रोक लगा दी है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने खुद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इसकी पुष्टि की है और कहा है कि जनता की सुरक्षा सर्वोपरि है।

मृतकों के परिवारों को दी गई सहायता राशि

छिंदवाड़ा के एडीएम धीरेंद्र सिंह के मुताबिक, मुख्यमंत्री राहत कोष से मृतकों के परिवारों को 4-4 लाख रुपये की सहायता राशि जारी कर दी गई है। यह राशि परासिया के 11, छिंदवाड़ा के 2 और चौरई के एक मृतक बच्चे के परिजन को दी गई है। वहीं, नागपुर के अस्पतालों में अभी भी आठ बच्चे भर्ती हैं, जिनमें चार सरकारी, एक एम्स और तीन निजी अस्पतालों में हैं। इन सभी की निगरानी डॉक्टरों की विशेष टीम कर रही है।

लेकिन सिर्फ आर्थिक सहायता से सवाल खत्म नहीं होते। जनता पूछ रही है कि आखिर इतनी बड़ी त्रासदी को रोकने में विभागीय अधिकारी विफल क्यों रहे? राज्य के औषधि नियंत्रण विभाग में दर्जनों निरीक्षक हैं, जिनका काम ही यह सुनिश्चित करना है कि बाजार में बिकने वाली हर दवा सुरक्षित हो। फिर जहरीला सिरप खुलेआम दुकानों तक कैसे पहुंच गया?

केंद्र सरकार की सख्त कार्रवाई

केंद्र सरकार ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने सभी राज्यों के स्वास्थ्य सचिवों और प्रमुख सचिवों के साथ एक आपात बैठक बुलाई है। यह बैठक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए की जा रही है। जिसका उद्देश्य कफ सिरप की गुणवत्ता की जांच करना और ऐसी घटनाओं को दोबारा रोकने के लिए राज्यों को स्पष्ट दिशा-निर्देश देना है।

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सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने तमिलनाडु एफडीए को पत्र लिखने का निर्णय लिया है ताकि ‘कोल्ड्रिफ’ सिरप बनाने वाली श्रीसन फार्मा पर सख्त कार्रवाई की जा सके। कंपनी का लाइसेंस रद्द करने और उत्पादों को बाजार से वापस बुलाने की प्रक्रिया भी शुरू की जा सकती है।

इस कफ सिरप के भी भेजे गए नमूने

वहीं, जांच में यह भी सामने आया है कि मध्यप्रदेश में सिर्फ ‘कोल्ड्रिफ’ ही नहीं, बल्कि ‘नेक्ट्रो डीएस’ नामक एक अन्य कफ सिरप के भी नमूने जांच के लिए भेजे गए हैं। कुल 19 नमूने एकत्र किए गए हैं, जिनमें एंटीबायोटिक और बुखार की दवाएं भी शामिल हैं। इन सभी रिपोर्टों का इंतजार किया जा रहा है।

राज्य सरकार ने अब इन दोनों सिरपों और उसी कंपनी के सभी उत्पादों की बिक्री पर पाबंदी लगा दी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को चेताया है कि दो साल से कम उम्र के बच्चों को खांसी-जुकाम की दवाएं न दी जाएं, क्योंकि कई बार इनमें मौजूद अल्कोहल और सॉल्वेंट्स छोटे बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं।

राजस्थान-महाराष्ट्र से भी सामने आए मामले

इस बीच, राजस्थान और महाराष्ट्र से भी इसी तरह की मौतों की खबरें सामने आई हैं। राजस्थान के झुंझुनू और सीकर जिलों में चार बच्चों की जान इसी सिरप से गई है। दोनों राज्यों ने तत्काल बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि केरल और तेलंगाना ने एहतियाती अलर्ट जारी किया है।

मृतकों के परिजन अब जवाब मांग रहे हैं कि अगर सिरप में ज़हर था, तो इसकी पहचान समय रहते क्यों नहीं हुई? क्या दवा के सैंपल की टेस्टिंग केवल कागजों में हो रही थी? और क्या यह मामला भी पिछले कई मेडिकल घोटालों की तरह दबा दिया जाएगा?

भारत में इससे पहले भी कफ सिरप से मौतों की घटनाएं हो चुकी हैं। 2022 में गाम्बिया में भारतीय दवा कंपनी मेडेन फार्मा के सिरप से 70 से ज़्यादा बच्चों की मौत हुई थी। 2023 में उज्बेकिस्तान में भी ऐसी ही दवा से 20 बच्चों की जान गई थी। तब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत की दवा गुणवत्ता प्रणाली पर सवाल उठाए थे। अब वही डर एक बार फिर लौट आया है कि क्या भारत से जहरीली दवाओं का एक्सपोर्ट और अब देश के भीतर उनका वितरण, दोनों ही निगरानी से बाहर हैं?

डीसीजीआई ने राज्यों को दिया निर्देश

ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने राज्यों को निर्देश दिए हैं कि हर फार्मा कंपनी को अपनी लैब रिपोर्ट्स तत्काल अपलोड करनी होंगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी उत्पाद में डायथिलीन ग्लाइकॉल या एथिलीन ग्लाइकॉल की मात्रा सुरक्षित सीमा से अधिक न हो। यही रसायन किडनी फेल का कारण बनता है। छिंदवाड़ा में हुई मौतों में भी यही तत्व संदिग्ध पाया गया है।

राज्य सरकार ने इस घटना की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति बनाई है, जो यह पता लगाएगी कि दवा का वितरण कैसे हुआ, किन मेडिकल स्टोर्स ने इसे बेचा और क्या सप्लाई चेन में किसी ने लापरवाही की थी। फिलहाल रिपोर्ट 10 दिन में मांगी गई है, लेकिन आम जनता का भरोसा अब सवालों में है।

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इन मौतों ने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था और दवा नियमन प्रणाली पर गहरे प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। भारत आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवा निर्यातक देश है, लेकिन अगर गुणवत्ता नियंत्रण में इतनी बड़ी खामियां हैं, तो यह सिर्फ एक त्रासदी नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था की विफलता है। दवा के नाम पर मौतें... और फिर राहत राशि देकर फाइल बंद करना, यही हमारा नियामक ढांचा बन गया है। जो माता-पिता अपने बच्चों की लाशें लेकर दर-दर भटक रहे हैं, उनके लिए अब मुआवजा कोई राहत नहीं, बल्कि अपमान बन गया है।

यह मामला सिर्फ छिंदवाड़ा या बैतूल का नहीं, यह सवाल पूरे भारत की फार्मा इंडस्ट्री की साख पर है। अगर जहरीली दवाएं बच्चों की जान ले रही हैं और फिर भी सिस्टम सुस्त है, तो यह देश के हर नागरिक के लिए खतरे की घंटी है। सरकारों को अब केवल मीटिंग्स और नोटिसों से आगे बढ़कर ठोस कदम उठाने होंगे, जैसे दवा कंपनियों की नियमित जांच, उत्पादों की रैंडम टेस्टिंग और दोषियों पर सख्त सज़ा ही इस व्यवस्था को सुधार सकती है।

Location : 
  • New Delhi

Published : 
  • 7 October 2025, 11:45 AM IST