

बरेली में ‘आई लव मोहम्मद’ पोस्टर से जुड़ा विवाद जैसे ही भड़का, देखते-ही-देखते हालात बिगड़ते चले गए। हिंसा फैलाने की तैयारी पहले से की गई थी और इसमें बाहरी उपद्रवियों की बड़ी भूमिका सामने आ रही है। आखिर क्या है पूरा मामला और इसकी इनसाइड स्टोरी, पढ़ें MTA का खास विश्लेषण…
Bareilly: बरेली में ‘आई लव मोहम्मद’ पोस्टर से जुड़ा विवाद जैसे ही भड़का, देखते-ही-देखते हालात बिगड़ते चले गए। हिंसा फैलाने की तैयारी पहले से की गई थी और इसमें बाहरी उपद्रवियों की बड़ी भूमिका सामने आ रही है। पुलिस ने अब तक 62 से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया है, जिनमें मौलाना तौकीर रजा, उनके सहयोगी नदीम और डॉ. नफीस जैसे नाम शामिल हैं। तौकीर रजा का दफ्तर सील कर दिया गया है और उन्हें फर्रुखाबाद की फतेहगढ़ सेंट्रल जेल भेज दिया गया है।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में इस घटना का सटीक विश्लेषण किया-
पुलिस की शुरुआती जांच में साफ हुआ है कि यह हिंसा किसी आकस्मिक प्रतिक्रिया का नतीजा नहीं थी, बल्कि एक गहरी साजिश के तहत इसे अंजाम दिया गया। एसएसपी अनुराग आर्य ने खुलासा किया है कि उपद्रवियों को बाहर से बुलाया गया था। हजियापुर इलाके में हिंसा से एक रात पहले ही हथियार जैसे तमंचे और चाकू बांटे गए। दंगाइयों को साफ निर्देश दिए गए थे कि शहर में उपद्रव करना है। यही नहीं, पुलिस पर फायरिंग तक की गई। इस भीड़ में शामिल कई लोगों की पहचान हो चुकी है और बाकी की तलाश जारी है।
नदीम, जिसे तौकीर रजा का दाहिना हाथ माना जाता है, इस हिंसा का प्रमुख मास्टरमाइंड बताया जा रहा है। पुलिस के अनुसार, उसने 55 लोगों से व्हाट्सएप कॉल पर संपर्क साधा और उन्हें बरेली बुलाया। इन लोगों ने मिलकर करीब 1600 लोगों को जुटाया। योजना यह थी कि सीएए-एनआरसी विरोध प्रदर्शनों की तरह नाबालिगों को आगे रखा जाए, जिससे पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठे। खलील स्कूल तिराहा और पिर श्यामगंज इलाकों में माहौल बिगाड़ने की कोशिश इसी रणनीति का हिस्सा थी।
नदीम पर एक और गंभीर आरोप लगा है कि उसने आईएमसी की ओर से जारी एक पत्र पर लियाकत खान के हस्ताक्षर फर्जी तरीके से किए। यानी हिंसा के साथ-साथ धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े के मामले भी इससे जुड़े हुए हैं।
पुलिस ने अब तक 10 मुकदमे दर्ज किए हैं और 62 लोगों को जेल भेजा जा चुका है। इनमें से 29 उपद्रवियों को सोमवार को ही जेल भेजा गया। इस पूरे मामले में तीन बड़े मास्टरमाइंड सामने आए हैं- मौलाना तौकीर रजा, नदीम और डॉ. नफीस। तीनों अब पुलिस की गिरफ्त में हैं।
डॉ. नफीस, जिन्हें आईएमसी में “अंकल” कहा जाता है, पर भी गंभीर आरोप हैं। पुलिस के मुताबिक उनके और उनके सहयोगियों की करीब 150 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई है। बरेली नगर निगम ने 74 अवैध दुकानों को भी सील कर दिया है। इनमें सिविल लाइंस इलाके की 70 दुकानें शामिल हैं, जिन्हें तौकीर रजा के खास सहयोगी डॉ. तौसीफ ने मजार की आड़ में बनाया था और जिनसे हर महीने लाखों रुपये का किराया वसूला जाता था। निगम ने पहले भी कई नोटिस दिए थे लेकिन तौकीर रजा की धार्मिक और राजनीतिक ताकत के चलते कार्रवाई अटकी हुई थी।
पुलिस की जांच में यह भी सामने आया है कि उपद्रवियों ने पहले से ही पेट्रोल बम बना रखे थे। कांच की बोतलों में पेट्रोल भरकर उन्हें हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया। इन बमों को पुलिस पर फेंका गया, जिससे कई जवान घायल हो गए। हिंसा के बाद मौके से बड़ी संख्या में अवैध हथियार बरामद किए गए हैं।
FIR की कॉपी से यह तथ्य सामने आए हैं कि मौलाना तौकीर रजा और उनके साथियों ने जुमे की नमाज के बाद भीड़ जुटाई और पहले से सोची-समझी साजिश के तहत हिंसा भड़काई। इस भीड़ में अपराधी किस्म के लोगों के साथ-साथ नाबालिग भी शामिल किए गए थे। पुलिस पर फायरिंग, पुलिसवालों के डंडे छीनना और उनके बैच तक नोच लेना, यह सब इस हिंसा की गंभीरता को दर्शाता है। पुलिस ने यह भी खुलासा किया है कि हिंसा की साजिश बेहद खतरनाक स्तर पर रची गई थी।
करीब 40,000 लोगों को बुलाने की स्थानीय रूपरेखा तैयार की जा रही थी और इन्हें 100-100 के ग्रुप में 390 मस्जिदों में ठहराने का इंतजाम किया जा रहा था। जुम्मे की नमाज के बाद बवाल करने की योजना बहुत पहले से बनाई गई थी। हालांकि पुलिस की त्वरित कार्रवाई से यह साजिश पूरी तरह सफल नहीं हो सकी। पुलिस का कहना है कि किसी भी उपद्रवी को छोड़ा नहीं जाएगा। दूसरे जिलों के उपद्रवियों की गिरफ्तारी के लिए जरूरत पड़ने पर वहां की पुलिस की मदद भी ली जाएगी।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच इंटरनेट सेवाएं भी बंद कर दी गई थीं ताकि अफवाहें न फैलें। शनिवार शाम से बंद इंटरनेट को सोमवार सुबह से फिर शुरू कर दिया गया है। बरेली नगर निगम के कमिश्नर संजीव कुमार ने स्पष्ट किया है कि अभी बुलडोजर कार्रवाई का आदेश उनकी ओर से नहीं है, केवल दुकानों को सील किया गया है और जांच चल रही है।
यह हिंसा न सिर्फ बरेली बल्कि पूरे प्रदेश के लिए एक चेतावनी है कि धार्मिक भावनाओं के नाम पर किस तरह सुनियोजित तरीके से माहौल बिगाड़ने की कोशिश की जा सकती है। पुलिस और प्रशासन की सख्ती से फिलहाल बरेली में शांति कायम है, लेकिन इस मामले ने कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं क्या ऐसी साजिशें बिना किसी बड़े नेटवर्क के संभव हैं? और क्या यह नेटवर्क प्रदेश से बाहर तक फैला हुआ है?
यहाँ यह भी जरूरी है कि हम बरेली की घटना को उत्तर प्रदेश के व्यापक सुरक्षा-परिप्रेक्ष्य में देखें। पिछले आठ सालों के दौरान (19 मार्च 2017 से अब तक) प्रदेश में कुछ हाई-प्रोफाइल हिंदू मुस्लिम झड़पें और हिंसा के मामले सामने आए, जिनकी समीक्षा हमें यह समझने में मदद करती है कि त्वरित प्रशासनिक कदम, कानूनी कार्रवाई और समाजिक राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ कैसे एक साथ काम करती हैं।
Kasganj (जनवरी/फरवरी 2018) — यहाँ स्वतंत्रता दिवस से जुड़े कार्यक्रम के दौरान झड़पें हुईं; कई घायल और वाहनों को आग लगने जैसी घटनाएँ हुईं। इसके बाद लंबे समय तक मुक़दमे और न्यायिक प्रक्रिया चली; बाद में मामलों में सख्त फैसले भी दिए गए।
Bulandshahr (दिसंबर 2018) — पशु अवशेष मिलने के बाद विवाद बढ़ा, पुलिस और भीड़ के बीच टकराव हुआ; SHO की हत्या व एक नागरिक की मौत जैसे जघन्य कृत्य सामने आए। पुलिस ने बड़ी संख्या में आरोपियों पर मुकदमे दर्ज किए; मामले की जांच और अभियोजन कई साल तक जारी रहा और कोर्ट ने कुछ आरोपियों को दोषी ठहराया।
Hathras (सितंबर 2020) — एक दलित युवती के साथ कथित बलात्कार और बाद में उसकी मृत्यु ने पूरे देश में आक्रोश पैदा किया। घटना के बाद प्रशासन के तरीकों विशेषकर पोस्टमॉर्टम और कब्र वाले कदमों को लेकर भारी आलोचना हुई; मामले में केंद्रीय जांच और लंबी कानूनी प्रक्रिया रही, और मानवाधिकार समूहों ने सरकार की कार्यवाही पर सवाल उठाए।
Lakhimpur Kheri (3 अक्टूबर 2021) — किसानों के विरोध के दौरान हुई हिंसा जो तुरंत राष्ट्रीय सुर्ख़ियों में तब्दील हो गई। इसमें कई लोग मारे गए और मामले ने केंद्र-राज्य स्तर पर गंभीर राजनीतिक व कानूनी बहस छेड़ दी; उच्च-स्तरीय जांच और SIT आदि के जरिए जांच आगे बढ़ी।
Kanpur झड़पें (3 जून 2022) — कुछ बयान/विवादों के बाद हुए प्रदर्शनों में टकराव और पत्थरबाज़ी हुई; दर्जनों घायल हुए और कई गिरफ्तारियाँ हुईं। पुलिस ने तुरंत कार्रवाइयाँ करते हुए मुक़दमे दर्ज किए तथा SIT बना कर जांच करवाई।
Bahraich दंगा (अक्टूबर 2024) — एक हत्या के बाद हिंदू-मुस्लिम झड़पें हुईं, दुकानें जलीं और एक व्यक्ति की मृत्यु जैसी घटनाएँ रिपोर्ट हुईं। प्रशासन ने इंटरनेट सेवाएँ सीमित कीं, कई गिरफ्तारियाँ कीं और प्रारम्भिक रूप से कुछ संपत्तियों के खिलाफ सील/डिमोलिशन नोटिस जारी किए हालांकि बाद में कुछ नोटिसों को अदालतों में चुनौती का सामना करना पड़ा। इन घटनाओं से एक स्पष्ट पैटर्न उभरता है: हिंसा के तुरंत बाद प्रशासन अक्सर सख्त कदम उठाता- इंटरनेट बंद करना, बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी, संपत्ति सील/जब्ती
प्रशासन इन कदमों को कानून-व्यवस्था की बहाली के रूप में सुझाता है, जबकि आलोचक इन्हें लक्षित और जल्दबाज़ी वाली कार्रवाई भी बताते हैं। बहरहाल, इन मामलों में न्यायिक प्रक्रिया और कोर्ट के आदेश समय के साथ निर्णायक साबित होते हैं यानी तात्कालिक गिरफ्तारी क्रमशः मुक़दमे और अदालत के समक्ष सबूतों के आधार पर परखा जाता है।
बरेली हिंसा मामले ने यह साफ कर दिया है कि धार्मिक और राजनीतिक प्रभाव के नाम पर कानून तोड़ने वालों को अब बख्शा नहीं जाएगा प्रशासन की यह कार्रवाई आने वाले समय में ऐसे उपद्रवियों के लिए एक सख्त संदेश है। साथ ही, पिछले हाई-प्रोफाइल मामलों की तरह यह भी दर्शाता है कि हर कठोर प्रशासनिक कदम को अदालत और मानवाधिकारों की कसौटी पर भी खरा उतरना होता है इसलिए पारदर्शिता, फॉरेंसिक सबूत और सही प्रकार की कानूनी कार्रवाई बेहद ज़रूरी है।
बरेली हिंसा की जांच में चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। पुलिस के मुताबिक, मौलाना तौकीर रजा का दाहिना हाथ नदीम इस हिंसा का मास्टरमाइंड है। उसने 55 लोगों से व्हाट्सऐप कॉल पर बात कर 1600 से ज़्यादा उपद्रवियों को बरेली बुलाया। योजना थी कि सीएए-एनआरसी प्रदर्शन की तरह नाबालिगों को आगे कर माहौल बिगाड़ा जाए। हिंसा में पेट्रोल बम, तमंचे और चाकुओं का इस्तेमाल हुआ। अब तक 62 गिरफ्तारियाँ हो चुकी हैं, जिनमें तौकीर रजा और डॉ. नफीस भी शामिल हैं।
बरेली हिंसा के बाद प्रशासन ने तौकीर रजा के करीबी साथियों पर कड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है। पुलिस के अनुसार, डॉ. नफीस और उनके सहयोगियों की करीब 150 करोड़ की संपत्ति जब्त कर ली गई है। नगर निगम ने सिविल लाइंस इलाके में बनीं 70 अवैध दुकानों को सील किया है। ये दुकानें मजार की आड़ में बनाई गई थीं और हर महीने लाखों रुपये का किराया वसूला जाता था। पुलिस का कहना है कि कानून तोड़ने वालों को किसी हाल में बख्शा नहीं जाएगा।
बरेली की हिंसा कोई पहली घटना नहीं है। योगी सरकार के आठ सालों में कई हाई-प्रोफाइल दंगे और झड़पें हो चुकी हैं। 2018 में कासगंज और बुलंदशहर, 2020 का हाथरस मामला, 2021 का लखीमपुर खीरी कांड, 2022 का कानपुर बवाल और 2024 का बहराइच दंगा- इन सबने यूपी को झकझोर दिया। हर बार प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई की, गिरफ्तारी, इंटरनेट बंद और संपत्ति सील लेकिन आलोचकों ने कई मौकों पर पारदर्शिता पर सवाल भी उठाए। बरेली की हिंसा ने एक बार फिर यूपी की कानून-व्यवस्था की परीक्षा ले ली है।