

सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक लंबे समय से लद्दाख को विशेष संवैधानिक संरक्षण और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग करते रहे हैं। राज्य की मांग को लेकर उनकी गिरफ्तारी ने एक नई चर्चा को जन्म दे दिया है। सोनम पर कई आरोप हैं। आखिर क्या है पूरा मामला और इसकी इनसाइड स्टोरी, पढ़ें ये खास विश्लेषण…
New Delhi: लद्दाख की शांत वादियों में छठी अनुसूची और राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर जो आंदोलन पिछले कई महीनों से चल रहा था, वह 24 सितंबर को अचानक हिंसा में बदल गया। लेह की सड़कों पर हुए इस बवाल में चार लोगों की मौत हो गई और सत्तर से ज्यादा लोग घायल हो गए। हालात इतने बिगड़ गए कि पुलिस को आंसू गैस, लाठीचार्ज और यहां तक कि फायरिंग का सहारा लेना पड़ा। लेह में कर्फ्यू लगाना पड़ा और पूरे लद्दाख में तनाव का माहौल फैल गया। इस हिंसा का सीधा संबंध उस आंदोलन से बताया जा रहा है जिसका चेहरा सोनम वांगचुक पिछले एक साल से बने हुए थे।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में इस कहानी का सटीक विश्लेषण किया ।
इसी हिंसा के दो दिन बाद पुलिस ने सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, यानी एनएसए के तहत गिरफ्तार कर लिया। पहले उन्हें लद्दाख में हिरासत में रखा गया, फिर सुरक्षा कारणों से उन्हें राजस्थान की जोधपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया।
एनएसए एक सख्त कानून है, जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमे के 12 महीने तक हिरासत में रखा जा सकता है, यदि उसके खिलाफ देश की सुरक्षा या कानून-व्यवस्था को खतरे का अंदेशा हो। इसी कानून के तहत पंजाब के अमृतपाल सिंह और मध्य प्रदेश के कुछ नेताओं को पहले भी हिरासत में लिया जा चुका है।
लद्दाख के डीजीपी एस.डी. सिंह जामवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर वांगचुक पर कई गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि सोनम वांगचुक न केवल हिंसा के सूत्रधार हैं, बल्कि उन पर विदेशी फंडिंग और पाकिस्तान से कनेक्शन के शक की भी जांच की जा रही है।
डीजीपी ने दावा किया कि हाल ही में एक पाकिस्तानी खुफिया एजेंट को गिरफ्तार किया गया है, जो वांगचुक के नेतृत्व वाले प्रदर्शनों के वीडियो सीमा पार भेज रहा था। पुलिस के अनुसार, सोनम वांगचुक के भाषणों में लगातार भड़काऊ बातें थीं। उन्होंने अरब स्प्रिंग, नेपाल और बांग्लादेश के आंदोलनों का हवाला देकर लोगों को प्रेरित करने की कोशिश की। डीजीपी ने कहा कि इन भाषणों और सोशल मीडिया पर जारी बयानों ने भीड़ को उकसाने का काम किया, जिसके नतीजे में हिंसा भड़की।
जामवाल ने यह भी बताया कि वांगचुक की कुछ विदेश यात्राएं संदिग्ध हैं। उन्होंने पाकिस्तान के प्रमुख मीडिया हाउस ‘द डॉन’ के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया था और बांग्लादेश भी गए थे। इन यात्राओं को लेकर पुलिस उनकी गतिविधियों की जांच कर रही है।
इसके अलावा उनकी फंडिंग को लेकर भी एफसीआरए यानी विदेशी चंदा नियमन कानून के उल्लंघन का शक है। डीजीपी का कहना है कि जांच में कई ऐसे सुराग मिले हैं जिनसे लगता है कि वांगचुक को विदेश से पैसा मिला हो सकता है। हालांकि अभी तक इन आरोपों के ठोस सबूत सार्वजनिक नहीं किए गए हैं।
गौरतलब है कि वांगचुक लंबे समय से लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि लद्दाख की संस्कृति और नाजुक इकोसिस्टम को बचाने के लिए यह कदम जरूरी है।
उन्होंने पिछले साल 21 दिन का भूख हड़ताल किया था और अक्टूबर 2024 में लद्दाख से दिल्ली तक पैदल मार्च निकाला था, हालांकि दिल्ली पुलिस ने उन्हें सिंघु बॉर्डर से ही हिरासत में ले लिया था। इस साल भी उन्होंने 35 दिन की भूख हड़ताल की, जिसके 15वें दिन यानी 24 सितंबर को लेह में हालात हिंसक हो गए।
हिंसा से पहले केंद्र सरकार और लद्दाख प्रतिनिधियों के बीच 25 सितंबर को एक अनौपचारिक बैठक होने वाली थी। लेकिन डीजीपी जामवाल का आरोप है कि वांगचुक ने उसी दिन भड़काऊ वीडियो जारी कर माहौल बिगाड़ने की कोशिश की।
उनका कहना है कि यह हिंसा कोई आकस्मिक घटना नहीं थी बल्कि सोची-समझी साजिश का नतीजा थी। पुलिस ने अब तक 50 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें 6 को प्रमुख षड्यंत्रकारी माना जा रहा है। तीन नेपाली नागरिक भी गोली लगने के बाद अस्पताल में भर्ती हैं और उनकी भूमिका की जांच की जा रही है।
सोनम वांगचुक कौन हैं, यह सवाल आज हर किसी के मन में है। लद्दाख के रहने वाले 58 वर्षीय वांगचुक को देश-दुनिया में एक इनोवेटर, शिक्षक और पर्यावरण कार्यकर्ता के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने एनआईटी श्रीनगर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और इसके बाद शिक्षा सुधार और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करना शुरू किया। उन्होंने लद्दाख में वैकल्पिक शिक्षा व्यवस्था की शुरुआत की, जिसकी वजह से कई बच्चे बेहतर शिक्षा हासिल कर पाए।
प्रसिद्ध फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ का किरदार फुंसुख वांगडू उन्हीं से प्रेरित बताया जाता है। जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियरों को बचाने के लिए उनका काम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है। यही वजह है कि जब 2019 में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 खत्म कर जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांटा, तो वांगचुक ने इस फैसले का स्वागत किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सोशल मीडिया पर धन्यवाद दिया था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उनका रुख बदला।
लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने के बावजूद वहां के लोग विशेष संवैधानिक संरक्षण चाहते हैं ताकि उनकी संस्कृति और जमीन बाहरी लोगों से बची रह सके। वांगचुक का कहना है कि लद्दाख की भौगोलिक परिस्थितियां बेहद नाजुक हैं और यहां अंधाधुंध विकास से पर्यावरण को नुकसान होगा। इसी चिंता को लेकर उन्होंने छठी अनुसूची की मांग को जोर-शोर से उठाया। उन्होंने कई बार सार्वजनिक रूप से कहा कि उनका आंदोलन पूरी तरह अहिंसक है और उनका लक्ष्य सिर्फ लद्दाख की पहचान को बचाना है।
उनकी इस छवि के कारण ही उनकी गिरफ्तारी ने देशभर में बहस छेड़ दी है। एक तरफ सरकार का दावा है कि वांगचुक युवाओं को हिंसा के लिए भड़का रहे थे और विदेशी ताकतों के इशारे पर काम कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ उनके समर्थक इसे सरकार द्वारा असहमति की आवाज दबाने की कोशिश बता रहे हैं।
सोशल मीडिया पर भी लोगों की राय बंटी हुई है। कुछ लोग उन्हें देशभक्त मानते हैं जो लद्दाख के लिए लड़ रहे हैं, जबकि कुछ उन्हें विदेशी एजेंट तक कह रहे हैं। उनकी पाकिस्तान यात्रा और बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस के साथ पुरानी तस्वीरें भी चर्चा में हैं, जिन्हें लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं।
लेह में हुई हिंसा को लेकर पुलिस की कार्रवाई जारी है। अब तक 50 से ज्यादा गिरफ्तारियां हो चुकी हैं और कई लोगों से पूछताछ की जा रही है। डीजीपी जामवाल ने साफ किया है कि जांच पूरी होने तक कई जानकारियां सार्वजनिक नहीं की जा सकतीं। उन्होंने कहा कि सोनम वांगचुक को राज्य से बाहर इसलिए भेजा गया है ताकि उनकी उपस्थिति से स्थानीय माहौल और न बिगड़े।
इस पूरे मामले में सबसे अहम सवाल यह है कि क्या सचमुच सोनम वांगचुक के खिलाफ लगाए गए आरोपों के पुख्ता सबूत हैं या यह सब महज आंदोलन को दबाने की रणनीति है। अगर विदेशी फंडिंग या पाकिस्तानी कनेक्शन के सबूत मिलते हैं तो यह मामला बेहद गंभीर होगा, लेकिन अगर ऐसा नहीं होता तो यह सरकार की ओर से एक बड़े आंदोलन को दबाने की कोशिश के तौर पर देखा जाएगा। अभी तक सीबीआई और अन्य एजेंसियां इस मामले की गहराई से जांच कर रही हैं।
लद्दाख के लोग इस समय असमंजस में हैं। एक तरफ वे अपने नेता को हिरासत में देख रहे हैं, दूसरी ओर उनके मन में यह डर है कि अगर छठी अनुसूची की मांग पूरी नहीं हुई तो उनकी जमीन और संस्कृति पर खतरा मंडराता रहेगा। 2019 में जिस फैसले का उन्होंने स्वागत किया था, वहीं अब उनके लिए चिंता का कारण बन गया है।
फिलहाल हालात तनावपूर्ण हैं और लेह में कर्फ्यू जारी है। सुरक्षा बलों की भारी तैनाती की गई है ताकि किसी तरह की नई हिंसा को रोका जा सके। सोनम वांगचुक के समर्थक शांतिपूर्ण प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं और उनके परिवार ने सरकार से अपील की है कि उन्हें कम से कम न्यायिक प्रक्रिया का सामना करने दिया जाए।