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मध्य प्रदेश के वरिष्ठ IAS अधिकारी संतोष वर्मा के विवादित बयान ने ब्राह्मण समाज में आक्रोश पैदा कर दिया। बयान के साथ उनके पुराने फर्जी दस्तावेज़, यौन शोषण और भ्रष्टाचार के मामले भी सुर्खियों में आए। सरकार ने नोटिस जारी कर जांच शुरू की है।
ब्राह्मण विवाद को लेकर बड़ा खुलासा
New Delhi: मध्य प्रदेश के वरिष्ठ IAS अधिकारी संतोष वर्मा के बयान को ब्राह्मण समाज के खिलाफ सीधी आपत्तिजनक टिप्पणी माना गया। बयान के बाद जो बवाल उठा, उसने न सिर्फ राज्य सरकार को तुरंत एक्शन लेने पर मजबूर किया बल्कि संतोष वर्मा के पुराने विवाद, जेल, फर्जी दस्तावेज़, यौन शोषण आरोप और प्रमोशन में धांधली जैसे कई दफन मामलों को भी फिर से सुर्खियों में ला दिया। यहां हम विस्तार से समझेंगे कि यह पूरा मामला है क्या, विवाद कैसे भड़का, सरकार और समाज की प्रतिक्रिया क्या रही और आगे इस प्रकरण का रास्ता किस दिशा में जा सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में वरिष्ठ IAS अधिकारी संतोष वर्मा के बयान को लेकर उठे विवाद का सटीक विश्लेषण किया।
मामला शुरू होता है 23 नवंबर को भोपाल के सेकेंड स्टॉप स्थित अंबेडकर मैदान से जहां अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी-कर्मचारी संघ यानी अजाक्स का प्रांतीय अधिवेशन आयोजित किया गया था। इसी कार्यक्रम में संतोष वर्मा ने प्रांताध्यक्ष का पदभार संभाला। मंच पर मौजूद भीड़, माइक हाथ में और सामने उनका समुदाय ऐसे माहौल में उन्होंने एक ऐसा बयान दे दिया जिसने पूरे प्रदेश में आग लगा दी। उन्होंने कहा कि जब तक कोई ब्राह्मण अपनी बेटी मेरे बेटे को दान नहीं करता, तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए।” उनके इस कथन में जिस तरह से “ब्राह्मण बेटी” शब्द का इस्तेमाल हुआ, उसे समाज ने अपमानजनक माना। एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा किसी जाति की महिलाओं के संदर्भ में इस तरह की टिप्पणी को न सिर्फ असंवेदनशील, बल्कि पूरी तरह अनुचित और जातिगत सौदेबाज़ी जैसा भाव माना गया। वीडियो देखते ही देखते वायरल हो गया और प्रदेशभर में आक्रोश की लहर दौड़ पड़ी।
ब्राह्मण समाज के संगठनों ने इसे सीधा-सीधा अपने समाज की महिलाओं का अपमान बताया। अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज सहित कई संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए, ज्ञापन सौंपे और सरकार से कार्रवाई की मांग की। सोशल मीडिया पर लोग यह सवाल उठाने लगे कि एक IAS अधिकारी, जो संविधान और आचार संहिता की शपथ लेकर सेवा में प्रवेश करता है, वह किसी भी समाज की बेटियों को इस तरह “दान” शब्द से कैसे संबोधित कर सकता है? कई लोगों ने इसे जातीय वैमनस्य फैलाने वाला बयान बताया। विवाद बढ़ता गया और सरकार पर दबाव भी।
इसी बीच संतोष वर्मा की प्रतिक्रिया सामने आई। उन्होंने कहा कि उनकी बात को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है, उनका उद्देश्य सामाजिक समरसता को समझाना था और यदि किसी को कष्ट पहुंचा है तो वे क्षमा मांगते हैं। उन्होंने सफाई देते हुए कहा “महिलाओं की भावनाओं को ठेस पहुँचाना मेरा उद्देश्य नहीं था। यदि किसी को दुख पहुंचा है, तो मैं अफसोस जताता हूं। कुछ लोगों ने मेरे भाषण की सिर्फ एक लाइन निकालकर इसे विवादित बनाया।” हालांकि उनकी यह सफाई ब्राह्मण समाज को स्वीकार नहीं हुई। लोगों का कहना था कि बयान की भाषा ही मूल समस्या है जिसे किसी भी तरह “गलतफहमी” या “संदर्भ परिवर्तन” से नहीं समझाया जा सकता।
बयान के बाद बढ़ते तनाव को देखते हुए राज्य सरकार हरकत में आई और तुरंत संतोष वर्मा को नोटिस जारी कर दिया। नोटिस में उनसे पूछा गया कि एक वरिष्ठ अधिकारी होने के बावजूद उन्होंने ऐसा असंवेदनशील कथन क्यों दिया और क्यों न उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए? सरकार के नोटिस में साफ लिखा था कि उनका बयान सामाजिक समरसता पर सीधा प्रहार है और सेवा नियमों का उल्लंघन है। यहीं से मामला प्रशासनिक गलियारे में भी उफान पर आ गया। लेकिन इस विवाद का तूफान यहीं नहीं थमा। जैसे ही संतोष वर्मा सुर्खियों में आए, सोशल मीडिया पर लोग उनके अतीत को खंगालने लगे और तब सामने आया उनके करियर का वह अंधेरा अध्याय, जिसे शायद बहुत लोग भूल चुके थे।
2021 में संतोष वर्मा को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, वह भी एक बेहद गंभीर आरोप में फर्जी दस्तावेज़ बनवाकर प्रमोशन हासिल करने के मामले में। दरअसल, संतोष वर्मा 2012 बैच के IAS अधिकारी हैं। उनसे पहले वे राज्य सेवा में थे और IAS कैडर में प्रमोशन के लिए प्रयासरत थे। इसी दौरान उनके खिलाफ एक आपराधिक केस लंबित था। प्रमोशन पक्का करने के लिए उन्होंने कोर्ट का एक ऐसा दस्तावेज़ लगाकर दिया जिसमें लिखा था कि वे उस मामले में बरी हो चुके हैं। लेकिन जांच में पता चला कि यह दस्तावेज़ फर्जी था। जिस जज के हस्ताक्षर दिखाए गए थे, वह दस्तावेज़ असली नहीं था।
वहीं जज ने खुद पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और इस शिकायत पर MG रोड थाने की पुलिस ने आधी रात संतोष वर्मा को गिरफ्तार कर लिया। यह कोई साधारण आरोप नहीं था यह सीधे तौर पर न्यायपालिका को धोखा देने, गलत रिकॉर्ड लगाने और प्रमोशन पाने के लिए पद के दुरुपयोग का मामला था। इस मामले में उन्हें कई महीने जेल में रहना पड़ा और सरकार ने उन्हें निलंबित भी कर दिया था। आज भी यह मामला अदालत में लंबित है।
जैसे ही यह जानकारी फिर से सामने आई, लोग कहने लगे कि जिस अधिकारी के खिलाफ पहले ही इतने गंभीर आरोप हों, वह समाज पर नैतिकता का उपदेश कैसे दे सकता है? यह मुद्दा सिर्फ ब्राह्मणों के खिलाफ टिप्पणी का नहीं रहा यह बात अब प्रशासनिक ईमानदारी बनाम भ्रष्टाचार की ओर मुड़ गई।
संतोष वर्मा के विवादों का यह पहला अध्याय नहीं है। साल 2016 में उन पर एक महिला ने यौन शोषण का आरोप लगाया था। महिला का आरोप था कि वर्मा ने शादीशुदा होने की बात छुपाकर उसके साथ लिव-इन रिलेशन में रहे और सरकारी क्वार्टर में पति-पत्नी की तरह साथ रहे। बाद में सच्चाई सामने आने पर महिला ने धोखे और शोषण का मामला दर्ज कराया था। हालांकि यह मामला आगे नहीं बढ़ पाया, लेकिन उस समय भी संतोष वर्मा की छवि को बड़ा झटका लगा था।
इन मामलों के अलावा उनकी कार्यशैली को लेकर भी अक्सर शिकायतें सामने आती रही हैं। कभी घरेलू विवाद, कभी स्टाफ से दुर्व्यवहार, कभी निर्णय प्रक्रियाओं में पक्षपात ये मुद्दे प्रदेश के प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय रहे हैं। लेकिन हर बार मामला किसी न किसी तरह ठंडे बस्ते में चला गया। इसलिए इस बार जब वे एक सार्वजनिक मंच से किसी समुदाय की बेटियों पर टिप्पणी करते पकड़े गए, तो लोगों ने कहा अब बहुत हो चुका।
इस विवाद ने एक और महत्वपूर्ण बहस को जन्म दिया है क्या हमारे प्रशासनिक ढांचे में ऐसी व्यवस्था है कि जिन अधिकारियों पर गंभीर आरोप हों, वे भी बिना किसी ठोस कार्रवाई के वर्षों तक पद पर बने रहते हैं? क्या कानूनी प्रक्रियाएँ इतनी धीमी हैं कि फर्जी दस्तावेज़ जैसे अपराध का निर्णय वर्षों तक नहीं आता? क्या सरकारें ऐसे विवादित अधिकारियों को बचाती रहती हैं क्योंकि वे किसी न किसी स्तर पर उपयोगी साबित होते हैं? संतोष वर्मा का मामला इन सभी सवालों को फिर से प्रज्वलित कर गया है।
दूसरी ओर राजनीति भी इस मामले में सक्रिय हो गई है। विपक्ष सरकार पर आरोप लगा रहा है कि अगर सरकार वास्तव में समानता, सामाजिक समरसता और महिलाओं के सम्मान की बात करती है, तो फिर ऐसे अधिकारी को तुरंत सस्पेंड क्यों नहीं किया गया? सरकार का नोटिस देना एक शुरुआती प्रक्रिया है, लेकिन लोग जानना चाहते हैं कि क्या यह सिर्फ औपचारिकता है या फिर कार्रवाई वास्तव में आगे बढ़ेगी?
जहां समाज के बड़े हिस्से में रोष है, वहीं कुछ लोग यह तर्क भी दे रहे हैं कि संतोष वर्मा के बयान को उनके संपूर्ण भाषण के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। उनका कहना है कि उन्होंने सामाजिक संरचनाओं पर व्यंग्य किया था। लेकिन आलोचकों का कहना है कि संवैधानिक पद पर बैठे अधिकारी शब्दों का चयन ऐसे नहीं कर सकते जिससे किसी समुदाय की बेटियों का अपमान झलके और जब बयान में “दान” जैसा शब्द इस्तेमाल किया गया, तो उसका बचाव करना लगभग असंभव हो जाता है।
अब बड़ा प्रश्न यह है आगे क्या? क्या सरकार संतोष वर्मा को सस्पेंड करेगी? क्या उनके खिलाफ विभागीय जांच अब तेज़ होगी? क्या फर्जी दस्तावेज़ वाला मामला अब फिर से गति पकड़ेगा? क्या यौन शोषण समेत पुराने मामलों पर भी नई जांच हो सकती है? क्या संतोष वर्मा इस विवाद का सामना कर पाएंगे, या यह विवाद उनके करियर का निर्णायक मोड़ साबित होने वाला है?