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देशभर में चुनाव आयोग के इंटेंसिव स्पेशल रिविजन (SIR) अभियान के दौरान बूथ लेवल अधिकारियों (BLO) की बढ़ती मौतों ने पूरे सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अलग-अलग राज्यों से आत्महत्या, हार्ट अटैक, बीमारी और फील्ड वर्क के दौरान मौत की घटनाएं सामने आ रही हैं।
देशभर में BLO की मौत पर बड़ा खुलासा
New Delhi: देशभर में SIR अभियान के दौरान BLO की बढ़ती मौतों ने चुनावी सिस्टम की सच्चाई उजागर कर दी है। उत्तर प्रदेश, बंगाल, गुजरात समेत कई राज्यों में तनाव, दबाव और अव्यावहारिक लक्ष्य ने हालात बिगाड़ दिए हैं। ऐसे में ये सवाल लगातार उठ रहा है कि क्या हमारे चुनावी सुधारों की कीमत उन लोगों की जान बन गई है जो लोकतंत्र की नींव पर खड़े हैं। यहां हम विस्तार से समझेंगे कि SIR है क्या, यह क्यों जरूरी है और क्यों उसी प्रक्रिया के चलते देश में बूथ लेवल अधिकारियों यानी BLO की मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में देश में लगातार हो रहीं BLO की मौतों को लेकर सटीक विश्लेषण किया।
चुनाव आयोग हर साल मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण करता है ताकि वोटर लिस्ट बिल्कुल साफ, सटीक और अद्यतन रह सके। इसी प्रक्रिया को इंटेंसिव स्पेशल रिविजन यानी ISR या SIR कहा जाता है। इस दौरान नए वोटरों के नाम जोड़े जाते हैं, मृत मतदाताओं के नाम हटाए जाते हैं, पते में बदलावों को अपडेट किया जाता है, डुप्लिकेट नामों को हटाया जाता है और मतदाता सूची को पूरी तरह से पारदर्शी और त्रुटिहीन बनाने की कोशिश की जाती है।
यह काम कागजों पर जितना आसान दिखता है, जमीन पर उतना ही चुनौतीपूर्ण होता है। BLO को घर-घर जाना पड़ता है, फॉर्म भरवाने पड़ते हैं, दस्तावेज़ लेने होते हैं, फिर इन सबको ऐप और पोर्टल पर अपलोड करना होता है और ये सब एक सख्त समयसीमा में पूरा करना होता है। मतलब, मतदाता सूची की शुद्धता का पूरा बोझ सीधे उसी व्यक्ति पर है जो सबसे निचले स्तर पर काम करता है यानी की BLO पर।
इसी समय SIR देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में चल रहा है, जिनमें पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, केरल, गोवा, पुडुचेरी, अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप शामिल हैं। और इन्हीं राज्यों से लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं जो चुनावी सिस्टम को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती हैं। रिपोर्टों के मुताबिक देश में अब तक लगभग 20 BLO की मौतें SIR के दौरान हुई हैं, हालांकि कई राज्य-स्तरीय संगठन और विपक्षी दल यह संख्या इससे कहीं अधिक बता रहे हैं। ये मौतें सिर्फ संख्याएं नहीं हैं, बल्कि ये लोकतंत्र के उन अनसुने योद्धाओं की कहानियां हैं जो जिम्मेदारी, दबाव और असहनीय कार्यभार के बीच टूटते चले गए।
सबसे पहले बात करते हैं उत्तर प्रदेश की, जहां चार BLO की मौत की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है। गोंडा जिले के BLO विपिन यादव की आत्महत्या पूरे प्रदेश को झकझोर देने वाली घटना थी। बताया गया कि वह लगातार ड्यूटी के दबाव, अधिकारियों की कड़ाई, रोज़-रोज़ बढ़ते लक्ष्य और मानसिक तनाव की वजह से टूट चुके थे। उन्होंने जहर खाकर जीवन समाप्त कर लिया। लखनऊ में एक BLO की हार्ट अटैक से मौत हुई, जहां परिवार का कहना है कि थकान और लगातार ड्यूटी ने उनकी हालत खराब कर दी थी। फतेहपुर में एक BLO बीमारी के दौरान आराम और उचित इलाज न मिलने के कारण चल बसे और शिक्षक संगठनों ने इसे साफ-साफ सरकारी लापरवाही बताया है।
पश्चिम बंगाल में हालात और ज्यादा भयावह बताए जाते हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया है कि SIR के दौरान 28 लोगों की मौत हुई है, हालांकि इस आंकड़े की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई। मुर्शिदाबाद, मालदा और नादिया जिलों से कई BLO शारीरिक और मानसिक तनाव के चलते अस्पतालों में भर्ती हुए। आरोप है कि 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के शिक्षकों को भी घर-घर सर्वे और ऐप-आधारित डेटा अपलोड की जिम्मेदारी दी जा रही है, जिससे वे टूट रहे हैं। बंगाल के शिक्षक संगठनों का कहना है कि BLO सुबह से शाम तक फील्ड में रहते हैं और रात को कई घंटे ऑनलाइन एंट्री करनी पड़ती है। सर्वर बार-बार क्रैश होता है और काम का दबाव लगातार बढ़ता है।
मध्य प्रदेश में भी स्थिति कम चिंताजनक नहीं है। सागर, रीवा और बालाघाट में BLO की मौत और गंभीर बीमारियों के मामले सामने आए हैं। एक BLO की ब्रेन स्ट्रोक से मौत हुई। कई BLO ने बताया कि दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों में रोज़ाना कई किलोमीटर पैदल चलकर सर्वे करना पड़ता है और इसके बावजूद अधिकारियों का “टारगेट हर हाल में पूरा करो” कहना एक असहनीय माहौल बना रहा है।
The MTA Speaks: चुनाव आयोग पर बड़ा सवाल; क्या लोकतंत्र पर भरोसा डगमगा रहा है? पढ़ें पूरा विश्लेषण
गुजरात में चार BLO की मौत दर्ज की गई है। राज्य के कई प्रतिशत BLO शिकायत कर रहे हैं कि ऐप और पोर्टल की खराब तकनीकी प्रणाली उन्हें रात–रात जागने पर मजबूर कर रही है। सर्वर फेल होने पर उन्हें आधी रात को भी काम पूरा करना पड़ता है, ताकि अगले दिन अधिकारियों की डांट से बच सकें। तमिलनाडु और केरल से भी एक-एक BLO की मौत की खबरें हैं। केरल में एक BLO की घर लौटते समय अचानक मौत हो गई, जिसे लगातार फील्ड वर्क और थकान से जोड़ा गया।
महाराष्ट्र के विदर्भ, धुले और नंदूरबार क्षेत्रों में दो BLO की मौत रिपोर्ट हुई है। कई महिला BLO के अस्पताल में भर्ती होने, चक्कर आने, गिरने और बेहोश होने के मामले सामने आए हैं। आदिवासी क्षेत्रों में BLO को रोज़ 40-50 किलोमीटर तक सर्वे करने को मजबूर होना पड़ रहा है। शिक्षक संगठनों का कहना है कि स्वास्थ्य सुविधाएं नाममात्र भी उपलब्ध नहीं हैं।
राजस्थान के कोटा, झालावाड़ और बीकानेर जिलों में BLO की मौत और बेहोशी का मामला सुर्खियों में है। कई शिक्षकों ने बताया कि अधिकारियों द्वारा अव्यावहारिक लक्ष्य तय किए जा रहे हैं, जिन्हें पूरा करना मानव क्षमता से बाहर है। कई BLO ने इस बात की शिकायत की है कि उन्हें इंसानों की तरह नहीं, बल्कि मशीन की तरह काम कराया जा रहा है।
बिहार, झारखंड, ओडिशा और जम्मू-कश्मीर से भी लगातार तनाव, बीमारी और कार्यदबाव के चलते BLO के गंभीर रूप से बीमार होने की रिपोर्टें आ रही हैं। बिहार में दो BLO की मौत के बाद शिक्षक संगठनों ने ‘Halt SIR’ अभियान शुरू कर दिया है। झारखंड में नक्सल क्षेत्र में BLO की सुरक्षा सबसे बड़ी चिंता है। जम्मू-कश्मीर के पर्वतीय इलाकों में BLO को 8-10 किलोमीटर पैदल चलकर घर-घर जाना पड़ रहा है।
इस सबके बीच SIR का एक दूसरा और खतरनाक पहलू भी सामने आया है कि काम में देरी या त्रुटियों के आरोप में BLO पर मुकदमे दर्ज होने लगे हैं। गौतम बुद्ध नगर, यानी नोएडा में चार FIR दर्ज हुई हैं, जिसमें 60 से अधिक कर्मचारियों को नामजद किया गया है। इनमें BLO, सहायक BLO और सुपरवाइज़र शामिल हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या BLO सरकार और सिस्टम के बीच पिसने वाली सबसे कमजोर कड़ी बन गए हैं।
विपक्षी दलों ने SIR के दौरान हो रही मौतों पर सरकार और चुनाव आयोग दोनों को कठघरे में खड़ा किया है। कांग्रेस ने कहा है कि BLO लोकतंत्र की रीढ़ हैं और उनकी मौतें प्रणाली की असंवेदनशीलता का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। तृणमूल कांग्रेस ने इसे चुनाव आयोग की विफलता बताया है। समाजवादी पार्टी ने गोंडा के BLO विपिन यादव की आत्महत्या को प्रशासनिक दमन का परिणाम बताया और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की है। शिवसेना (UBT) ने महाराष्ट्र में BLO की सेहत और सुरक्षा को लेकर सरकार पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
वहीं चुनाव आयोग का कहना है कि SIR एक अनिवार्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया है और राज्यों को BLO के लिए सुरक्षित कार्य वातावरण देने के आदेश दिए गए हैं। आयोग ने इन मौतों पर राज्यों से रिपोर्ट मांगी है और कुछ स्थानों पर समय सीमा भी बढ़ाई है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि BLO संगठन अभी भी सिस्टम की कठोरता, तकनीकी समस्याओं, अत्यधिक कार्यभार और अव्यावहारिक समयसीमा का सामना कर रहे हैं।
आज की इस पूरी तस्वीर का सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या लोकतंत्र की बुनियाद पर खड़े उन्हीं लोगों की जान जोखिम में डालकर हम मतदाता सूची को बेहतर बनाने का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं? मतदाता सूची की सटीकता आवश्यक है, लेकिन उसे बनाने वाले लोगों की सुरक्षा, सम्मान और मानसिक स्वास्थ्य उससे कहीं अधिक आवश्यक हैं। BLO एक मशीन नहीं, इंसान हैं और जब उन्हीं पर सबसे ज्यादा बोझ पड़ेगा तो लोकतंत्र का यह सबसे निचला स्तंभ कमजोर हो जाएगा। ज़रूरत इस बात की है कि सरकार, चुनाव आयोग और प्रशासन मिलकर BLO को राहत देने के लिए ठोस और मानवीय नीतियां बनाएं। तकनीकी सुविधाएं बेहतर हों, फील्ड वर्क का बोझ कम किया जाए, समयसीमा व्यावहारिक बनाई जाए और BLO पर मुकदमे दर्ज करने जैसी दमनकारी कार्रवाइयों पर तुरंत रोक लगे।