The MTA Speaks: संचार साथी ऐप पर देश में बवाल- सुरक्षा का कवच या डिजिटल जासूसी का खतरा? पढ़ें पूरा विश्लेषण

संचार साथी ऐप को लेकर देश में कड़ा विवाद खड़ा हो गया है। सरकार इसे मोबाइल सुरक्षा का बड़ा हथियार बता रही है, जबकि विपक्ष इसे डिजिटल निगरानी का खतरा मान रहा है। ऐप की परमिशन, डेटा नीति और पारदर्शिता पर उठ रहे सवालों ने सियासत को गर्म कर दिया है।

Updated : 4 December 2025, 9:11 AM IST
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New Delhi: देश में इस समय एक ऐप को लेकर ऐसा तूफान उठा है, जिसने शीतकालीन सत्र की ठंड को भी पिघला दिया है। संसद से लेकर सोशल मीडिया और सड़क तक, हर जगह सिर्फ एक ही बहस हावी है-संचार साथी ऐप। सरकार ने स्मार्टफोन कंपनियों को आदेश दिया कि भारत में बिकने वाले सभी नए स्मार्टफोन में यह ऐप प्री-इंस्टॉल होना चाहिए और पहले से इस्तेमाल हो रहे फोन में इसे सॉफ़्टवेयर अपडेट के जरिए पहुंचाया जाएगा। बस फिर क्या था-इस फैसले ने राजनीति, तकनीकी जगत, नागरिक-अधिकार संगठनों और डिजिटल विशेषज्ञों के बीच एक तीखी बहस छेड़ दी।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks  में संचार साथी ऐप को लेकर संसद तक हो रहे घमासान पर सटीक विश्लेषण किया।

आज हम आपको विस्तार से बताएंगे आखिर क्या है संचार साथी ऐप, सरकार ने क्यों इसे मोबाइल में प्री-डाउनलोड करने का आदेश दिया, क्यों विपक्षी दल इसे आम आदमी की निजता और सुरक्षा के लिए खतरा मान रहे हैं, क्या इससे आपकी जासूसी संभव है, क्या हैं इसके फायदे और क्या हैं इसके नुकसान, और संचार साथी ऐप को लेकर किस तरह की तकनीकी और कानूनी बहस ने पूरे देश में हलचल मचा दी है। संचार साथी ऐप से जुड़ी हर बात का हम करेंगे गहन विश्लेषण।

संचार साथी ऐप बना 2025 का सबसे गर्म मुद्दा

सबसे पहले जानते हैं कि संचार साथी ऐप है क्या और सरकार इसको लेकर क्या दावा करती है। संचार साथी ऐप को दूरसंचार विभाग यानी DoT ने विकसित किया है। यह एक सेंट्रलाइज्ड मोबाइल सिक्योरिटी प्लेटफॉर्म है, जो वेब पोर्टल और मोबाइल ऐप- दोनों रूपों में काम करता है। इसे एक ऐसे सिंगल प्लेटफॉर्म के रूप में डिजाइन किया गया है जहाँ मोबाइल सुरक्षा और उपभोक्ता-सुरक्षा से जुड़ी कई सेवाएं एक जगह उपलब्ध हों। इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से उपयोगकर्ता IMEI जाँच सकते हैं, मोबाइल चोरी या गुम होने की रिपोर्ट कर सकते हैं, फ्रॉड की शिकायत दर्ज करा सकते हैं और अपने नंबरों से जुड़े संभावित जोखिमों की जानकारी देख सकते हैं। इसका सबसे चर्चित फीचर CEIR- Central Equipment Identity Register से इसका इंटीग्रेशन है, जिसकी मदद से किसी भी चोरी या गुम हुए मोबाइल फोन को पूरे देश में सभी नेटवर्क पर ब्लॉक किया जा सकता है। यानि अगर आपका फोन चोरी हो जाए, तो इसका IMEI ब्लॉक करने से वह किसी भी नेटवर्क पर काम नहीं करेगा। इस पर IMEI नंबर के जरिए यह भी पता लगाया जा सकता है कि आपका फोन असली है या नकली, और कहीं कोई क्लोन फोन तो आपके नाम पर इस्तेमाल नहीं किया जा रहा।

संचार साथी ऐप का एक बड़ा फीचर यह भी है कि उपयोगकर्ता अपने Aadhaar या किसी अन्य वैध आईडी से लिंक मोबाइल नंबर चेक कर सकते हैं और यह देख सकते हैं कि उनके नाम पर कितने मोबाइल कनेक्शन जारी हैं। इससे सिम कार्ड फ्रॉड और फर्जी मोबाइल कनेक्शन रोकने में मदद मिल सकती है। साथ ही यह ऐप संदिग्ध और स्पैम कॉल की रिपोर्टिंग की सुविधा देता है, जिससे दूरसंचार विभाग ऐसे नंबरों के खिलाफ कार्रवाई कर सके। चोरी हुए फोन को ढूंढने में यह ऐप पुलिस की जांच को सरल बनाता है, क्योंकि इससे डिवाइस का IMEI ट्रैक और ब्लॉक करने की प्रक्रिया तेज होती है। सरकार का दावा है कि संचार साथी ऐप का उद्देश्य उपभोक्ताओं को साइबर फ्रॉड से बचाना, फोन चोरी से निपटने की प्रक्रियाओं को आसान बनाना और मोबाइल सुरक्षा के प्रति देश में जागरूकता बढ़ाना है।

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सरकार बनाम विपक्ष की सबसे बड़ी डिजिटल जंग

यह ऐप सबसे पहले 2023 में वेब पोर्टल के रूप में शुरू किया गया था और जनवरी 2025 में इसे मोबाइल ऐप के रूप में लॉन्च किया गया। शुरुआत में इस ऐप को लेकर ज्यादा विवाद नहीं हुआ, क्योंकि यह स्वैच्छिक था। लेकिन 28 नवंबर 2025 को दूरसंचार विभाग ने स्मार्टफोन निर्माताओं और आयातकों को एक नया आदेश जारी करते हुए कहा कि भारत में बिकने वाले सभी स्मार्टफोन में संचार साथी ऐप प्री-इंस्टॉल होना चाहिए और मौजूदा फोनों पर इसे सॉफ्टवेयर अपडेट के माध्यम से भी रोलआउट किया जाना चाहिए। इस आदेश को लागू करने के लिए 90 दिनों की समयसीमा तय की गई। सरकार का कहना है कि यह उपभोक्ता सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों से जुड़ा कदम है। यदि मोबाइल सुरक्षा और उपभोक्ता संरक्षण को मजबूत करना है, तो यह ऐप जनता तक पहुँचाना जरूरी है।

लेकिन विवाद यहीं से शुरू होता है। जैसे ही यह निर्देश आया, विपक्षी दल, नागरिक-अधिकार समूह और गोपनीयता विशेषज्ञ सरकार पर हमलावर हो गए। विपक्ष का तर्क है कि किसी भी सरकार द्वारा किसी डिजिटल टूल को फोन में अनिवार्य रूप से प्रीलोड कराने का आदेश निजता, नागरिक स्वतंत्रता और उपभोक्ता अधिकारों के खिलाफ है। उनका कहना है कि यदि कोई ऐप अनिवार्य रूप से फोन में होगा, तो यह भविष्य में निगरानी और डाटा एक्सेस के लिए रास्ता खोल सकता है। कई विपक्षी सांसदों ने संसद में पूछा कि क्या ऐप केवल IMEI और साइबर-सुरक्षा के उद्देश्य तक सीमित रहेगा? क्या ऐप उपयोगकर्ता के लोकेशन डाटा, मेटाडेटा, संचार पैटर्न या अन्य संवेदनशील जानकारी तक पहुँच सकता है? क्या इसके लिए कोई स्पष्ट कानूनी ढांचा है? क्या इसका कोड, डाटा नीति और सुरक्षा मानकों का स्वतंत्र ऑडिट सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जाएगा? इन सवालों ने संसद के भीतर भारी हंगामे को जन्म दिया और इसे शीतकालीन सत्र के सबसे गर्म मुद्दों में से एक बना दिया।

सरकार बनाम विपक्ष की सबसे बड़ी डिजिटल जंग

डेटा प्रोटेक्शन विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही सरकार का उद्देश्य उपभोक्ता सुरक्षा हो, लेकिन किसी भी डिजिटल टूल को अनिवार्य रूप से प्रीलोड करना “यूज़र-कंट्रोल” के सिद्धांत के खिलाफ है। स्मार्टफोन उद्योग भी इस मुद्दे पर असहज दिखा। कई बड़ी तकनीकी कंपनियों ने कहा कि वे सरकारी नियमन का पालन करेंगी, लेकिन उपयोगकर्ताओं के अनुभव, डाटा गोपनीयता और डिवाइस पर पहले से मौजूद ऐप्स की संख्या बढ़ने जैसी चुनौतियों को देखते हुए यह निर्देश तकनीकी रूप से भी बोझ बढ़ा सकता है। अंतरराष्ट्रीय कंपनियों- विशेषकर Apple जैसी कंपनियों के लिए यह मुद्दा संवेदनशील है क्योंकि वे पहले से ही प्रीलोडेड सरकारी ऐप्स को लेकर कई देशों में विरोध दर्ज करा चुकी हैं। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि इस आदेश से ‘सॉफ्टवेयर बLOAT’ बढ़ेगा और यह ऐप इकोसिस्टम की स्वतंत्रता पर असर डाल सकता है। इसलिए नीति-निर्माताओं और उद्योग जगत के बीच तकनीकी और कानूनी बातचीत जरूरी है।

एक सकारात्मक पक्ष यह भी है कि यदि ऐप पारदर्शी तरीके से काम करे और केवल IMEI, चोरी-रिपोर्टिंग, और साइबर-अवेयरनेस तक सीमित रहे, तो यह मोबाइल फ्रॉड रोकने में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है। साल 2024–25 में मोबाइल फ्रॉड और डिजिटल धोखाधड़ी के मामलों में भारी वृद्धि देखी गई। रिपोर्टों के अनुसार इस अवधि में कुल 800 करोड़ रुपये से अधिक की रकम फ्रॉड के माध्यम से लोगों से छीनी गई। इसी को देखते हुए सरकार मोबाइल सुरक्षा को लेकर अधिक कठोर कदम उठाने के पक्ष में है। संचार साथी ऐप के वेब संस्करण ने पिछले एक साल में लाखों शिकायतें प्राप्त की हैं जिनमें फर्जी कनेक्शन, धोखाधड़ी, फ्रॉड कॉल और साइबर अपराध शामिल थे। इन शिकायतों में बड़ी संख्या उन लोगों की थी जिनके नाम पर फर्जी सिम कार्ड जारी कर साइबर अपराधियों ने बैंक खातों में घुसपैठ की। ऐसे मामलों में संचार साथी ऐप के उपयोग से जांच में तेजी आई।

लेकिन चिंताएँ खत्म नहीं होतीं। अब बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या इस ऐप से किसी की जासूसी संभव है? तकनीकी विशेषज्ञ कहते हैं कि यह ऐप जासूसी कर पाएगा या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उसे कौन-कौन सी परमिशन्स दी जाती हैं। यदि किसी ऐप को डिवाइस-लेवल एक्सेस मिले, बैकग्राउंड में चलने की अनुमति हो, लोकेशन ट्रैकिंग मिले या सिस्टम लॉग एवं नेटवर्क लॉग तक पहुँच का विकल्प हो- तो निगरानी की संभावनाएँ पैदा हो सकती हैं। इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि सरकार पॉलिसी स्तर पर पूरी स्पष्टता दे कि ऐप को कौन-सी परमिशन्स चाहिए होंगी, डेटा कहाँ स्टोर किया जाएगा, क्या डेटा एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड होगा, कौन-से सर्वर उपयोग किए जाएंगे, और क्या जनता के पास इसे अनइंस्टॉल या डिसेबल करने का वास्तविक विकल्प होगा।

संसद में सफाई देने उतरे मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया

जैसे ही विवाद बढ़ा, केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया संसद में सफाई देने उतरे। उन्होंने सदन में कहा कि संचार साथी ऐप पूरी तरह उपभोक्ता सुरक्षा के लिए डिज़ाइन किया गया है और इसे लेकर अफवाहें फैलाने की जरूरत नहीं है। मंत्री सिंधिया ने कहा कि पिछले साल ही भारत में लगभग 800 करोड़ रुपये के फ्रॉड हुए थे और सरकार का उद्देश्य जनता को इस फ्रॉड के कैंसर से बचाना है। उनका कहना है कि यह ऐप अनिवार्य नहीं है, बल्कि यदि उपयोगकर्ता इसे इस्तेमाल करना चाहते हैं तभी वे इसे एक्टिवेट करें, वरना इसकी कोई बाध्यता नहीं है। उन्होंने यह भी साफ किया कि इस ऐप की मदद से किसी की जासूसी संभव नहीं है और यह केवल सुरक्षा-संबंधी उद्देश्यों के लिए ही उपयोग होता है। सिंधिया का कहना है कि सरकार की जिम्मेदारी है कि सही सुरक्षा उपकरण लोगों तक पहुंचाए जाएं ताकि नागरिक धोखाधड़ी और साइबर अपराधों से बच सकें।

हालांकि सरकार की इस सफाई से विवाद थोड़ा शांत तो हुआ है, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं। डिजिटल अधिकार कार्यकर्ता और साइबर विशेषज्ञ अब भी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि किसी भी सरकारी सुरक्षा उत्पाद के लिए पूर्ण पारदर्शिता अत्यंत आवश्यक है। उनकी मांग है कि ऐप का सोर्स कोड, डाटा हैंडलिंग पॉलिसी, एन्क्रिप्शन के तरीके, सर्वर लोकेशन और स्वतंत्र सुरक्षा ऑडिट की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए। उनका कहना है कि जब तक ऐसा नहीं होता, जनता में संशय बना रहेगा। डिजिटल राइट्स समूहों का तर्क है कि यदि सरकार अपने इरादों में पूरी तरह पारदर्शी हो, तो संचार साथी ऐप वास्तव में जनता का साथी बन सकता है- लेकिन अपारदर्शिता और अनिवार्यता लोगों में अविश्वास पैदा करती है।

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डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट

भारत में डेटा प्रोटेक्शन कानून अभी भी विकसित हो रहा है। डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (DPDP Act) 2023 लागू हुआ है लेकिन उसकी कई नियमावली अभी पूरी तरह तैयार नहीं। ऐसे में किसी भी सरकारी ऐप से जुड़ी डेटा पॉलिसी का स्पष्ट होना आवश्यक हो जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐप को केवल न्यूनतम डेटा ही लेना चाहिए- यानि जितना जरूरत हो उससे ज़्यादा नहीं। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ऐप बिना उपयोगकर्ता की सहमति के कोई डेटा प्रोसेस नहीं करे। अंतरराष्ट्रीय मानक भी यही कहते हैं कि किसी भी सुरक्षा उपकरण को लागू करने से पहले उसके जोखिम का स्वतंत्र ऑडिट किया जाए और डेटा का दुरुपयोग रोकने के ठोस उपाय किए जाएं।

यही वजह है कि संचार साथी ऐप पर विवाद आगे भी बढ़ सकता है। यदि सरकार पारदर्शिता बढ़ाती है- और ऐप के सभी तकनीकी विवरण और डेटा नीति को सार्वजनिक करती है- और यदि उद्योग, विशेषज्ञों और नागरिक समाज से परामर्श के बाद इसके दिशानिर्देश बनाए जाते हैं, तो यह ऐप देश में मोबाइल सुरक्षा को मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। लेकिन यदि पारदर्शिता नहीं हुई, यदि ऐप की परमिशन्स स्पष्ट नहीं हुईं, यदि स्वतंत्र ऑडिट नहीं हुए- तो यह विवाद और गहराएगा और सरकार का उद्देश्य अधूरा रह सकता है। लोग इसे इस्तेमाल करने से बचेंगे और सुरक्षा का लाभ जनता तक नहीं पहुंच पाएगा।

Location : 
  • New Delhi

Published : 
  • 4 December 2025, 9:11 AM IST