

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने स्वामी राम भद्राचार्य के खिलाफ चल रहे अपमानजनक वीडियो को लेकर मेटा और गूगल को 48 घंटे में हटाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने याचिका के आधार पर इसे दिव्यांगों की गरिमा का उल्लंघन माना।
इलाहाबाद हाईकोर्ट
Prayagraj: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने जगतगुरु स्वामी राम भद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट के कुलपति स्वामी राम भद्राचार्य के खिलाफ इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्मों पर प्रसारित आपत्तिजनक वीडियो को 48 घंटे के भीतर हटाने का सख्त निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने शरद चंद्र श्रीवास्तव व अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।
कोर्ट ने इस मामले में मेटा प्लेटफॉर्म्स इंक (फेसबुक, इंस्टाग्राम) और गूगल एलएलसी (यू ट्यूब) को स्पष्ट रूप से आदेश दिया कि वे याचियों से प्राप्त संबंधित यूआरएल लिंक के आधार पर आपत्तिजनक सामग्री को तुरंत हटाएं। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि कार्रवाई 48 घंटे के भीतर पूरी हो।
इलाहाबाद हाईकोर्ट
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से अनुरोध किया कि केंद्र और राज्य सरकारें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगाम कसने के लिए स्पष्ट और सख्त नियम बनाएं और उनका पालन सुनिश्चित करें। याचिका में बताया गया कि गोरखपुर निवासी यूट्यूबर और संपादक शशांक शेखर अपने सोशल मीडिया चैनलों (फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब) पर 29 अगस्त से लगातार स्वामी राम भद्राचार्य के खिलाफ अपमानजनक और अवमाननात्मक वीडियो चला रहे हैं।
विशेष रूप से "राम भद्राचार्य पर खुलासा 16 साल पहले क्या हुआ था" नाम से चल रहे वीडियो में स्वामी जी की दिव्यांगता का मजाक उड़ाया गया है। स्वामी राम भद्राचार्य जन्म से ही नेत्रहीन हैं और वे दिव्यांगों के लिए शिक्षा व सेवा के कार्य में अग्रणी रहे हैं। याचिका में यह भी कहा गया कि बार-बार आग्रह के बावजूद न तो यूट्यूबर ने वीडियो हटाया और न ही इंटरनेट प्लेटफॉर्म्स ने स्वयं कोई कार्रवाई की।
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कोर्ट ने पहले ही 17 सितंबर को इस मामले में संज्ञान लेते हुए मेटा, गूगल, यूट्यूब आदि को नोटिस जारी कर दिया था। कोर्ट ने इन सभी कंपनियों के शिकायत निवारण अधिकारियों से कहा था कि याचिका मिलने के एक सप्ताह के भीतर सभी आपत्तिजनक वीडियो के खिलाफ कार्रवाई करें और उन्हें हटाएं। साथ ही, कोर्ट ने दिव्यांगजन अधिकारिता के लिए कार्यरत राज्य आयुक्त को भी निर्देशित किया कि वे संपादक शशांक शेखर से स्पष्टीकरण लें और आवश्यक विधिक कार्रवाई करें।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने माना कि पहली दृष्टि में यह मामला न केवल मानहानि का है, बल्कि यह दिव्यांग व्यक्तियों की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला है। न्यायालय ने माना कि इस प्रकार के कंटेंट को इंटरनेट पर प्रसारित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, खासकर जब यह एक सम्मानित शैक्षणिक संस्था के कुलपति के खिलाफ हो।
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कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 11 नवंबर तय की है, जिसमें यह देखा जाएगा कि आदेशों का पालन किया गया या नहीं। यदि आदेशों का उल्लंघन होता है तो संबंधित इंटरनेट प्लेटफॉर्म्स और वीडियो निर्माता के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही भी संभव है।