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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बार एसोसिएशन के प्रभावशाली पदों पर बैठे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले वकीलों को न्याय व्यवस्था के लिए खतरनाक बताया। अदालत ने पूरे प्रदेश के वकीलों के खिलाफ लंबित मामलों का विस्तृत रिकॉर्ड तलब किया है। मामला इटावा के एक वकील की याचिका के दौरान उजागर हुआ।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय
Prayagraj: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बार एसोसिएशन के पदों पर बैठे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले वकीलों को लेकर गंभीर टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने कहा कि वकील सिर्फ पेशे के अनुशासक ही नहीं, बल्कि अदालत के अधिकारी भी हैं। ऐसे में यदि गंभीर आरोपों का सामना कर रहे अधिवक्ता प्रभावशाली पदों पर बैठें, तो यह आशंका स्वाभाविक है कि वे पेशेवर वैधता की आड़ में पुलिस और न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।
इस टिप्पणी के साथ ही अदालत ने डीजीपी और डीजीपी अभियोजन को आदेश दिया कि वे पूरे प्रदेश में वकीलों के खिलाफ दर्ज सभी लंबित आपराधिक मामलों की विस्तृत रिपोर्ट पेश करें। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए कि एफआईआर दर्ज होने की तिथि, अपराध संख्या, धाराएं, थाना, विवेचना की स्थिति, आरोपपत्र दाखिल करने एवं आरोप तय करने की तारीख, अब तक परखे गए गवाहों का विवरण और ट्रायल की संपूर्ण स्थिति सभी का विस्तृत रिकॉर्ड कोर्ट में प्रस्तुत करना होगा। अदालत ने कहा कि किसी भी स्तर पर देरी या लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। पुलिस से जुड़ा विवरण डीजीपी देंगे जबकि अभियोजन की रिपोर्ट डीजीपी अभियोजन की ओर से दायर की जाएगी।
यह मामला इटावा निवासी एक वकील की याचिका से जुड़ा है। याची ने आरोप लगाया था कि पुलिस अधिकारी उसे परेशान कर रहे हैं और उसने परिवाद दाखिल कर अधिकारियों को तलब करने की मांग की थी। इस याचिका को इटावा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और फिर अपर सत्र न्यायाधीश ने 18 मार्च को खारिज कर दिया था। इसके बाद याची हाईकोर्ट पहुंचा।
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में खुलासा हुआ कि याची स्वयं और उसके परिवार की आपराधिक पृष्ठभूमि गंभीर है। हलफनामे के अनुसार याची के पांच भाई हत्या के प्रयास, गोहत्या, जुआ अधिनियम, गैंगस्टर एक्ट और पॉक्सो जैसे मामलों में नामजद हैं। वहीं, इंस्पेक्टर इटावा कोतवाली द्वारा दाखिल रिपोर्ट में बताया गया कि याची अधिवक्ता खुद तीन आपराधिक मामलों में आरोपी है।
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अदालत ने कहा कि बार एसोसिएशन का नेतृत्व केवल सम्मान का विषय नहीं, बल्कि एक बड़ी जिम्मेदारी भी है। प्रभावशाली पदों पर बैठे ऐसे लोग पुलिस पर अनावश्यक दबाव डाल सकते हैं, गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं और न्यायिक प्रक्रिया को मोड़ने की कोशिश कर सकते हैं। न्यायमूर्ति दिवाकर ने कहा कि वकील अदालत के अधिकारी होते हैं। ऐसे लोगों का प्रभावशाली पदों पर बैठना न्याय व्यवस्था पर कलंक है।