आगरा के शाही परिवार के वर्चस्व की जंग पहुंची इलाहाबाद हाईकोर्ट, कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक आदेश; पढ़ें पूरी खबर

शाही परिवार के दो भाइयों के बीच चल रहे वर्चस्व के विवाद का समाधान करते हुए उपाध्यक्ष पद का कार्यकाल दोनों में बराबरी से बांटने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि वंशानुगत अधिकारों के आधार पर सार्वजनिक संस्थान में पदों का वितरण नहीं किया जा सकता।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 9 November 2025, 2:47 PM IST
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Prayagraj: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि अब देश में राजशाही का दौर खत्म हो चुका है और लोकतंत्र में यह जरूरी नहीं कि बड़े बेटे का बड़ा बेटा ही "राजा" बने। कोर्ट ने आगरा के आवागढ़ के शाही परिवार के दो बेटों के बीच चल रहे वर्चस्व की जंग का कानूनी हल निकाला। न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकल पीठ ने इस मामले में स्पष्ट किया कि किसी भी सार्वजनिक संस्था में वंशानुगत प्रणाली को मान्यता नहीं दी जा सकती और न ही शिक्षा के संस्थान को सत्ता या संपत्ति का अखाड़ा बनाया जा सकता है।

आगरा के शाही परिवार में चल रहा था वर्चस्व का संघर्ष

यह मामला आगरा के बलवंत सिंह कॉलेज और बलवंत एजुकेशनल सोसाइटी के उपाध्यक्ष पद पर शाही परिवार के दो चचेरे भाइयों जितेंद्र पाल सिंह और अनिरुद्ध पाल सिंह के बीच चल रही सत्ता की जंग से जुड़ा हुआ था। दोनों के बीच दशकों से यह विवाद चल रहा था कि शाही परिवार में उपाध्यक्ष के पद पर किसका अधिकार होगा। इस संघर्ष ने न सिर्फ परिवार में कलह को जन्म दिया, बल्कि कॉलेज और एजुकेशनल सोसाइटी के संचालन में भी व्यवधान डाला।

कोर्ट का निर्णय

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस विवाद का निस्तारण करते हुए फैसला किया कि उपाध्यक्ष पद का कार्यकाल दोनों भाइयों में बराबरी से बांटा जाएगा। कोर्ट ने आदेश दिया कि जितेंद्र पाल सिंह 1 दिसंबर 2025 से 31 मई 2028 तक उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करेंगे, जबकि अनिरुद्ध पाल सिंह 1 जून 2028 से 30 नवंबर 2030 तक इस पद पर कार्य करेंगे। दोनों भाइयों को यह भी आदेश दिया गया कि वे अपनी सदस्यता प्रदर्शित करने के लिए सोसाइटी के खाते में दो-दो लाख रुपये जमा करें।

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सोसाइटी का संचालन जिला जज और डीएम को सौंपा गया

कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक प्रबंध समिति का विधिवत गठन नहीं होता, तब तक सोसाइटी के संचालन की जिम्मेदारी जिला जज और डीएम आगरा को सौंप दी जाएगी। जिला जज, जो सोसाइटी के पदेन अध्यक्ष हैं, को यह जिम्मेदारी सौंपी गई ताकि सोसाइटी के कार्यों में कोई विघ्न न आए और संस्थान सुचारू रूप से चलता रहे।

वंशानुगत अधिकारों पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी

कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि अब "राजा आवागढ़" जैसी उपाधि का कोई अस्तित्व नहीं है। कोई भी व्यक्ति जन्म या परंपरा के आधार पर सोसाइटी का उपाध्यक्ष नहीं बन सकता। अब सभी सदस्य बराबरी के हकदार हैं और उपाध्यक्ष का पद वंशानुगत नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि इस मामले का समाधान परिवार, संस्थान और समाज तीनों के हित में संतुलन स्थापित करने में मदद करेगा और यह पुरानी प्रतिद्वंद्विता को खत्म करने में मील का पत्थर साबित होगा।

राज्य सरकार को निर्देश

कोर्ट ने राज्य सरकार को यह निर्देश भी दिया कि वह सोसाइटी के बॉयलाज (उपनियमों) के अनुसार 1 जनवरी 2026 तक नया बोर्ड गठित करे और इसे सोसाइटी रजिस्ट्रार को सूचित करे। यह कदम सोसाइटी की वैधानिक स्थिति को बनाए रखने और इसे सुव्यवस्थित करने के लिए जरूरी है।

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कोर्ट की टिप्पणी

कोर्ट ने यह भी कहा कि शिक्षा के मंदिर को सत्ता या संपत्ति के अखाड़े के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। दोनों भाइयों को अपनी विरासत के बजाय इस शैक्षिक संस्थान को प्रगति और समाज सेवा की दिशा में काम करने का अवसर देना चाहिए। कोर्ट ने परिवार के भीतर बढ़ते विवादों को सुलझाने के साथ-साथ इस बात को सुनिश्चित किया कि शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ पढ़ाई और ज्ञान देना हो, न कि राजनीतिक व व्यक्तिगत लाभ का साधन बनाना।

Location : 
  • Prayagraj

Published : 
  • 9 November 2025, 2:47 PM IST