फायदे के लिए बदला अपना धर्म, लेकिन अब नहीं मिलेगा ये लाभ; पढ़ें इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

हाईकोर्ट ने कहा है कि धर्म परिवर्तन के बाद SC/ST पहचान स्वतः समाप्त हो जाती है और ऐसे में आरक्षण या विशेष लाभ लेना संविधान के खिलाफ है। कोर्ट ने यूपी के सभी डीएम को चार महीने के भीतर ऐसे मामलों की जांच कर रिपोर्ट देने को कहा है। महाराजगंज के साहनी मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 3 December 2025, 6:52 PM IST
google-preferred

Prayagraj: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए स्पष्ट कहा है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लाभ केवल उन्हीं नागरिकों को मिल सकते हैं, जो हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म का पालन करते हैं। अदालत ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति हिंदू धर्म छोड़कर किसी अन्य धर्म को अपनाता है, तो वह स्वतः ही SC/ST श्रेणी से बाहर हो जाता है और उसके विशेषाधिकार भी समाप्त हो जाते हैं।

सभी जिलाधिकारियों को चार महीनों में जांच का आदेश

हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के सभी डीएम को निर्देश दिया है कि अपने-अपने जिलों में ऐसे लोगों की पहचान करें जिन्होंने धर्म बदलने के बाद भी SC/ST लाभ लिया है या ले रहे हैं। इसके लिए चार महीने की समयसीमा तय की गई है। जिन्हें दोषी पाया जाएगा, उन पर मुकदमा दर्ज किया जाएगा और गलत तरीके से लिए गए लाभ की रिकवरी भी की जा सकती है। इसके अलावा महाराजगंज के जिलाधिकारी को विशेष आदेश दिया गया है कि वे उन लोगों की तीन महीनों में जांच करें।

आगरा के शाही परिवार के वर्चस्व की जंग पहुंची इलाहाबाद हाईकोर्ट, कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक आदेश; पढ़ें पूरी खबर

महाराजगंज के जितेंद्र साहनी पर गंभीर आरोप

पूरा विवाद महाराजगंज के निवासी जितेंद्र साहनी से जुड़ा है। उन पर आरोप है कि उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया लेकिन इसके बावजूद SC/ST एक्ट के तहत आवेदन किया। हिंदू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाया। लोगों को बहकाकर धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित किया इन आरोपों के आधार पर उनके खिलाफ IPC की धारा 153-A (धार्मिक वैमनस्य) और 295-A (धार्मिक भावनाओं का अपमान) के तहत कार्रवाई की गई।

‘मुझे फंसाया जा रहा है’

साहनी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि उन्होंने सिर्फ अपनी जमीन पर 'ईसा मसीह की शिक्षाओं' का प्रचार करने की अनुमति मांगी थी। उन पर लगे सभी आरोप झूठे और राजनीतिक प्रेरित हैं। उन्हें जानबूझकर फंसाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने दावा किया कि उनका उद्देश्य किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था।

हलफनामे में हिंदू, लेकिन जांच में ईसाई

हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की कि साहनी ने अपने आवेदन में जो हलफनामा दिया था, उसमें खुद को हिंदू बताया, लेकिन पुलिस जांच में यह सामने आया कि वह काफी पहले ईसाई धर्म अपना चुके हैं। अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट विरोधाभास है और यह तथ्य छुपाना गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।

सोशल मीडिया पर लगाम: इलाहाबाद हाईकोर्ट का मेटा और गूगल को निर्देश, जानें किस मामले में दिया आदेश

पादरी बनकर प्रचार कर रहे थे

एक गवाह ने अदालत में बयान दिया कि साहनी पहले केवट समुदाय से थे और बाद में उन्होंने ईसाई धर्म अपनाकर पादरी के रूप में काम शुरू किया। वे गरीब और कमजोर लोगों को लालच देकर धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित करते थे। हिंदू आस्थाओं और देवी-देवताओं का उपहास करते थे। लोगों को कहते थे “धर्म बदलोगे तो नौकरी, व्यापार और आर्थिक मदद मिलेगी” अदालत ने इस बयान को बेहद गंभीर माना।

SC ने संविधान आदेश 1950 का दिया हवाला

हाईकोर्ट ने फैसले में संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 का उल्लेख किया। इस आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि SC के रूप में वही व्यक्ति मान्य है जो हिंदू, सिख, या बौद्ध धर्म का अनुयायी हो। ईसाई, मुस्लिम या अन्य धर्म को अपनाने वाले व्यक्ति SC नहीं माने जाते। अदालत ने कहा कि SC/ST की सामाजिक उत्पत्ति धर्म से जुड़ी है, इसलिए धर्म परिवर्तन होते ही SC पहचान भी समाप्त हो जाती है।

‘लाभ के लिए धर्म परिवर्तन

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने निर्णयों का भी हवाला दिया। अदालत ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति सिर्फ सरकारी लाभ, आरक्षण या सुविधाओं के लिए धर्म बदलता है, तो यह संविधान की भावना के खिलाफ है। इससे उन लाखों लोगों के अधिकारों पर चोट होती है, जो वास्तव में सामाजिक पिछड़ेपन से प्रभावित हैं। ऐसे कृत्य सामाजिक न्याय व्यवस्था को कमजोर करते हैं।

Location : 
  • Prayagraj

Published : 
  • 3 December 2025, 6:52 PM IST