

बिहार चुनाव 2025 में सात प्रमुख नेताओं की रणनीतियों और उनके चुनावी प्रभाव को लेकर गहराई से विश्लेषण किया गया है। मोदी से लेकर तेजस्वी, राहुल और ओवैसी तक हर नेता परिणाम पर प्रभाव डाल सकता है। जानिए, कौन किसका वोटबैंक प्रभावित कर सकता है।
कौन बनेगा बिहार का राजा
Patna: बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव 2025 में सियासी माहौल में घमासान मचने की संभावना है। जहां एक तरफ भारतीय जनता पार्टी, जनता दल और अन्य सहयोगी दलों के नेता चुनावी मोर्चे पर ताकत लगा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन जिसमें कांग्रेस, राजद और अन्य क्षेत्रीय दल शामिल हैं, अपनी पूरी ताकत झोंकने की तैयारी में हैं। इस चुनावी परिप्रेक्ष्य में बिहार के प्रमुख नेताओं की भूमिका और उनके प्रभाव पर गौर करना बेहद अहम है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार चुनाव में एक प्रमुख खेल बदलने वाले नेता के रूप में उभर सकते हैं। उनकी रैलियां लाखों वोटरों को आकर्षित करती हैं और हिंदुत्व, विकास और सरकारी योजनाओं जैसे मुद्दों पर जोर देती हैं। 2020 में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को बंपर सफलता मिली थी और इस बार भी उनकी मौजूदगी से NDA को एक नई ऊर्जा मिल सकती है। हालांकि, अगर महागठबंधन स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करता है तो मोदी का असर सीमित हो सकता है।
कौन बनेगा बिहार का राजा
नीतीश कुमार का बिहार चुनाव में प्रभाव काफी महत्वपूर्ण रहेगा। पिछले दो दशकों से बिहार की राजनीति में अपनी पकड़ बनाए रखने वाले नीतीश को लेकर कई सवाल उठते हैं, जैसे उनके स्वास्थ्य और राजनीतिक थकावट के कारण उनकी स्थिति पर असर पड़ सकता है। हालांकि, अगर नीतीश कुशवाहा EBC और महादलित वोटों को एकजुट रखने में सफल होते हैं तो NDA की जीत पक्की हो सकती है।
राहुल गांधी के लिए बिहार चुनाव उनके नेतृत्व को साबित करने का एक अहम अवसर है। उनका मुख्य फोकस युवा, महिला और बेरोजगारी के मुद्दों पर है और उनकी भारत जोड़ो यात्रा ने काफी आकर्षण पाया है। अगर राहुल गांधी तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार जैसे नेताओं के साथ मिलकर महागठबंधन की ताकत को बढ़ाते हैं तो यह विपक्ष के लिए एक शक्तिशाली ताकत बन सकता है।
तेजस्वी यादव के लिए यह चुनाव बेहद निर्णायक साबित हो सकता है। बिहार की सियासत में लालू यादव के पुत्र के रूप में उनकी पहचान है, और यादव और मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा उनके पक्ष में है। अगर वह OBC और EBC वोटों को एकजुट कर पाते हैं, तो महागठबंधन को चुनावी बढ़त मिल सकती है। उनके नेतृत्व में कई सत्ता विरोधी वोटर्स महागठबंधन के पक्ष में जा सकते हैं।
प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति में एक नया चेहरा लेकर उभरे हैं। उन्होंने जन सुराज पार्टी का गठन किया है और इस बार वे पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में हैं। उनकी पार्टी का मुख्य फोकस भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और युवाओं के मुद्दों पर है। हालांकि, उनका पार्टी बेशक नतीजों को पलटने में बड़ा कारक नहीं बन पाएगी, लेकिन उनका वोट प्रतिशत NDA और महागठबंधन दोनों को नुकसान पहुंचा सकता है।
चिराग पासवान का दलित वोटों पर खास प्रभाव है और उनकी भूमिका बिहार में अहम हो सकती है। हालांकि, 2020 में उनकी पार्टी को सिर्फ 1 सीट मिली थी, लेकिन इस बार उनकी स्थिति और भूमिका NDA के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है। चिराग पासवान को दलित वोटों को एकजुट करने में सफलता मिलती है तो वह NDA को अतिरिक्त सीटें दिला सकते हैं।
ओवैसी की पार्टी AIMIM मुस्लिम वोटों को एकजुट करने का प्रयास कर रही है। सीमांचल और अन्य मुस्लिम बहुल इलाकों में उनके असर को नकारा नहीं जा सकता। अगर वह अपने वोटरों को आकर्षित करने में सफल रहते हैं, तो यह महागठबंधन के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है। हालांकि, अगर गठबंधन बनता है तो उनका प्रभाव कम हो सकता है।