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आधुनिक दौर में जहां शादियाँ तड़क-भड़क और दिखावे का प्रतीक बनती जा रही हैं, वहीं भीलवाड़ा शहर के माली समाज ने विवाह समारोह को सांस्कृतिक मूल्यों और प्राचीन परंपराओं से जोड़कर एक प्रेरणादायी मिसाल पेश की। मंगलवार को माली समाज के नोहरे में हुए इस आयोजन में हिंदू संस्कारों का अद्भुत समावेश दिखाई दिया, जिसने सभी अतिथियों का ध्यान आकर्षित किया।
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Bhilwara: आधुनिक दौर में जहाँ शादियों में तड़क-भड़क और कई पैसे खर्च किये जा रहे हैं। वहीं शहर के माली समाज के रागशिया परिवार ने एक सादगीपूर्ण व सांस्कृतिक संस्कारों से जुड़े अनूठे आयोजन की मिसाल पेश की। मंगलवार को माली समाज के नोहरे में आयोजित सुपौत्र नंद लाल जी और मूली देवी के सुपौत्र तेजपाल रागशिया के विवाह समारोह में कई विशेष परंपराओं ने सभी का ध्यान खींचा।
जानकारी के अनुसार समारोह में स्नेहभोज से पूर्व गौ माता का पूजन किया गया, जिसमें वर–वधू ने विधि-विधान से गौ पूजा की। इस अवसर पर महंत बनवारी शरण (काठिया बाबा) भी उपस्थित रहे। उन्होंने नवदंपत्ति को आशीर्वाद देते हुए गौ पूजन सम्पन्न कराया। पूजन का कार्य आचार्य धर्मेश व्यास व उनकी टीम द्वारा संपन्न हुआ। इसके पश्चात गौ माता को लापसी का भोग लगाया गया।
समारोह की शुरुआत समाज सेवा की भावना के साथ हुई। तेजपाल रागशिया के विवाह अवसर पर 51 बालिकाओं को भोजन कराकर भोजन की औपचारिक शुरुआत की गई।
अयोध्या में रामलला की धर्मध्वजा फहराने की खुशी को भी विवाह में सुंदर रूप में शामिल किया गया। प्रवेश द्वार पर रामलला की प्रतिमा स्थापित की गई, जहाँ से दर्शन के बाद ही मेहमानों ने भोजन ग्रहण किया। अतिथियों का स्वागत जगदीश जी और बाली देवी और तुलसीराम जी और लाड़देवी द्वारा परंपरागत तरीके से किया गया।
कार्यक्रम की सजावट विशेष आकर्षण का केंद्र रही जिसमें वर-वधू की बहनों—राधा, पूजा, गायत्री और संतोष—ने मिलकर भिन्न-भिन्न प्रकार के पौधे लगाए। पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने हेतु 101 पौधों से हरियाली की अनूठी सजावट की गई। समारोह में संतों का सान्निध्य प्राप्त हुआ तथा विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी, शहर विधायक और प्रमुख समाजसेवी भी उपस्थित रहे। सभी अतिथियों ने रामलला की प्रतिमा, गौ पूजन और आदियोगी की तस्वीर के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।
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गोविंद माली ने बताया कि छोटे भाई के विवाह में इस प्रकार के हिंदू संस्कार आधारित नवाचार को सभी ने अत्यंत सराहा। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजनों से समाज में प्रेरणा मिलती है कि यदि विवाह जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर हमारे संस्कार और परंपराएँ सम्मिलित हों, तो कार्यक्रम और भी भव्य बन सकता है।
उन्होंने कहा कि पहले विवाह कार्यक्रमों में गौ पूजन की परंपरा होती थी, जो धीरे-धीरे समाप्त हो रही थी, लेकिन इस आयोजन ने पुनः उस परंपरा को जीवंत किया। गौ माता के पूजन से कार्यक्रम अत्यंत पावन और सुंदर अनुभव हुआ। गोविंद और चेतन माली ने अपने छोटे भाई के विवाह उपलक्ष्य में गौशाला के लिए दवाइयाँ व दलिया भिजवाने का संकल्प लिया। ऐसे आयोजनों के माध्यम से समाज सनातन परंपराओं से जुड़े रहने की प्रेरणा ले सकता है।
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आधुनिक युग में भी धर्म और संस्कृति के साथ तालमेल रखते हुए इस प्रकार के कार्यक्रम हिंदू समाज को और अधिक मजबूत बनाते हैं और यह विवाह समारोह इसी संदेश के रूप में सामने आया कि आधुनिकता के बीच भी हम अपने धर्म-संस्कारों को पूर्ण रूप से जी सकते हैं। वहीं पूरे आयोजन में असली पौधों का उपयोग किया गया।