कुपवाड़ा टॉर्चर केस में सुप्रीम कोर्ट सख्त: सीबीआई को सौंपी जांच, पीड़ित कांस्टेबल को 50 लाख मुआवजा

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा स्थित जॉइंट इंटेरोगेशन सेंटर में एक पुलिस कांस्टेबल के साथ हुई बर्बरता को बेहद गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंप दी है और साथ ही पीड़ित कांस्टेबल खुर्शीद अहमद को 50 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश भी दिया है। कोर्ट ने जांच एक महीने में शुरू कर तीन महीने में पूरी करने को कहा है।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 21 July 2025, 2:00 PM IST
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New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के जॉइंट इंटेरोगेशन सेंटर में एक पुलिस कांस्टेबल के साथ हुई अमानवीयता पर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने इस मामले को मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन मानते हुए इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी है और आरोपी अधिकारियों की गिरफ्तारी के निर्देश भी दिए हैं।

क्या है मामला?

20 फरवरी 2023 को पुलिस कांस्टेबल खुर्शीद अहमद चौहान को एनडीपीएस एक्ट के तहत पूछताछ के लिए कुपवाड़ा के जॉइंट इंटेरोगेशन सेंटर में बुलाया गया था। लेकिन वहां पूछताछ के नाम पर उसके साथ बर्बरता की सारी हदें पार कर दी गईं। आरोप है कि उसे छह दिन तक गैरकानूनी रूप से हिरासत में रखा गया और इस दौरान अमानवीय यातनाएं दी गईं। यहां तक कि उसके निजी अंगों को भी नुकसान पहुंचाया गया। 26 फरवरी को जब उसकी हालत नाजुक हो गई, तब उसे अस्पताल भेजा गया। लेकिन इसके बाद भी अन्याय रुका नहीं। मामले को दबाने की कोशिश में खुर्शीद अहमद पर ही आईपीसी की धारा 309 (आत्महत्या का प्रयास) के तहत केस दर्ज कर दिया गया, ताकि वास्तविकता को छिपाया जा सके।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और आदेश

यह मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने इसे गंभीरता से लिया। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि इस तरह की अमानवीयता लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए शर्मनाक है और इसकी पूरी जांच आवश्यक है।

कोर्ट ने दिया आदेश

• आरोपी पुलिस अधिकारियों को एक महीने के भीतर गिरफ्तार किया जाए।
• जांच की जिम्मेदारी सीबीआई को सौंपी गई है।
• सीबीआई को तीन महीने के भीतर जांच पूरी करनी होगी।
• जम्मू-कश्मीर सरकार पीड़ित कांस्टेबल खुर्शीद अहमद को ₹50 लाख का मुआवजा तत्काल प्रदान करे।
• जांच के दौरान इंटेरोगेशन सेंटर में हुए अन्य संभावित मानवाधिकार उल्लंघनों को भी देखा जाए।

मानवाधिकारों की जीत

यह फैसला न केवल पीड़ित के लिए न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि सुरक्षा एजेंसियों द्वारा की गई ज्यादतियों के खिलाफ एक स्पष्ट चेतावनी भी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूछताछ के नाम पर किसी भी व्यक्ति के साथ बर्बरता या अत्याचार को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

कानूनी विश्लेषण

आईपीसी की धारा 309 के तहत आत्महत्या का प्रयास अपराध माना जाता है, लेकिन यहां सुप्रीम कोर्ट ने यह धारा खारिज करते हुए स्पष्ट संकेत दिया कि इसे एक झूठे आरोप के रूप में इस्तेमाल किया गया था। कोर्ट का यह कदम पुलिस तंत्र की जवाबदेही तय करने और नागरिक अधिकारों की रक्षा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

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