

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को बिना नाम लिए अमेरिका और डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि भारत की तरक्की से कुछ देश घबराए हुए हैं और टैरिफ लगाकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
मोहन भागवत का अमेरिका पर परोक्ष वार
Nagpur: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को एक कार्यक्रम में बिना नाम लिए अमेरिका और डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि कुछ लोग भारत की तेजी से होती प्रगति से भयभीत हैं और टैरिफ जैसे कदम उठाकर भारत पर आर्थिक दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। भागवत नागपुर में ब्रह्माकुमारीज के विश्व शांति सरोवर के सातवें स्थापना दिवस पर बोल रहे थे। इस आध्यात्मिक कार्यक्रम के मंच से उन्होंने वैश्विक राजनीति, भारत की भूमिका और ‘स्व’ की समझ पर गहराई से बात की।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि लोगों को डर है कि अगर कोई और बड़ा हो गया तो उनका क्या होगा। अगर भारत बड़ा हो गया तो वे कहां रहेंगे? इसलिए उन्होंने टैरिफ लगा दिया। हमने कुछ नहीं किया। वे उसी को खुश कर रहे हैं, जिसने यह सब किया, क्योंकि अगर यह उनके पास है, तो वे भारत पर थोड़ा दबाव डाल सकते हैं। यह सब 'मैं और मेरा' के खेल में होता है।
मोहन भागवत का अमेरिका पर परोक्ष वार
भागवत ने कहा कि जब तक देश और व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं पहचानेंगे, तब तक समस्याएं बनी रहेंगी। उन्होंने कहा कि समाधान का रास्ता ‘मैं’ के स्थान पर ‘हम’ को स्वीकारने से निकलेगा। जब वे समझ जाते हैं कि 'मैं और मेरा' वास्तव में 'हम और हमारा' है, तो सभी मुद्दे समाप्त हो जाते हैं। आज दुनिया को एक समाधान की आवश्यकता है। उन्होंने ब्रह्माकुमारीज के कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह संगठन भी आंतरिक चेतना को जगाने का कार्य करता है, ठीक उसी तरह जैसे संघ करता है।
मोहन भागवत ने कहा कि भारत न केवल भौतिक रूप से बड़ा है, बल्कि उसकी सोच भी बड़ी है। भारत महान है और भारतीयों को भी महान बनने का प्रयास करना चाहिए। भारत बड़ा है और वह और बड़ा होना चाहता है। लेकिन यह विकास दूसरों को दबाकर नहीं, बल्कि साथ लेकर आगे बढ़ने वाला होगा।
भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि जब तक मनुष्य करुणा नहीं अपनाएगा और भय पर नियंत्रण नहीं करेगा, तब तक शांति असंभव है। अगर हम करुणा दिखाएं और भय पर विजय पाएं तो हमारा कोई शत्रु नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि समस्याएं तब तक बनी रहेंगी, जब तक मनुष्य अपने भीतर झांककर नहीं देखेगा।