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डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा पर नए प्रतिबंध और 1 लाख डॉलर शुल्क लगाने की घोषणा की है। इस फैसले से भारतीय पेशेवरों और भारत-अमेरिका साझेदारी पर असर पड़ने की आशंका है। अमेरिकी सांसदों ने इस नीति पर पुनर्विचार की मांग की है।
ट्रंप की H-1B वीजा पॉलिसी पर छिड़ा विवाद
Washington: अमेरिका में एच-1बी वीजा (H-1B Visa) को लेकर एक बार फिर सियासी हलचल तेज हो गई है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक आदेश जारी किया है जिसमें गैर-आप्रवासी श्रमिकों, विशेष रूप से एच-1बी वीजा धारकों पर नए प्रतिबंध लगाने और लगभग 1 लाख डॉलर (करीब 83 लाख रुपये) तक का अतिरिक्त शुल्क वसूलने की बात कही गई है। ट्रंप प्रशासन का तर्क है कि इससे अमेरिकी नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, लेकिन इस फैसले को लेकर कई सांसदों और उद्योग विशेषज्ञों ने गंभीर आपत्ति जताई है।
कैलिफोर्निया और टेक्सास से जुड़े चार प्रमुख सांसद जिमी पनेटा, अमी बेरा, सालुद कार्बाजल और जूली जॉनसन ने ट्रंप को पत्र लिखकर इस निर्णय पर पुनर्विचार करने की अपील की है। उनका कहना है कि एच-1बी वीजा कार्यक्रम अमेरिका की तकनीकी और नवाचार अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। इसे सीमित करना न केवल अमेरिकी स्टार्टअप्स बल्कि एआई, साइबर सुरक्षा और वैज्ञानिक अनुसंधान जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए भी बड़ा झटका होगा।
H-1B वीजा पर ट्रंप का बड़ा फैसला
सांसदों ने अपने पत्र में स्पष्ट किया कि यह नीति भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी को कमजोर कर सकती है। उन्होंने लिखा, “भारत से आने वाली उच्च-कुशल तकनीकी प्रतिभा हमारे नवाचार तंत्र का अभिन्न हिस्सा है। अगर एच-1बी वीजा सीमित हुआ, तो इसका सीधा असर दोनों देशों के संबंधों पर पड़ेगा।”
आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष 71% एच-1बी वीजा भारतीय नागरिकों को जारी किए गए थे। यानी भारत इस कार्यक्रम का सबसे बड़ा लाभार्थी देश है, और ऐसे में इस नीति का सबसे अधिक प्रभाव भारतीय पेशेवरों पर पड़ेगा।
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सांसदों ने यह भी कहा कि जब चीन और अन्य देश एआई व रोबोटिक्स में भारी निवेश कर रहे हैं, तब अमेरिका को प्रतिभा को सीमित करने के बजाय आकर्षित करने पर ध्यान देना चाहिए। उनका मानना है कि यह कदम अमेरिका की वैश्विक प्रतिस्पर्धा क्षमता को कमजोर करेगा और नवाचार की रफ्तार को धीमा कर देगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि लगभग 83 लाख रुपये का अतिरिक्त शुल्क छोटे व्यवसायों और शोध संस्थानों के लिए बड़ी चुनौती बन जाएगा। यह नीति केवल बड़ी टेक कंपनियों के लिए फायदेमंद होगी, जबकि अमेरिका की असली ताकत हमेशा मध्यम और छोटे स्टार्टअप्स में रही है।
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कूटनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की यह नीति भारत-अमेरिका के बीच दशकों से चले आ रहे व्यावसायिक और शैक्षणिक संबंधों पर असर डाल सकती है। अमेरिका में लाखों भारतीय पेशेवर टेक्नोलॉजी, चिकित्सा, इंजीनियरिंग और वित्त जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। अगर यह नया शुल्क और प्रतिबंध लागू होता है, तो न केवल भारतीय प्रतिभाओं का प्रवाह घटेगा, बल्कि दोनों देशों के बीच नवाचार और अनुसंधान सहयोग भी कमजोर होगा।