सुप्रीम कोर्ट का फैसला: टीईटी अनिवार्य, उत्तराखंड में 18 हजार शिक्षकों की पदोन्नति प्रभावित

उत्तराखंड में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य के हजारों शिक्षक पदोन्नति से वंचित हो गए हैं। कोर्ट ने शिक्षकों के लिए टीईटी को अनिवार्य किया है, जिससे 18,000 से अधिक शिक्षकों की पदोन्नति पर ब्रेक लग गया है। राज्य सरकार ने फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने का निर्णय लिया है।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 5 October 2025, 3:13 PM IST
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New Delhi: उत्तराखंड में शिक्षकों के लिए सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला एक बड़े विवाद का कारण बन गया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि सभी शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) को अनिवार्य कर दिया गया है। इसके बाद राज्य सरकार ने शिक्षकों की पदोन्नति को रोकने का फैसला किया है। इस फैसले के तहत 18,000 से अधिक शिक्षकों की पदोन्नति प्रभावित हुई है, जिससे प्रदेशभर में असंतोष और हंगामा फैल गया है।

सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, जिन शिक्षकों की सेवा अवधि में पांच साल से अधिक समय बाकी है, उन्हें दो साल के भीतर टीईटी परीक्षा पास करनी होगी। यह आदेश पुरानी और नई दोनों ही नियुक्तियों पर लागू होगा। इसके तहत शिक्षकों की पदोन्नति के लिए भी टीईटी को अनिवार्य कर दिया गया है। अब तक, इस प्रक्रिया से छूट प्राप्त शिक्षक वर्ग को भी टीईटी की अनिवार्यता का सामना करना पड़ रहा है, जिससे वे पदोन्नति से वंचित हो गए हैं।

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

राज्य सरकार का पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने राज्य सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया है कि वह इस मामले में पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगी। पुनर्विचार याचिका की प्रक्रिया चल रही है और सरकार इस फैसले को फिर से चुनौती देने की योजना बना रही है। सरकार का मानना है कि पुराने शिक्षकों पर टीईटी की अनिवार्यता लागू नहीं होनी चाहिए, क्योंकि वे उस समय की नियमों के अनुसार नियुक्त किए गए थे, जब टीईटी की आवश्यकता नहीं थी।

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प्रदर्शन और धरने की कार्रवाई

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रदेशभर के शिक्षक संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया है। कई जिलों में शिक्षक पदोन्नति के लिए धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। शिक्षकों का कहना है कि उन्हें टीईटी परीक्षा के बिना पदोन्नति का हक मिलना चाहिए, क्योंकि उनकी नियुक्ति उस समय वैध थी, जब टीईटी लागू नहीं था। शिक्षकों के प्रतिनिधियों का यह भी कहना है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आता, तब तक पदोन्नति पर रोक नहीं लगनी चाहिए।

शिक्षा निदेशालय ने जारी किया दिशा निर्देश

इस बीच, शिक्षा निदेशालय ने सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देश जारी कर बताया है कि उन्हें शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश और राज्य सरकार के फैसले से अवगत कराना होगा। प्रारंभिक शिक्षा निदेशक अजय कुमार नौडियाल ने बताया कि चमोली, टिहरी गढ़वाल और चंपावत जिलों के शिक्षा अधिकारियों ने पदोन्नति संबंधी दिशा निर्देश मांगे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कुछ जिलों में शिक्षक आंदोलन कर रहे हैं और प्रदर्शन कर रहे हैं।

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शिक्षक संघ का विरोध और मुख्यमंत्री से अपील

जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद थापा ने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए यह कदम उठाया गया है, लेकिन यह फैसला शिक्षकों के हित में नहीं है। उनका मानना है कि पुरानी नियुक्तियों को टीईटी के दायरे में लाकर शिक्षकों का हक मारा जा रहा है। वे राज्य सरकार से अपील कर रहे हैं कि शिक्षकों को पदोन्नति का अधिकार मिले और टीईटी की अनिवार्यता को लागू करने से पहले उचित उपाय किए जाएं।

क्या है सरकार की योजना?

टीईटी की अनिवार्यता के बाद, शिक्षकों को परीक्षा पास करने के लिए दो साल का समय दिया गया है। सरकार की योजना के मुताबिक, दो साल के भीतर सभी शिक्षक टीईटी परीक्षा उत्तीर्ण करेंगे और उसके बाद ही उनकी पदोन्नति की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। लेकिन, शिक्षकों का मानना है कि यह फैसला उनकी मेहनत और वर्षों की सेवा के बावजूद उनका हक छीनने जैसा है।

Location : 
  • New Delhi

Published : 
  • 5 October 2025, 3:13 PM IST