सुप्रीम कोर्ट से झटका: कश्मीरी हिंदुओं को आयु सीमा में छूट नहीं, जानें क्या बोली अदालत

सुप्रीम कोर्ट ने 1990 में विस्थापित हुए कश्मीरी हिंदुओं को सरकारी नौकरियों में उम्र में छूट देने की याचिका खारिज की। अदालत ने कहा कि यह पूरी तरह से नीति का विषय है और वह इसमें दखल नहीं दे सकती।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 23 September 2025, 3:58 PM IST
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New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीरी हिंदू विस्थापितों को बड़ा झटका देते हुए सरकारी नौकरियों में आयु सीमा में रियायत देने की मांग वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने साफ कहा कि यह "नीतिगत मामला" है और इसमें न्यायालय का हस्तक्षेप उचित नहीं होगा।

अदालत का फैसला

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह पूरी तरह से नीति निर्धारण का विषय है और इसमें न्यायालय का हस्तक्षेप उचित नहीं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किसे आयु में छूट दी जाए और किसे नहीं, यह तय करना कार्यपालिका का काम है, न कि न्यायपालिका का।

सुप्रीम कोर्ट

याचिका में क्या कहा गया था?

पनुन कश्मीर ट्रस्ट ने यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि 1984 के सिख विरोधी दंगे और 2002 के गुजरात दंगे के पीड़ितों को सरकारी नौकरियों में आयु सीमा में राहत दी गई है। लेकिन, 1990 में आतंकवाद और हिंसा के कारण विस्थापित हुए कश्मीरी हिंदुओं को अब तक ऐसी कोई राहत नहीं दी गई।

तीन दशकों का संघर्ष

याचिका में जोर देकर कहा गया कि पिछले तीन दशकों से कश्मीरी हिंदू समुदाय ने शरणार्थी शिविरों और अस्थायी बस्तियों में जीवन बिताया है। उनका एक पूरा युवा वर्ग बिना किसी दोष के सरकारी नौकरी की आयु सीमा से बाहर हो गया है।

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'द्वेषपूर्ण भेदभाव' का आरोप

पनुन कश्मीर ट्रस्ट ने अदालत से आग्रह किया कि यह केवल रोजगार की बात नहीं, बल्कि समानता, न्याय और गरिमा के संवैधानिक अधिकारों का भी सवाल है। संस्था ने कहा कि कश्मीरी हिंदुओं को आयु छूट न देना, एक प्रकार का ‘द्वेषपूर्ण भेदभाव’ है, जो भारत के संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।

केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को बनाया था प्रतिवादी

इस याचिका में भारत सरकार के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रशासन को भी प्रतिवादी बनाया गया था। लेकिन दोनों की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं आया, जिससे याचिका की वैधता पर अदालत ने कोई ठोस आधार नहीं पाया।

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सुप्रीम कोर्ट का रुख क्यों सख्त रहा?

विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करने से बचता है जिनका सीधा संबंध नीति निर्माण से हो। अदालत की भूमिका केवल यह सुनिश्चित करना है कि नीति संविधान के अनुरूप हो लेकिन अगर नीति ही नहीं बनी, तो अदालत उसमें जबरन हस्तक्षेप नहीं करती।

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Published : 
  • 23 September 2025, 3:58 PM IST