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सुल्तानपुर में कई पेट्रोल पंपों पर घटतौली और मिलावटी पेट्रोल बेचे जाने के आरोप सामने आए हैं। उपभोक्ताओं को आर्थिक नुकसान हो रहा है। नापतौल विभाग की सुस्ती से लोग नाराज़ हैं और सख्त छापेमारी की मांग कर रहे हैं।
सुल्तानपुर में पेट्रोल घटतौली (सोर्स- इंटरनेट)
Sultanpur: उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के नापतौल विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। बता दें कि जिले में संचालित कई पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों के साथ कथित रूप से घटतौली की जा रही है। उपभोक्ताओं का आरोप है कि ₹200 का पेट्रोल भरवाने पर भी ₹170 से ₹180 मूल्य का ही पेट्रोल वाहन की टंकी तक पहुंचता है।
शुरुआती सख्ती के बाद ढीला पड़ा प्रशासनिक रवैया
प्रदेश में वर्ष 2017 में जब योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनी थी, तब घटतौली के खिलाफ एक बड़ा अभियान चलाया गया था। राजधानी लखनऊ सहित पूरे उत्तर प्रदेश में पेट्रोल पंपों पर छापेमारी कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की गई थी। लेकिन जैसे-जैसे सरकार का कार्यकाल आगे बढ़ा, अधिकारियों की सख्ती ढीली पड़ती गई और कई पेट्रोल पंप संचालकों को छूट मिलने लगी।
बेचा जा रहा है मिलावटी पेट्रोल
स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि न केवल घटतौली, बल्कि कुछ पेट्रोल पंपों पर मिलावटी पेट्रोल भी बेचा जा रहा है, जिससे वाहनों की मशीनें खराब हो रही हैं और उपभोक्ताओं को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है। बावजूद इसके, नापतौल विभाग और पेट्रोलियम विभाग की टीमों द्वारा पेट्रोल पंपों पर नियमित जांच अभियान नहीं चलाया जा रहा है।
नियमित जांच का अभाव
वर्तमान स्थिति यह है कि सुल्तानपुर जिले में नियमित पेट्रोल पंप जांच का कोई प्रभावी सिस्टम दिखाई नहीं दे रहा। उपभोक्ताओं की शिकायतों पर कार्रवाई तो दूर, कई बार जांच अधिकारी मौके पर पहुंचते ही बिना परीक्षण के लौट जाते हैं। सूत्रों की मानें तो कुछ पंप संचालकों और अधिकारियों के बीच मिलीभगत के चलते यह गोरखधंधा लगातार फल-फूल रहा है।
जनता की सरकार से मांग
इन सबके बीच सुल्तानपुर के आम नागरिकों ने राज्य सरकार से मांग की है कि वह एक बार फिर 2017 जैसी कार्रवाई करे और दोषी पंप मालिकों के खिलाफ सख्त कदम उठाए। उनका कहना है कि ईंधन जैसे आवश्यक वस्तु में धोखाधड़ी करना सीधे जनता की जेब पर डाका डालने जैसा है। इसके लिए सरकार को विशेष जांच दल गठित कर साप्ताहिक निरीक्षण शुरू करने चाहिए।
प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में
जिला प्रशासन और नापतौल विभाग की चुप्पी पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इस संवेदनशील मामले में जनता की शिकायतों को अनसुना करना कहीं न कहीं जिम्मेदार विभागों की कार्यप्रणाली पर संदेह पैदा करता है। अब देखना होगा कि सरकार इस मसले को कितनी गंभीरता से लेती है और कब तक दोषियों पर शिकंजा कसा जाता है।