

शहर के इतिहास में एक बार फिर आध्यात्मिक चेतना की ऐसी लहर उठी, जिसने जन-जन को भक्ति, सेवा और एकता के सूत्र में पिरो दिया।
ऐतिहासिक रथ यात्रा
जालौन: शहर के इतिहास में एक बार फिर आध्यात्मिक चेतना की ऐसी लहर उठी, जिसने जन-जन को भक्ति, सेवा और एकता के सूत्र में पिरो दिया। अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (इस्कॉन) उरई द्वारा आयोजित श्री जगन्नाथ रथ यात्रा इस वर्ष भी अत्यंत उल्लासपूर्ण, भव्य और अनुकरणीय रूप में सम्पन्न हुई। श्रद्धा, संस्कृति और समाज का यह महामिलन अपने पीछे ऐसा आध्यात्मिक प्रभाव छोड़ गया है, जिसे वर्षों तक स्मरण किया जाएगा।
डाइनामाइट न्यूज संवाददाता के मुताबिक, इस वर्ष की रथ यात्रा का आयोजन न केवल भक्ति उत्सव था, बल्कि उरई के धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में एक नवचेतना का संचार करने वाला पर्व बन गया। सायं 4 बजे श्याम धाम कालपी रोड से जैसे ही भगवान श्री जगन्नाथ, बलभद्र और माता सुभद्रा के दिव्य विग्रह रथ पर विराजमान हुए, वैसे ही चारों दिशाओं में हरिनाम संकीर्तन, शंखध्वनि, मृदंग और करतालों की मधुर ध्वनि गूंजने लगी। इस शुभारंभ में श्रद्धालुओं की आंखें नम थीं भक्ति में डूबी हुईं, हृदय पुलकित था — प्रभु के साक्षात दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर। रथ यात्रा का मार्ग इस बार मच्छर चौराहा, घंटाघर, इलाहाबाद बैंक होते हुए झांसी रोड स्थित इस्कॉन मंदिर तक निर्धारित किया गया था।
रंग-बिरंगी झांकियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध
पूरे रास्ते को सुंदर पुष्प सज्जा, तोरण द्वारों और धार्मिक वचनों से सजाया गया था। नगरवासियों ने अपने घरों के बाहर दीपक, रंगोली, पुष्प और तुलसी पत्रों से प्रभु का स्वागत किया। विशेष बात यह रही कि रथ यात्रा केवल एक शोभायात्रा नहीं थी, बल्कि इसमें लोक सहभागिता और जनचेतना का स्वरूप स्पष्ट दिखाई दिया। वृद्ध, युवा, महिलाएं और बालक-बालिकाएं सभी की सहभागिता ने इसे सामाजिक एकता का सजीव उदाहरण बना दिया। पूरे मार्ग में विदेशी भक्तों की संकीर्तन मंडली वैदिक धुनों पर नृत्य और कीर्तन करती हुई रथ के साथ चल रही थी। महिलाओं द्वारा प्रस्तुत भक्ति गीत, झांकियों में भगवान की बाल लीलाएं, रासलीला और गीता उपदेश के दृश्य सभी को भावविभोर कर रहे थे। स्थानीय कलाकारों द्वारा बनाई गई रंग-बिरंगी झांकियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
मुखमंडल पर स्पष्ट झलक
हर जगह पुष्पवर्षा की जा रही थी, भक्तों के माथे पर चंदन, हाथों में घंटियाँ और मुख पर “हरे कृष्ण” का जप था। यह दृश्य किसी तीर्थ के उत्सव से कम नहीं था। इस भव्य आयोजन की व्यवस्था माधव प्रभु जी के कुशल नेतृत्व और जगन्नाथ रथ यात्रा समिति 2025 के समर्पित सदस्यों के माध्यम से सम्पन्न हुई। समिति में श्री महेन्द्र अग्रवाल, माधुरी निरंजन, अभय द्विवेदी, आदित्य अग्रवाल, मनीष बुधौलिया, शरद शर्मा, रामराजा निरंजन आदि सदस्यों ने दिन-रात सेवा कर एक उत्कृष्ट आयोजन प्रस्तुत किया। सभी भक्तों को रथ खींचने का अवसर प्रदान किया गया, जिसे परम सौभाग्य माना जाता है। हजारों श्रद्धालु रथ की रस्सियों को पकड़कर भगवान की सेवा में लीन हो गए। इस सेवा का उल्लास उनके मुखमंडल पर स्पष्ट झलक रहा था। यह भाव एक साधारण धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि भगवान के प्रति समर्पण का जीवंत प्रमाण था।
आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा
रथ यात्रा के समापन पर इस्कॉन मंदिर प्रांगण में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। संध्या शुरू हुए इस कार्यक्रम में भजन संध्या, शास्त्रीय नृत्य, कृष्ण लीला आधारित नाटिका और प्रेरक प्रवचन प्रस्तुत किए गए। प्रमुख वक्ताओं ने भगवान श्री जगन्नाथ की महिमा, श्रील प्रभुपाद की कृपा और भक्ति मार्ग के महत्व पर सुंदर विचार साझा किए। सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद सभी भक्तों को सात्विक महाप्रसादम वितरित किया गया, जिसकी व्यवस्था अत्यंत सुंदर और अनुशासित रही। हजारों श्रद्धालु भक्तों ने महाप्रसाद ग्रहण किया और प्रभु कृपा का अनुभव किया। अंत में रात्रि 8 बजे विश्राम आरती के साथ भगवान को शयन कराया गया और यह दिव्य आयोजन संपन्न हुआ। यह रथ यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं थी — यह एक जीवंत आंदोलन था, जो समाज को प्रेम, सेवा और भक्ति के पथ पर ले जाने हेतु प्रेरित करता है। इस आयोजन ने यह सिद्ध कर दिया कि जब समाज आध्यात्मिकता को अपनाता है, तो उसमें एकजुटता, शांति और उत्साह स्वतः प्रकट होते हैं। इस रथ यात्रा में एक महत्वपूर्ण संदेश यह भी था कि धर्म का उद्देश्य केवल पूजा नहीं, सेवा और समाज निर्माण भी है। इस्कॉन उरई ने इस दृष्टिकोण को भलीभांति प्रस्तुत किया और एक ऐसा आयोजन रच दिया, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा।
इस्कॉन उरई परिवार ने नगर के सभी श्रद्धालुओं, स्वयंसेवकों, प्रशासनिक अधिकारियों, मीडिया बंधुओं, और विशेष रूप से उन भक्तों का हृदय से आभार व्यक्त किया है जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस आयोजन को सफल बनाने में सहयोग किया। माधव प्रभु ने अंत में सभी से निवेदन किया कि वे भक्ति के इस पथ को अपने जीवन का अंग बनाएं और इस्कॉन के कार्यक्रमों में सपरिवार सहभागी होकर अपने जीवन को आध्यात्मिक दिशा दें। इस्कॉन उरई का संकल्प है कि आने वाले वर्षों में यह रथ यात्रा और भी भव्य, अनुशासित और जन कल्याणकारी रूप में प्रस्तुत की जाएगी।