

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अंतरधार्मिक जोड़े की याचिका पर संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस से विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। याचिकाकर्ता दंपती ने आरोप लगाया है कि सुरक्षा की गुहार लगाने के बावजूद पुलिस ने उन्हें जबरन अलग कर दिया। अदालत ने डीसीपी को निर्देश दिया है कि महिला की इच्छा का सम्मान करते हुए जरूरी कदम उठाए जाएं।
दिल्ली हाई कोर्ट
New Delhi: दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार 25 जुलाई को एक अंतरधार्मिक दंपती की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस के रवैये पर कड़ी नाराजगी जताई। याचिका में दावा किया गया है कि जब यह जोड़ा सुरक्षा की मांग को लेकर दक्षिण-पूर्वी जिले के डीसीपी कार्यालय पहुंचा तो पुलिस ने सुरक्षा देने के बजाय उन्हें जबरन अलग कर दिया।
अदालत का डीसीपी को निर्देश
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने मामले में डीसीपी को व्यक्तिगत रूप से जांच करने का निर्देश दिया और कहा कि वे उसी दिन महिला से शेल्टर होम जाकर संपर्क करें। कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि महिला क्या वाकई याचिकाकर्ता पुरुष के साथ रहना चाहती है या नहीं। यदि महिला ऐसा चाहती है तो उन्हें तत्काल 'सेफ हाउस फॉर कपल्स' में स्थानांतरित करने की व्यवस्था की जाए।
पुलिस पर जबरन अलग करने का आरोप
याचिकाकर्ता दंपती उत्तर प्रदेश के निवासी हैं और उन्होंने 22 जुलाई को दिल्ली आकर पुलिस से सुरक्षा की मांग की थी। उनका कहना है कि उन्हें सामाजिक और पारिवारिक विरोध का सामना करना पड़ रहा है। पुलिस ने न केवल उनकी बात नजरअंदाज की बल्कि महिला को 24 जुलाई की रात 3 बजे मेडिकल जांच के बाद शेल्टर होम भेज दिया गया, जबकि महिला ने बार-बार आग्रह किया कि वह अपने साथी के साथ रहना चाहती है।
कोर्ट का कड़ा रुख
हाई कोर्ट ने डीसीपी को आदेश दिया है कि 23 और 24 जुलाई की घटनाओं की विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाए और इसे 8 अगस्त से पहले अदालत में प्रस्तुत किया जाए। साथ ही, कोर्ट ने पुलिस को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए कि महिला की सुरक्षा और इच्छा का पूरी तरह से ध्यान रखा जाए।
कानूनी अधिकारों की दुहाई
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि वे 2018 से रिश्ते में हैं और अब उन्होंने कानूनी रूप से शादी कर साथ रहने का निर्णय लिया है। उनका कहना है कि भारत के संविधान के तहत उन्हें यह अधिकार है कि वे बिना किसी सामाजिक या पारिवारिक हस्तक्षेप के अपनी मर्जी से विवाह कर सकें। याचिका में यह भी कहा गया कि पुलिस का व्यवहार उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
पुलिस की भूमिका पर सवाल
यह मामला एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि पुलिस ऐसे संवेदनशील मामलों में किस हद तक निष्पक्ष रहती है। जहां एक ओर समाज में अंतरधार्मिक रिश्तों को लेकर कई तरह की मानसिकता बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर अगर सुरक्षा मांगने पर पुलिस खुद ही भेदभावपूर्ण कदम उठाए, तो इससे पीड़ित पक्ष की आस्था और अधिकारों को ठेस पहुंचती है।