क्या चुनाव आयोग चुपचाप काट सकता है वोटर लिस्ट से नाम? जानिए नियम और हक की पूरी कहानी

राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि कर्नाटक के अलंद क्षेत्र में कई लोगों के नाम वोटर लिस्ट से चुपचाप काट दिए गए हैं। इस पर विवाद बढ़ गया है। क्या वाकई बिना सूचना किसी का नाम हटाया जा सकता है? आईए जानते हैं वोटिंग लिस्ट से नाम हटाने के क्या नियम हैं।

Post Published By: Nidhi Kushwaha
Updated : 18 September 2025, 2:24 PM IST
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New Delhi: कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा है कि कर्नाटक के अलंद विधानसभा क्षेत्र में बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से चुपचाप हटा दिए गए हैं। राहुल गांधी का आरोप है कि चुनाव आयोग इस प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरत रहा और यहां तक कि उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त पर "वोट चोरों की रक्षा" करने का आरोप भी लगाया।

इस पूरे विवाद के केंद्र में एक सवाल उठता है कि क्या चुनाव आयोग बिना बताए किसी का भी नाम वोटर लिस्ट से काट सकता है? आइए जानते हैं इस पर क्या कहता है नियम।

 क्या होता है ‘स्पीकिंग ऑर्डर’?

दरअसल, हाल ही में जब बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान चल रहा था, तब यह आरोप सामने आया कि चुनाव आयोग बिना किसी सूचना के मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटा देता है। इस पर जवाब देते हुए आयोग ने स्पष्ट किया कि "स्पीकिंग ऑर्डर" एक लिखित आदेश होता है, जिसमें यह विस्तार से बताया जाता है कि किसी मतदाता का नाम क्यों हटाया जा रहा है।

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यह आदेश केवल निर्णय नहीं, बल्कि उस निर्णय का तर्क और आधार भी प्रस्तुत करता है। यह आदेश निर्वाचन अधिकारी या सहायक निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी द्वारा ही जारी किया जा सकता है।

वोटर लिस्ट

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बिना नोटिस नाम हटाना अब संभव नहीं

चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार, अब किसी भी मतदाता का नाम तभी हटाया जा सकता है जब-

  • पहले उसे नोटिस जारी किया जाए
  • उसके पास अपनी बात रखने का अवसर हो
  • फिर संबंधित अधिकारी स्पीकिंग ऑर्डर के माध्यम से निर्णय ले

पहले के समय में बूथ लेवल अधिकारी (BLO) मनमाने ढंग से लोगों के नाम काट देते थे। इसका परिणाम यह होता था कि व्यक्ति को चुनाव के दिन पता चलता था कि उसका नाम लिस्ट में ही नहीं है। लेकिन अब यह प्रक्रिया सख्त नियमों से संचालित होती है।

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 नई व्यवस्था से क्या बदलेगा?

  • मतदाता को पूर्व सूचना और सुनवाई का अधिकार मिलेगा
  • चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वसनीयता बढ़ेगी
  • राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोप कम होंगे
  • लोगों का लोकतंत्र में भरोसा मजबूत होगा

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