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उत्तर प्रदेश में 4 नवम्बर से चल रही मतदाता सूची विशेष गहन परीक्षण (SIR) प्रक्रिया 26 दिसंबर को समाप्त हो गयी है। चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 15.44 करोड़ मतदाताओं में से 2.89 करोड़ मतदातों के नाम कटने तय माना जा रहा है। इससे आम मतदाताओँ के बीच चिंता बढ़ गई है।
गाजियाबाद में मुद्दा गरमाया
गाजियाबाद: जनपद में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। हालिया रिपोर्टों और राजनीतिक दलों के दावों के अनुसार जिले में लाखों मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए जाने की बात सामने आ रही है। इस मुद्दे ने न केवल स्थानीय राजनीति को गर्मा दिया है, बल्कि आम मतदाताओं के बीच भी चिंता बढ़ा दी है।
जानकारी के अनुसार यूपी में एसआईआर अभियान के तहत कुल 2.89 करोड़ के नाम कटने अब तय हैं। शुक्रवार को एसआईआर के तहत गणना प्रपत्र जमा करने की अंतिम तिथि खत्म हो गई है। अब 31 दिसंबर को ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित होगी।
जिलेवार आंकड़ों से साफ़ है कि SIR में सबसे ज्यादा असर शहरी क्षेत्र के मतदाताओं पर पडा है। अनुमान के मुताबिक गाजियाबाद में 8 लाख 18 हज़ार 325 वोट कटेंगें।
प्रशासन की ओर से कहा जा रहा है कि चुनाव आयोग के निर्देश पर एसआईआर अभियान चलाया गया, जिसका उद्देश्य मृत, स्थानांतरित या फर्जी मतदाताओं के नाम सूची से हटाना है। अधिकारियों का दावा है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह नियमों के अनुसार और पारदर्शी ढंग से की गई है। बूथ लेवल अधिकारियों (BLO) द्वारा घर-घर जाकर सत्यापन किया गया और दस्तावेजों के आधार पर आवश्यक संशोधन किए गए।
हालांकि विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों का आरोप है कि इस प्रक्रिया में भारी अनियमितताएं हुई हैं। उनका कहना है कि बड़ी संख्या में ऐसे मतदाताओं के नाम भी सूची से हटा दिए गए हैं, जो जीवित हैं, उसी पते पर रह रहे हैं और नियमित रूप से मतदान करते आए हैं। कई क्षेत्रों से शिकायतें सामने आई हैं कि लोगों को बिना सूचना दिए उनका नाम वोटर लिस्ट से काट दिया गया।
चुनाव आयोग के मुताबिक शहरों में नाम कटने का असर ज्यादा मिला है। इस प्रक्रिया में पलायन, डुप्लीकेट और लापता मतदाताओं की संख्या होने के कारण लाखों वोटरों के नाम काटे गए हैं। स्थाई रूप से ट्रांसफर या पलायन वाले मतदाता सबसे ज्यादा हैं।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि जब उन्होंने ऑनलाइन पोर्टल या बूथ पर जाकर जानकारी ली तो उन्हें पता चला कि उनका नाम मतदाता सूची में दर्ज ही नहीं है। कुछ लोगों का आरोप है कि BLO उनके घर तक पहुंचे ही नहीं, फिर भी रिपोर्ट में उन्हें “स्थानांतरित” या “अनुपलब्ध” दर्शा दिया गया।
राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को लोकतंत्र से जोड़ते हुए कहा है कि अगर वास्तव में करोड़ों मतदाताओं के नाम कटे हैं तो यह बेहद गंभीर मामला है। विपक्ष ने चुनाव आयोग से निष्पक्ष जांच की मांग की है और साथ ही यह भी कहा है कि जिन मतदाताओं के नाम गलत तरीके से हटाए गए हैं, उन्हें तुरंत सूची में दोबारा जोड़ा जाए।
वहीं जिला प्रशासन ने अपील की है कि जिन नागरिकों का नाम मतदाता सूची से कट गया है, वे घबराएं नहीं। ऐसे मतदाता निर्धारित समय सीमा के भीतर दावा-आपत्ति (क्लेम और ऑब्जेक्शन) दाखिल कर सकते हैं। इसके लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं।
चुनाव आयोग के मुताबिक अब 31 दिसंबर को ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी होगी, उसके बाद जिनके नाम हटे हैं या कोई भी दावा-आपत्ति है उन्हें 30 जनवरी 2026 तक स्वीकार किया जाएगा. इसके बाद 28 फरवरी को अंतिम मतदाता सूची जारी होगी जिनके नाम कटे हैं उन्हें संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराने होंगे। उसके बाद उनका नाम मतदाता सूची में जोड़ा जाएगा।
फिलहाल गाजियाबाद में एसआईआर को लेकर बहस तेज है। आने वाले दिनों में यह साफ हो पाएगा कि वास्तव में कितने नाम कटे, कितने सही थे और कितने मामलों में सुधार की जरूरत है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में मतदाता सूची की शुद्धता जितनी जरूरी है, उतना ही जरूरी यह भी है कि किसी भी पात्र नागरिक का मतदान अधिकार न छीना जाए।