

सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए समन भेजने से लेकर भुगतान तक नई व्यवस्था लागू की है। अब आरोपी ऑनलाइन भुगतान कर सकता है और समरी ट्रायल के जरिए त्वरित फैसला संभव होगा। सभी निर्देश 1 नवंबर 2025 से लागू होंगे।
सुप्रीम कोर्ट
New Delhi: देशभर में चेक बाउंस (धारा 138 N.I. Act) से जुड़े लाखों लंबित मामलों की सुनवाई अब और तेज होगी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस संबंध में महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं। जस्टिस मनमोहन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की बेंच ने ट्रायल कोर्ट के लिए एक नया प्रक्रिया मॉडल पेश करते हुए कहा कि इन मामलों में जल्द न्याय और भुगतान सुनिश्चित करना प्राथमिकता होनी चाहिए, न कि सिर्फ सजा देना।
बेंच ने पाया कि दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे महानगरों में ट्रायल कोर्ट में लंबित मामलों का लगभग 50% हिस्सा चेक बाउंस केस हैं। इन्हें निपटाने के लिए कोर्ट ने एक समन प्रोसेसिंग सिस्टम, ऑनलाइन भुगतान सुविधा, और समरी ट्रायल की प्राथमिकता सहित कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं। ये सभी निर्देश 1 नवंबर 2025 से पूरे देश में लागू होंगे।
समन भेजने में तकनीकी इस्तेमाल
अब आरोपी को समन सिर्फ डाक या पुलिस से ही नहीं, बल्कि ईमेल, मोबाइल नंबर, व्हाट्सएप, और अन्य मैसेजिंग ऐप्स के जरिए भी भेजा जाएगा। इसके लिए शिकायतकर्ता को आरोपी की मोबाइल और ईमेल जानकारी एफिडेविट के साथ देनी होगी।
दस्ती सर्विस (Personal Service) अनिवार्य
शिकायतकर्ता खुद जाकर आरोपी को समन की कॉपी दे सकता है और इसके बाद हलफनामा देकर कोर्ट को सूचित करेगा।
ऑनलाइन भुगतान की सुविधा
अब समन में ही आरोपी को QR कोड या UPI लिंक के जरिए ऑनलाइन भुगतान की सुविधा दी जाएगी। अगर आरोपी चाहे तो बिना कोर्ट आए राशि जमा कर मामला निपटा सकता है।
समरी ट्रायल को प्राथमिकता
इन मामलों को लंबा खींचने के बजाय कोर्ट उन्हें संक्षिप्त मुकदमे (Summary Trial) में सुनेगी। यदि समरी ट्रायल को समन ट्रायल में बदला जाए तो उसका कारण स्पष्ट रूप से रिकॉर्ड करना होगा।
प्रतीकात्मक फोटो (सोर्स-गूगल)
समझौते को बढ़ावा (Compounding Mechanism)
कोर्ट ने कहा है कि अगर आरोपी राशि चुका देता है तो मामला समझौते से निपटाया जा सकता है-
यदि आरोपी जिरह से पहले भुगतान करता है तो कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लगेगा।
यदि डिफेंस एविडेंस के बाद लेकिन फैसले से पहले भुगतान होता है, तो 5% अतिरिक्त देना होगा।
अपील या रिवीजन के दौरान भुगतान करने पर 7.5%, और
सुप्रीम कोर्ट में समझौते की स्थिति में 10% अतिरिक्त राशि चुकानी होगी।
शाम की अदालतों (Evening Courts) को अधिक राशि वाले केस सुनने का अधिकार मिले।
डैशबोर्ड सिस्टम के जरिए केस ट्रैकिंग- दिल्ली, मुंबई और कोलकाता की अदालतों में आंकड़े अपडेट हों।
निगरानी कमिटी बनाई जाए जो इन मामलों की गति पर नज़र रखे।
लोक अदालत और मध्यस्थता को बढ़ावा मिले ताकि पक्षों में सुलह हो सके।
आरोपी और शिकायतकर्ता की उपस्थिति सुनिश्चित हो। सिर्फ विशेष परिस्थिति में ही छूट मिले।
अंतरिम राशि जमा कराने की प्रक्रिया को तेज किया जाए।
ध्यान देने वाली बात यह है कि चेक बाउंस केस में अधिकतम 2 साल की सजा का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आरोपी को Probation of Offenders Act, 1958 के तहत जेल जाने से राहत मिल सकती है। अगर आरोपी गुनाह स्वीकार करता है और राशि चुका देता है, तो कोर्ट उसे प्रोबेशन पर छोड़ सकती है।
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सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश न केवल चेक बाउंस मामलों की लंबित संख्या को कम करने में मदद करेगा, बल्कि इससे न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और दक्षता भी आएगी। इसके साथ ही, पीड़ित पक्ष को शीघ्र न्याय मिलेगा और आरोपी को भी सुधार का अवसर मिलेगा।
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