

सोमवार, 21 जुलाई की रात करीब 9 बजे देश की राजनीति में एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से अचानक इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपने इस्तीफे की वजह स्वास्थ्य संबंधी कारण बताए, लेकिन इस कदम की टाइमिंग और असली वजहों पर विपक्षी दलों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।
जगदीप धनखड़ (सोर्स इंटरनेट)
News Delhi: सोमवार, 21 जुलाई की रात करीब 9 बजे देश की राजनीति में एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से अचानक इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपने इस्तीफे की वजह स्वास्थ्य संबंधी कारण बताए, लेकिन इस कदम की टाइमिंग और असली वजहों पर विपक्षी दलों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। ऐसे में यह चर्चा फिर से गर्म हो गई है कि देश के उपराष्ट्रपति को क्या सैलरी और सुविधाएं मिलती हैं, और यह पद कितना शक्तिशाली होता है।
भारत के उपराष्ट्रपति को अलग से कोई “सीधी” सैलरी नहीं दी जाती, क्योंकि वे राज्यसभा के सभापति भी होते हैं और उन्हें उसी भूमिका के अंतर्गत वेतन और भत्ते दिए जाते हैं।
2018 के बजट में हुए संशोधन के बाद उपराष्ट्रपति को हर महीने ₹4 लाख रुपये सैलरी दी जाती है। इससे पहले यह सैलरी ₹1.25 लाख थी।
रिटायरमेंट के बाद उपराष्ट्रपति को उनकी सैलरी का 50% पेंशन के रूप में मिलता है। साथ ही, उन्हें पूर्व उपराष्ट्रपति के तौर पर भी अनेक सरकारी सुविधाएं मिलती रहती हैं। खास बात यह है कि अगर राष्ट्रपति का पद अस्थायी रूप से खाली हो जाता है, तो उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति की भूमिका निभाते हैं और उस दौरान उन्हें राष्ट्रपति जैसी सैलरी और प्रिविलेज मिलते हैं अधिकतम 6 महीनों के लिए।
भारत का उपराष्ट्रपति 5 वर्षों के कार्यकाल के लिए चुना जाता है, लेकिन उसे कई बार नियुक्त किया जा सकता है, इसकी कोई सीमा नहीं है। इस पद के लिए न्यूनतम योग्यता होनी चाहिए। जैसे भारत का नागरिक होना चाहिए, उम्र कम से कम 35 वर्ष हो और लाभ के किसी सरकारी पद पर न हो।
उपराष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता द्वारा नहीं किया जाता। इसका निर्णय संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित और नामित सदस्य करते हैं। यह गोपनीय बैलट वोटिंग के ज़रिए होता है। राष्ट्रपति चुनाव के विपरीत, इसमें राज्य विधानसभाओं की कोई भूमिका नहीं होती। उम्मीदवार को कम से कम 20 सांसदों का समर्थन चाहिए होता है। साथ ही, उन्हें ₹15,000 की जमानत राशि भी जमा करनी होती है।
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा भले ही व्यक्तिगत कारणों से हुआ बताया जा रहा हो, लेकिन इसके राजनीतिक निहितार्थों की चर्चा ज़ोर पकड़ रही है। ऐसे में उपराष्ट्रपति पद की महत्ता और इससे जुड़ी सुविधाएं एक बार फिर लोगों की जिज्ञासा का केंद्र बन गई हैं। यह पद न केवल राज्यसभा की कार्यवाही को दिशा देता है, बल्कि जरूरत पड़ने पर राष्ट्रपति की जिम्मेदारी भी संभाल सकता है। अब देखना होगा कि इस घटनाक्रम के बाद अगला कदम क्या होगा।