बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट पर सन्नाटा: 10,570 आपत्तियां आम जनता से, लेकिन राजनीतिक दलों की ओर से शून्य प्रतिक्रिया

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग द्वारा चलाए जा रहे विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान के तहत हजारों आम मतदाताओं ने वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने और हटाने को लेकर दावे-आपत्तियां दर्ज की हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य की छह राष्ट्रीय और छह क्षेत्रीय पार्टियों ने अब तक इस प्रक्रिया में कोई भागीदारी नहीं की है। यह निष्क्रियता आगामी चुनावों को लेकर राजनीतिक दलों की तैयारियों और गंभीरता पर सवाल खड़े करती है।

Post Published By: ईशा त्यागी
Updated : 11 August 2025, 1:24 PM IST
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Patna News: बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां धीरे-धीरे तेज हो रही हैं, लेकिन इस बार एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया के दौरान एक अनोखी चुप्पी देखने को मिल रही है। भारत निर्वाचन आयोग की ओर से 1 अगस्त 2025 से राज्यभर में मतदाता विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision- SIR) शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य ड्राफ्ट वोटर लिस्ट को अपडेट करना है ताकि आगामी चुनाव निष्पक्ष और समावेशी हो सकें। हालांकि, इस प्रक्रिया में आम जनता तो सक्रिय नजर आई, लेकिन राजनीतिक दलों की भूमिका लगभग नगण्य रही है।

आम मतदाताओं की 10,570 दावे-आपत्तियां

1 अगस्त से लेकर 11 अगस्त तक के भीतर बिहार में कुल 10,570 दावे और आपत्तियां दर्ज की गई हैं। ये दावे मुख्यतः नाम हटाने, जोड़ने या संशोधन से जुड़े हुए हैं। निर्वाचन आयोग ने इनमें से 127 मामलों का निस्तारण कर दिया है, जबकि शेष प्रक्रियाधीन हैं। दूसरी ओर जिन राजनीतिक दलों की यह सीधी जिम्मेदारी है कि वे मतदाता सूची की त्रुटियों की निगरानी करें और सुधार हेतु आवश्यक कदम उठाएं वे पूरी तरह निष्क्रिय दिखाई दिए हैं। आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, छह राष्ट्रीय और छह क्षेत्रीय दलों में से किसी ने भी एक भी दावा-आपत्ति नहीं दी है।

54432 नए वोटर जुड़ने को तैयार

मतदाता सूची में नए नाम जोड़ने की प्रक्रिया के तहत आयोग को 54,432 फार्म-6 प्राप्त हुए हैं। यह दर्शाता है कि बड़ी संख्या में युवा और नए मतदाता इस बार वोटिंग प्रक्रिया में भाग लेने के इच्छुक हैं। आयोग ने बताया कि यह डाटा 1 अगस्त दोपहर 3 बजे से लेकर 11 अगस्त सुबह 10 बजे तक के बीच का है। इससे स्पष्ट होता है कि मतदाताओं में भागीदारी की भावना तो है, लेकिन राजनीतिक दलों ने इस जागरूकता को भुनाने या समर्थन देने में कोई रुचि नहीं दिखाई।

भाजपा और राजद जैसी बड़ी पार्टियां भी निष्क्रिय

राज्य की सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी (BJP) हो या प्रमुख विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) दोनों ने एक भी दावा-आपत्ति नहीं दर्ज कराई है।
• BJP ने अब तक 53,338 बूथ लेवल एजेंट (BLA) नियुक्त किए हैं।
• RJD ने 47,506 BLA तैनात किए हैं।
इनकी जिम्मेदारी होती है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में मतदाता सूची की जांच करें और किसी गड़बड़ी की जानकारी पार्टी को दें, ताकि वह आयोग के समक्ष दावा या आपत्ति दर्ज कर सके। लेकिन इतनी बड़ी संख्या में BLAs होने के बावजूद, एक भी दावा-पत्र आयोग को नहीं भेजा गया है।

राजनीतिक दलों की निष्क्रियता

1. संगठनात्मक शिथिलता- पार्टियों के जमीनी नेटवर्क में सक्रियता की कमी।
2. वोट बैंक को लेकर अति आत्मविश्वास- दलों को लगता है कि मतदाता सूची में कोई बड़ी गड़बड़ी नहीं है।
3. चुनावी तैयारी में देरी- अभी प्रचार या संगठन को प्राथमिकता दी जा रही है, जबकि तकनीकी प्रक्रियाएं नजरअंदाज हो रही हैं।
4. जनता की भागीदारी पर भरोसा- कुछ राजनीतिक दलों को लगता है कि आम मतदाता ही आवश्यक बदलाव के लिए आवेदन कर रहा है।

निर्वाचन आयोग की पारदर्शी प्रक्रिया और तकनीकी निगरानी

भारत निर्वाचन आयोग की ओर से इस बार पुनरीक्षण प्रक्रिया को अत्यंत पारदर्शी और तकनीकी रूप से सशक्त बनाया गया है। मतदाता मोबाइल ऐप्स, ऑनलाइन पोर्टल और मतदान केंद्रों पर जाकर संशोधन की प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं। इसके बावजूद राजनीतिक दलों की ओर से इस व्यवस्था का उपयोग नहीं किया जाना एक सवाल जरूर खड़ा करता है: क्या चुनावी राजनीति अब सिर्फ प्रचार और रैलियों तक सिमटकर रह गई है?

अंतिम सूची और राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी

यह विशेष पुनरीक्षण अभियान 15 सितंबर 2025 तक चलने वाला है। इसके बाद आयोग अंतिम मतदाता सूची जारी करेगा, जो आगामी विधानसभा चुनावों का आधार बनेगी। राजनीतिक दलों के पास अभी भी समय है कि वे अपने बूथ लेवल एजेंट्स को सक्रिय करें, सूची की जांच कराएं और यदि कोई मतदाता छूट गया हो या गलत नाम दर्ज हो, तो उसका संशोधन सुनिश्चित कराएं।

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