

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बीआर गवई ने बुधवार को राष्ट्रपति भवन में देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। देखें देश के जाने-माने पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश के स्पेशल शो “The MTA Speaks” में इसका पूरा विश्लेषण
सीजेआई भूषण रामकृष्ण गवई
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बीआर गवई ने बुधवार को राष्ट्रपति भवन में देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। जस्टिस गवई, जिनका पूरा नाम भूषण रामकृष्ण गवई है, ने भारत की न्यायपालिका में महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण किया है। उनका जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र में हुआ था।
देश के जाने-माने पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने स्पेशल शो "The MTA Speaks" में इसका विश्लेषण करते हुए बताया कि, CJI गवई ने अपने करियर की शुरुआत 1985 में वकालत से की थी और वे लगभग 16 साल तक बाम्बे हाईकोर्ट के जज रहे। फिर, 24 मई 2019 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने जनता के हित में कई महत्वपूर्ण फैसले दिए। CJI गवई का कार्यकाल बतौर सीजेआई लगभग 6 महीने का होगा, और वे इस साल 23 नवंबर को रिटायर होंगे।
जस्टिस गवई देश के पहले मुख्य न्यायाधीश हैं जो बौद्ध धर्म का पालन करते हैं। उनका परिवार भी डॉ. भीमराव आंबेडकर से प्रेरित है, और उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने डॉ. आंबेडकर के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। जस्टिस गवई अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले दूसरे सीजेआई हैं, जिनसे पहले जस्टिस केजी बालाकृष्णन 2007 में इस पद पर आसीन हुए थे।
सीजेआई गवई का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। उन्होंने झुग्गी बस्ती के स्कूल से पढ़ाई की और शिक्षा के दम पर न्यायपालिका के सर्वोच्च पद तक पहुंचे। पिछले साल उन्होंने एक भाषण में कहा था, "यह पूरी तरह से डॉ. बीआर आंबेडकर के प्रयासों का परिणाम है कि मेरे जैसे किसी व्यक्ति को, जो एक झुग्गी बस्ती के स्कूल से पढ़कर इस पद तक पहुंचा।"
सीजेआई गवई की पहचान एक ऐसे जज के रूप में बनी है जो आम लोगों के हित में फैसले सुनाते हैं। उन्होंने राजनीति से जुड़े कई मामलों में महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं, जिनमें मनीष सिसोदिया से लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मामले भी शामिल हैं। राहुल गांधी के मानहानि मामले में जस्टिस गवई ने उन्हें महत्वपूर्ण राहत दी और गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को पलटा, जिसके बाद राहुल चुनाव लड़े और जीतकर लोकसभा पहुंचे।
सीजेआई गवई का मानना है कि न तो संसद सर्वोच्च है और न ही न्यायपालिका; असल में संविधान सर्वोच्च है। उन्होंने एससी-एसटी आरक्षण के भीतर कोटा बनाने के मामलों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसके अलावा, उन्होंने चुनावी फंडिंग के प्रावधानों को असंवैधानिक ठहराने सहित कई महत्वपूर्ण मामलों में सक्रिय भूमिका निभाई है।
सीजेआई गवई बुलडोजर न्याय की आलोचना करते हुए कह चुके हैं कि लोगों के घरों को बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए गिराना गलत है। उन्होंने वक्फ संशोधन कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाले एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई में भी हिस्सा लिया है, जो आज 15 मई को होनी है।
उनकी भविष्य की योजनाओं में रिटायरमेंट के बाद किसी राजनीतिक पद को स्वीकार नहीं करना शामिल है। जस्टिस गवई का यह मानना है कि न्यायाधीशों को उनके कार्यकाल के बाद कोई अन्य पद नहीं ग्रहण करना चाहिए, ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनी रहे।