The MTA Speaks: इंडिगो संकट के लिए कौन है जिम्मेदार? उड़ानें क्यों आई जमीन पर, पढ़ें पूरा खुलासा और विश्लेषण

इंडिगो की सैकड़ों उड़ानों के अचानक रद्द होने से देशभर में हंगामा मच गया। जांच में सामने आया कि DGCA के नए FDTL नियम, पायलटों की कमी और इंडिगो की तैयारियों की कमी इस अभूतपूर्व संकट की प्रमुख वजह हैं। हजारों यात्री फंसे, टिकट दाम बढ़े और एयरपोर्टों पर भारी अव्यवस्था देखी गई।

Post Published By: Manoj Tibrewal Aakash
Updated : 8 December 2025, 10:06 AM IST
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New Delhi: एक ऐसा संकट, जिसने यात्रियों का भरोसा तोड़ दिया, एयरलाइनों की तैयारी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए और यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या भारत की हवाई यात्रा व्यवस्था इतनी नाज़ुक और एकतरफ़ा हो चुकी है कि एक एयरलाइन की चूक पूरे सिस्टम को ठप कर सकती है। हम बात कर रहे हैं देश की सबसे बड़ी निजी एयरलाइन IndiGo की सैकड़ों उड़ानों के अचानक रद्द होने, हजारों यात्रियों के फंस जाने, टिकटों के दाम आसमान छूने और हवाई अड्डों पर मचे अभूतपूर्व हंगामे की।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks  में IndiGo संकट को लेकर विश्लेषण किया।

कैसे हुई IndiGo की शुरुआत?

IndiGo की नींव साल 2005 में रखी गई। इसके संस्थापक राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल थे। इंटरग्लोब एंटरप्राइजेज के राहुल भाटिया और अमेरिका की कंपनी Caelum Investments के राकेश गंगवाल ने मिलकर उस समय भारतीय विमानन उद्योग में कदम रखा जब देश में हवाई यात्रा तेजी से बढ़ रही थी। 2005 में Indigo ने 100 Airbus A320-200 विमान का ऑर्डर देकर यह संकेत दे दिया कि वह लंबी दौड़ का खिलाड़ी है। 28 जुलाई 2006 को IndiGo को पहला एयरबस विमान मिला और इसके ठीक एक सप्ताह बाद, 4 अगस्त 2006 को दिल्ली-गुवाहाटी-इम्फाल मार्ग से IndiGo की पहली उड़ान शुरू हुई।

IndiGo कैसे बना नंबर-1 घरेलू एयरलाइन

शुरुआती वर्षों में इंडिगो के पास सिर्फ कुछ विमान थे, लेकिन कंपनी ने लगातार अपना नेटवर्क बढ़ाया। 2006 के अंत तक उसके पास 6 विमान हो चुके थे और 2007 तक यह संख्या 9 तक पहुंच गई। धीरे-धीरे IndiGo लो-कॉस्ट मॉडल और समय पर उड़ान की प्रतिष्ठा के साथ भारतीय आसमान में छा गई। मध्यम वर्ग की बढ़ती purchasing power, बिजनेस यात्रा में बढ़ोतरी और देश में तेज़ी से विकसित होते हवाई अड्डों ने मिलकर IndiGo को भारत की नंबर-1 घरेलू एयरलाइन बना दिया।

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साल 2014 के बाद IndiGo ने तेजी से बाजार हिस्सेदारी बढ़ाई और कुछ ही वर्षों में 60 से 65 प्रतिशत मार्केट शेयर हासिल कर लिया। इतनी बड़ी हिस्सेदारी ने इंडिगो को एक तरह से ‘बाजार का वास्तविक चालक’ बना दिया। जहां इंडिगो ने सस्ती, भरोसेमंद और नियमित उड़ानों से यात्रियों का भरोसा जीता, वहीं दूसरी ओर इसकी बढ़ती निर्भरता और एकाधिकार ने भविष्य के जोखिम भी खड़े किए।

विमानन इतिहास का नया अध्याय

इसी बीच आया 2025 और उसके साथ आया विमानन इतिहास का एक नया अध्याय-FDTL यानी Flight Duty Time Limitations के नियमों में बड़ा बदलाव। DGCA ने पायलटों और क्रू की सुरक्षा, थकान-नियंत्रण, रात की उड़ानों की सीमा और आवश्यक विश्राम अवधि को ध्यान में रखते हुए नए दिशा-निर्देश लागू किए। दुनिया भर में यह माना जाता है कि थकान एयरक्रू की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है और गलतियां बढ़ाती हैं। इसलिए इन नियमों का उद्देश्य था कि क्रू को उचित विश्राम मिले, रात की लगातार उड़ानों पर रोक लगे, ड्यूटी आवर्स कम हों और यात्रियों की सुरक्षा मजबूत हो। भारत में कई पायलट संघ लंबे समय से ऐसे नियमों की मांग कर रहे थे।

पर्याप्त पायलट और क्रू उपलब्ध नहीं

लेकिन समस्या वहीं खड़ी हुई, जहां इंडिगो अपनी ही सफलता का बोझ उठा रही थी। IndiGo को महीनों पहले जानकारी थी कि DGCA नए FDTL नियम लागू करेगा। इसके बावजूद कंपनी ने पर्याप्त बैक-अप पायलट भर्ती, क्रू-आरक्षित दल, शेड्यूलिंग में बदलाव और रोस्टर सुधार जैसे कदम समय पर नहीं उठाए। इसके विपरीत कंपनी ने उड़ानों की संख्या बढ़ाने, रात की उड़ानों में विस्तार करने और नए रूट जोड़ने की तैयारी जारी रखी। परिणाम यह हुआ कि जैसे ही नया नियम लागू हुआ, इंडिगो के पास रात की शिफ्ट के लिए पर्याप्त पायलट और क्रू उपलब्ध नहीं रहे। रेस्ट-टाइम बढ़ने से पायलट कई उड़ानें ऑपरेट नहीं कर पाए। रोस्टर गड़बड़ाया, शेड्यूल चरमराया और अचानक सैकड़ों उड़ानें रद्द होने लगीं।

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एक ही दिन में 500 से अधिक उड़ानें रद्द

रिपोर्ट्स के अनुसार केवल नवंबर 2025 में Indigo ने 1,232 उड़ानें रद्द कीं, जिनमें से लगभग 60 प्रतिशत यानी 755 उड़ानें सीधे FDTL और क्रू की कमी के कारण रद्द हुईं। अक्टूबर 2025 में Indigo का ऑन-टाइम परफॉर्मेंस 84 प्रतिशत था, जो नवंबर में गिरकर सिर्फ 68 प्रतिशत रह गया। दिसंबर की शुरुआत में तो हालात और बेकाबू हो गए। एक ही दिन में 500 से अधिक उड़ानें रद्द हो गईं। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू, हैदराबाद, गोवा, जयपुर, लखनऊ जैसे बड़े हवाई अड्डों पर अफरा-तफरी का माहौल बन गया। यात्रियों ने एयरपोर्ट काउंटरों पर लंबी लाइनों, असंतोष, नारेबाजी और भारी अव्यवस्था की शिकायत की।

यात्रियों को हुई भारी परेशानी

कई यात्रियों ने बताया कि उड़ान रद्द होने की जानकारी उन्हें अंतिम क्षणों में मिली। कुछ के अनुसार, उन्हें वैकल्पिक उड़ान या भोजन-कूपन जैसी सुविधाएं नहीं दी गईं। कई यात्रियों की कनेक्टिंग फ्लाइट छूट गई, किसी का अंतरराष्ट्रीय प्रोग्राम बिगड़ गया, किसी की शादी, इंटरव्यू या मेडिकल इमरजेंसी प्रभावित हो गई। सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो वायरल हुए जिसमें यात्री एयरपोर्ट पर जमीन पर सोते हुए नजर आए। कुछ यात्रियों को रातभर एयरपोर्ट पर फंसे रहना पड़ा। बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं सबसे ज्यादा परेशान हुए। भारत के विमानन इतिहास में यह उन दिनों में से एक था, जब यात्रियों ने एयरलाइन व्यवस्था पर भरोसा खो दिया।

इधर जब मामला बिगड़ा, तो DGCA और केंद्र सरकार की नींद खुली। DGCA ने माना कि Indigo की शेड्यूलिंग विफलता और FDTL प्रावधानों के लागू होने से संकट बढ़ा। DGCA ने अस्थायी राहत देते हुए कुछ FDTL नियमों, जैसे रात के रेस्ट-टाइम, लगातार नाइट-ड्यूटी प्रतिबंध में सीमित अवधि के लिए छूट दी। यह कदम यात्रियों की तत्काल परेशानी दूर करने के लिए था, लेकिन इससे एक नया विवाद खड़ा हो गया। कई विशेषज्ञों ने सवाल उठाया कि क्या सुरक्षा-संबंधी नियमों में ढील देना उचित है? क्या यह पायलटों की थकान और सुरक्षा जोखिम को बढ़ा सकता है? क्या बड़े एयरलाइन समूह की सुविधा के लिए नियम कमजोर किए गए?

केंद्र ने गठित की उच्च-स्तरीय जांच समिति

इसी दौरान केंद्र सरकार ने एक चार-सदस्यीय उच्च-स्तरीय जांच समिति गठित की, जिसमें विमानन विशेषज्ञ, प्रशासनिक अधिकारी और परिचालन विशेषज्ञ शामिल किए गए। इस समिति को यह जांचना है कि Indigo ने समय रहते तैयारी क्यों नहीं की, उसकी शेड्यूलिंग खामी क्यों सामने आई और क्या FDTL लागू करते समय DGCA ने एयरलाइनों की क्षमता का सही मूल्यांकन नहीं किया। यह भी जांच होगी कि क्या Indigo ने लागत बचाने के लिए पायलट भर्ती में देरी की, क्या उसने “lean crew model” अपनाकर जोखिम उठाया और क्या उसकी रोस्टर योजना वास्तविक उड़ान आवृत्ति से मेल नहीं खाती थी।

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एकाधिकार या quasi-monopoly

यह पूरा संकट भारत की विमानन व्यवस्था में एक और बड़ी समस्या को उजागर करता है, एकाधिकार या quasi-monopoly। जब किसी देश की घरेलू उड़ानों का 60-65 प्रतिशत एक ही कंपनी के पास हो और वह अचानक लड़खड़ा जाए, तो पूरा विमानन तंत्र चेन रिएक्शन में गिरने लगता है। भारत में Jet Airways के पतन, Go First के दिवालिया होने और Air India के निजीकरण के बाद निजी एयरलाइन क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा काफी कम हो गई।

नतीजा यह हुआ कि यात्रियों के पास विकल्प बेहद सीमित हैं। जब Indigo जैसी एक अकेली विशाल कंपनी लड़खड़ाती है, तो न सिर्फ उसका शेड्यूल बिगड़ता है, बल्कि पूरा बाजार प्रभावित होता है। टिकट दाम बढ़ जाते हैं, वैकल्पिक उड़ानें नहीं मिलतीं और यात्रियों को मजबूरी में महंगे टिकट खरीदने पड़ते हैं।

भविष्य में दोबारा नहीं होगा ऐसा संकट?

अब सवाल यह है कि इस स्थिति से बाहर कैसे निकला जाए और भविष्य में ऐसा संकट दोबारा न हो इसके लिए क्या उपाय जरूरी हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि एयरलाइनों को विस्तार के साथ-साथ बैक-अप योजना भी उतनी ही मजबूत रखनी चाहिए। पायलटों और क्रू की कमी के कारण उड़ानें रद्द होना यह साबित करता है कि लागत बचत की रणनीतियां यात्रियों पर भारी पड़ती हैं। एयरलाइनों को समय रहते पर्याप्त भर्ती, उचित प्रशिक्षण, संतुलित शेड्यूलिंग और तकनीकी बैकअप तैयार रखना चाहिए। साथ ही DGCA को चाहिए कि सुरक्षा नियम बनाते समय एयरलाइनों की वास्तविक क्षमता का पहले से मूल्यांकन करे।

यात्रियों के लिए भी यह जरूरी है कि वे विमानन सेवा चुनते समय सिर्फ सस्ता किराया न देखें, बल्कि एयरलाइन की विश्वसनीयता, ऑन-टाइम परफॉर्मेंस और संकट-प्रबंधन क्षमता को भी ध्यान में रखें। सरकार को चाहिए कि वह अधिक प्रतिस्पर्धी एयरलाइनों को प्रोत्साहन दे, क्षेत्रीय उड़ानों को सहयोग दे, नए हवाई अड्डे विकसित करे और विमानन क्षेत्र में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दे। तभी एक एयरलाइन की विफलता पूरे देश की हवाई यात्रा व्यवस्था को प्रभावित नहीं करेगी।

Location : 
  • New Delhi

Published : 
  • 8 December 2025, 10:06 AM IST