

उत्तराखंड में नशे का कारोबार खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है। पिछले तीन वर्षों में पुलिस ने 208 करोड़ की ड्रग्स जब्त की हैं और हजारों गिरफ्तारियां की हैं। ‘नशा मुक्त उत्तराखंड’ अभियान के बावजूद आंकड़े बताते हैं कि जंग अभी लंबी है।
'नशा मुक्त उत्तराखंड' अभियान को लेकर पुलिस ने की प्रेस वार्ता
Dehradun: उत्तराखंड जो देशभर में देवभूमि के नाम से जाना जाता है, अब नशे के अंधेरे दलदल में तेजी से फंसता जा रहा है। प्रदेश की आबोहवा, पर्यटक स्थलों और शांति के लिए प्रसिद्ध इस राज्य में अब नशे का जाल गहराई तक फैल चुका है। स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि राज्य सरकार को "नशा मुक्त उत्तराखंड अभियान" चलाना पड़ा है। इस अभियान के तहत पिछले तीन वर्षों में उत्तराखंड पुलिस ने बड़ी संख्या में कार्रवाई की है।
पुलिस के आंकड़ों के अनुसार बीते तीन वर्षों में 3,431 एनडीपीएस एक्ट के तहत मुकदमे दर्ज किए गए हैं। जिसमें 4,440 से ज्यादा आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। इन कार्रवाइयों के दौरान पुलिस ने कुल 208 करोड़ रुपये से अधिक की नशीली दवाओं और पदार्थों की बरामदगी की है। यह न केवल उत्तराखंड के लिए चिंता का विषय है, बल्कि यह दर्शाता है कि किस तरह से राज्य को नशा तस्करों ने अपने नेटवर्क का हिस्सा बना लिया है।
उत्तराखंड पुलिस का कहना है कि पारंपरिक नशे जैसे गांजा, चरस और हेरोइन के अलावा अब नशा तस्करी के नए ट्रेंड्स में एमडीएमए और सिंथेटिक ड्रग्स का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। ये ड्रग्स विशेष रूप से युवा पीढ़ी को आकर्षित कर रहे हैं क्योंकि ये पार्टी ड्रग्स के रूप में प्रचारित किए जाते हैं और आसानी से ऑनलाइन या सोशल मीडिया के जरिए बेचे जाते हैं।
अब तक की कार्रवाई में पुलिस ने कुल 681 किलो चरस, 59 किलो हेरोइन, 4954 किलो गांजा, 61 किलो अफीम और 649 किलो डोडा बरामद किया है। इसके अलावा उत्तराखंड पुलिस ने 7 लाख 18 हजार से अधिक नशीले कैप्सूल, 38 हजार इंजेक्शन और 7 लाख से ज्यादा नशे की गोलियां भी जब्त की हैं।
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इन सामग्रियों की बाजार में कुल कीमत लगभग 208 करोड़ रुपये के आसपास आंकी गई है, जो इस बात का सबूत है कि तस्कर किस स्तर पर काम कर रहे हैं और नशे का व्यापार कितना संगठित हो चुका है।
उत्तराखंड सरकार और पुलिस की ओर से "नशा मुक्त देवभूमि" का अभियान जोरशोर से चलाया जा रहा है, लेकिन जिस तेजी से नशे का नेटवर्क फैल रहा है, वह लड़ाई को और लंबा बना रहा है। स्कूलों, कॉलेजों और गांवों तक यह जहर फैल चुका है और युवाओं की जिंदगी इससे बर्बाद हो रही है। पुलिस का कहना है कि सिर्फ कानूनी कार्रवाई से इस नेटवर्क को खत्म नहीं किया जा सकता। इसके लिए समाज, परिवार, स्कूल और जन-जागरूकता की सामूहिक जिम्मेदारी जरूरी है।