Chamoli News: बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होने की प्रक्रिया चालू, ये है मान्यता

शीतकाल के लिए बदरीनाथ धाम के कपाट बन्द होने की वैदिक प्रक्रिया शुक्रवार से शुरू हो गई है। लोक मान्यता के अनुसार पंच पूजाओं के दौरान धाम में देवताओं का आगमन शुरू हो जाता है और कपाट बंद होने के बाद छह माह तक बदरीविशाल की पूजा-अर्चना का अधिकार देवताओं का होता है।

Post Published By: Jay Chauhan
Updated : 21 November 2025, 4:11 PM IST
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Chamoli: उत्तराखंड का पवित्र  तीर्थ बदरीनाथ धाम में शीतकाल के लिए कपाट बंद होने की परंपरागत प्रक्रिया शुक्रवार से विधिवत् रूप में शुरू हो गई है। हर वर्ष की तरह इस बार भी कपाट बंद होने से पूर्व धाम में चलने वाली वैदिक पंच पूजा का शुभारंभ अत्यंत श्रद्धा और आस्था के साथ किया गया।

पंच पूजा की इस प्राचीन परंपरा का निर्वहन रावल अमरनाथ नंबूदरी, धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल तथा धाम के वेदपाठी रविंद्र भट्ट वेद-उच्चारण और वैदिक अनुष्ठानों के साथ संपन्न कर रहे हैं।

 बदरीपुरी में श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़  का उत्साह

श्रद्धालुओं की बढ़ती आमद के बीच बदरीपुरी का वातावरण इन दिनों बेहद भक्तिमय दिखाई दे रहा है। मौसम के खुशनुमा होने से तीर्थयात्रियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है और पंच पूजा के दौरान धाम में आध्यात्मिक ऊर्जा स्पष्ट महसूस की जा रही है। दर्शनार्थ आए श्रद्धालु पंच पूजा की पूजा-विधियों के साथ श्री हरि नारायण प्रभु तथा बद्रीश पंचायत के दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित कर रहे हैं।

पहले दिन की पूजा श्री गणेश को समर्पित

पंच पूजा की प्रक्रिया के तहत पहले दिन की पूजा भगवान श्री गणेश को समर्पित होती है। बदरीनाथ धाम की परंपरा के अनुसार कपाट बंद होने की शुरुआत गणेश पूजन के साथ की जाती है ताकि आने वाले दिनों के सभी धार्मिक अनुष्ठान निर्विघ्न रूप से सम्पन्न हो सकें।

आज सुबह से ही भगवान गणेश का विशेष आह्वान, श्रृंगार पूजन, अभिषेक तथा भोग लगाकर वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पूजा संपन्न की गई। देर सांय सभी वैदिक कर्मकांड पूरे होने के बाद गणेश मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए औपचारिक रूप से बंद कर दिए जाएंगे।

पंच पूजा के दूसरे दिन, यानी शनिवार 22 नवंबर को बदरीनाथ धाम के दो अन्य अत्यंत महत्वपूर्ण मंदिरों के कपाट भी बंद करने की परंपरा है। इनमें पहला है आदि केदारेश्वर मंदिर, जो भगवान शिव के हिमालयी स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है, और दूसरा आदि गुरु शंकराचार्य मंदिर, जो अद्वैत दर्शन के प्रवर्तक आदि गुरु शंकराचार्य की स्मृति को समर्पित है। दोनों मंदिरों के कपाट विधिविधान और मंत्रोच्चार के बीच भक्तिमय वातावरण में बंद किए जाएंगे।

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कपाट बंद होने से पहले आदि केदारेश्वर भगवान को विशेष रूप से अन्नकूट भोग अर्पित किया जाएगा, जो समृद्धि और कृतज्ञता का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद मंदिरों को शीतकाल के लिए सुरक्षित किया जाएगा।

कपाट बंद होने की यह पूरी प्रक्रिया बदरीनाथ धाम की सदियों पुरानी परंपराओं का अनुपालन है, जो आज भी भक्तों और तीर्थपुरोहितों द्वारा उसी श्रद्धा के साथ निभाई जाती है।

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पौराणिक काल से चली आ रही परंपराओं के अनुसार बदरीनाथ में छह माह मनुष्य की ओर से और छह माह देवताओं की ओर से भगवान बदरीनाथ की पूजा की जाती है। मान्यता है कि जैसे ही पंच पूजाएं शुरू होती हैं धाम में देवताओं का आगमन शुरू हो जाता है। शीतकाल में कपाट बंद होने के बाद पूजाओं का दायित्व देवताओं को दिया जाता है।

 

Location : 
  • Chamoli

Published : 
  • 21 November 2025, 4:11 PM IST