Baghpat News: मेरा नाम ‘फाइटर’ है, मैं आसमान से कूदकर गोली मार दूंगा…पबजी गेम ने किशोर को बनाया पागल, जानिए पूरा मामला

किशोर प्रतिदिन लगभग 18 घंटे तक मोबाइल पर पबजी खेलता था। शुरुआत में परिवार को उसकी यह आदत सामान्य लगी, लेकिन धीरे-धीरे जब उसके व्यवहार में बदलाव आने लगा तो वे परेशान हो उठे। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की खास रिपोर्ट

Post Published By: Mayank Tawer
Updated : 13 May 2025, 2:44 PM IST
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बागपत: टीकरी कस्बे से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। जहां ऑनलाइन गेमिंग की लत ने एक किशोर की मानसिक स्थिति को गंभीर रूप से प्रभावित कर दिया। किशोर पबजी (PUBG) गेम की लत में इस कदर डूब गया कि उसने वास्तविकता से नाता तोड़ लिया और खुद को गेम का खिलाड़ी मानने लगा।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, किशोर प्रतिदिन लगभग 18 घंटे तक मोबाइल पर पबजी खेलता था। शुरुआत में परिवार को उसकी यह आदत सामान्य लगी, लेकिन धीरे-धीरे जब उसके व्यवहार में बदलाव आने लगा तो वे परेशान हो उठे। किशोर घर में गेम के किरदारों की तरह बातें करने लगा। खाना-पीना छोड़ दिया और परिजनों से बातचीत भी बंद कर दिया।

अस्पताल में बताया खुद को ‘फाइटर 2.0’

किशोर की बिगड़ती मानसिक स्थिति को देख परिजन उसे तत्काल एंबुलेंस से जिला अस्पताल ले गए। जांच के दौरान जब डॉक्टरों ने उसका नाम पूछा तो उसने खुद को ‘फाइटर 2.0’ बताया। यह पबजी गेम के एक पात्र जैसा नाम है। इसके बाद उसने अस्पताल में भी गेम के किरदारों जैसी हरकतें करनी शुरू कर दीं। जिससे डॉक्टरों को उसकी मानसिक स्थिति की गंभीरता का अंदाजा हुआ। उसे तुरंत मनोचिकित्सक के पास रेफर किया गया और इलाज शुरू कर दिया गया है।

परिवार की लापरवाही या लत का गहराता असर?

किशोर के पिता पेशे से राजमिस्त्री हैं। उन्होंने बताया कि उनके तीन बेटों में यह सबसे बड़ा था और पिछले कुछ महीनों से मोबाइल पर ज्यादा समय बिताने लगा था। परिवार ने शुरुआत में इसे नजरअंदाज किया, लेकिन जब उसने अजीब व्यवहार करना शुरू किया तो उन्हें समझ आया कि मामला गंभीर है। जिला अस्पताल के मनोचिकित्सक ने स्पष्ट किया कि अत्यधिक मोबाइल गेमिंग बच्चों की मानसिक सेहत पर गहरा असर डाल सकती है। उन्होंने कहा कि आजकल अभिभावक बच्चों को शांत रखने के लिए मोबाइल थमा देते हैं, लेकिन यह आदत धीरे-धीरे खतरनाक लत में बदल जाती है।

डॉक्टरों की सलाह

पबजी और फ्री फायर जैसे हिंसात्मक गेम बच्चों की सोच और व्यवहार को प्रभावित करते हैं। ऐसे गेम वास्तविक और आभासी दुनिया की सीमाओं को धुंधला कर देते हैं, जिससे बच्चे भ्रमित हो जाते हैं और मानसिक समस्याएं पैदा होती हैं। डॉक्टरों ने सभी अभिभावकों से अपील की है कि वे बच्चों के मोबाइल उपयोग पर नजर रखें और उन्हें समय-समय पर बाहर खेलने, सामाजिक गतिविधियों और रचनात्मक कार्यों की ओर प्रेरित करें। यदि कोई बच्चा मोबाइल पर जरूरत से ज्यादा समय बिताता है या व्यवहार में बदलाव नजर आता है तो तुरंत चिकित्सकीय सलाह लें।

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