

धार्मिक तनाव और कट्टरता के दौर में उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले का दुलहीपुर गांव एकता और भाईचारे की मिसाल बनकर सामने आया है। यहां का एक हिंदू पटेल परिवार बीते पांच पीढ़ियों से मोहर्रम में ताजिया सजाता आ रहा है।
ताजिए की परंपरा निभा रहा हिंदू परिवार
Chandauli: जिले के दुलहीपुर गांव का एक हिंदू परिवार आज भी कौमी एकता, धार्मिक सौहार्द और इंसानियत की मिसाल बना हुआ है। जब देश के कई हिस्सों में मजहबी तनाव और कट्टरता की घटनाएं सुर्खियों में रहती हैं, ऐसे समय में यह परिवार मोहर्रम पर ताजिया सजाकर भाईचारे का अद्भुत संदेश दे रहा है। पटेल बस्ती में रहने वाला यह परिवार पिछले पांच पीढ़ियों से मोहर्रम के अवसर पर पूरी श्रद्धा और परंपरा के साथ ताजिया सजाता रहा है। दिलचस्प बात यह है कि यही परिवार नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा करता है और मोहर्रम में इमाम हुसैन की कुर्बानी को भी उतनी ही आस्था से याद करता है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, परिवार के वर्तमान सदस्य रतन कुमार पटेल बताते हैं कि यह परंपरा उनके पूर्वज शिवपाल पटेल से शुरू हुई थी। वर्षों पहले संतान की प्राप्ति के लिए उन्होंने दुलदुल (इमाम हुसैन के घोड़े) के सामने मन्नत मांगी थी, जो पूरी हुई। उसी साल उन्होंने मोहर्रम में ताजिया सजाना शुरू किया और तभी से यह परंपरा परिवार में चली आ रही है।
रतन पटेल बताते हैं कि उनके दादा रामधारी सिंह पटेल स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गोली मारने का आदेश जारी कर दिया था। लेकिन मोहर्रम के दौरान इमाम चौक पर ताजिया रखने की जिम्मेदारी से वह विचलित हो गए। तब वह गुपचुप तरीके से मुस्लिम दरोगा मोहम्मद जाफर के पास पहुंचे, जिन्होंने उन्हें ताजिए के पास छिपाकर अंग्रेजों से बचाया। तभी से यह ताजिया ‘एकता और मानवता का प्रतीक’ बन गया।
एक हिंदू परिवार की पांच पीढ़ियों से कायम है परंपरा
आज भी मोहर्रम के मौके पर पटेल परिवार इमामबाड़ा सजाता है। महिलाएं मोमबत्तियां और अगरबत्तियां जलाती हैं। मजलिस में मुस्लिम समुदाय के सैयद परिवार से जुड़े मौलाना तकरीर पढ़ते हैं। पहले सैयद सिब्ते मोहम्मद जाफरी मजलिस करते थे, अब उनके पोते राहिद जाफरी और जाफर मेहंदी यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं। परिवार की सदस्य कलावती देवी बताती हैं कि उन्हें हर साल मोहर्रम का बेसब्री से इंतजार रहता है। उनकी बेटियां और रिश्तेदार भी शामिल होकर मन्नतें मांगती हैं।
मजलिस के दौरान पूरा पटेल परिवार फर्श पर बैठता है, तकरीर सुनता है, मातम करता है और आने वालों को प्रसाद भी बांटता है। यहां न कोई भेदभाव है, न कोई धार्मिक दीवार। रतन पटेल कहते हैं, हमारी परंपरा सिर्फ एक रस्म नहीं, यह इंसानियत की आवाज है।
जब समाज में धर्म के नाम पर नफरत फैलाने की कोशिशें हो रही हैं, तब दुलहीपुर का यह परिवार यह दिखा रहा है कि आस्था और मोहब्बत किसी एक मजहब की मोहताज नहीं होती। यह ताजिया नहीं, भाईचारे और मानवता का प्रतीक बन गया है।
रतन कुमार पटेल ने कहा, यह परंपरा हमारे पूर्वजों की देन है, हम इसे पूरे सम्मान और आस्था से निभाते हैं। जब तक जीवन है, यह सिलसिला चलता रहेगा।