

आज गुरूवार को गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर गंगा नदी में स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं ने पूर्णिमा के एक दिन पूर्व ही स्नान घाटों पर पहुंच गए थे। रात में घाटों पर ढोल मजीरो की धुन में भक्ति गीत भी गए जिससे गंगा तट भक्ति रस में सराबोर हो गया।
डलमऊ घाट पर उमड़ा जनसैलाब
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, आज गुरूवार को गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर गंगा नदी में स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं ने पूर्णिमा के एक दिन पूर्व ही स्नान घाटों पर पहुंच गए थे। रात में घाटों पर ढोल मजीरो की धुन में भक्ति गीत भी गए जिससे गंगा तट भक्ति रस में सराबोर हो गया। श्रद्धालुओं ने सुबह करीब तीन बजे से ही स्नान करना प्रारंभ कर दिया था। सुबह पांच बजे से आठ बजे के बीच स्नान घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने लगी। स्नान घाट श्रद्धालुओं से भर गए लोग अन्य स्नान घाटों की तरफ जाने लगे। देखते ही देखते कस्बे के मुख्य मार्गों पर भारी भीड़ लगने लगी।
दूरदराज से आने वाले लोगों को जाम की समस्या से बचाने के लिए प्रशासन द्वारा कस्बे के मियां टोला, वीआईपी गेस्ट के पास अस्थाई वाहन स्टैंड की व्यवस्था की गई थी। जिससे दूरदराज से आए श्रद्धालुओं को जाम की समस्या से निजात मिली। श्रद्धालुओं को सुरक्षित गंगा नदी में स्नान कराने के लिए पुलिस प्रशासन की तरफ से चप्पे चप्पे पर नजर रखी गई थी। इस बार गुरु पूर्णिमा पर चोरी की घटनाएं नहीं घटित हो सकी। तीर्थ पुरोहितों की मानें तो इस पूर्णिमा पर लगभग 50 से 60 हजार श्रद्धालुओं ने गंगा नदी में स्नान किया था।
हम सब मनुष्यों के जीवन निर्माण में गुरुओं की अहम भूमिका होती है। ऐसे में माना जाता है कि जिन गुरुओं ने हमें गढ़ने में अपना योगदान दिया है, उनके प्रति हमें कृतज्ञता का भाव बनाए रखना चाहिए और उसे ज़ाहिर करने के दिन के तौर पर ही गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। हिन्दू परंपरा के मुताबिक आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार गुरु पूर्णिमा को महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म दिवस माना जाता है। उनके सम्मान में इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। शास्त्रों में यह भी कहा जाता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने चारों वेद की रचना की थी और इसी कारण से उनका नाम वेद व्यास पड़ा।
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