हिंदी
लक्ष्मीपुर क्षेत्र के 18 वर्षीय नेयामत जन्म से विकलांग हैं और पिछले चार साल से इलेक्ट्रिक ट्राईसाइकिल की तलाश में सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। गरीबी, बेबसी और सरकारी सिस्टम की उपेक्षा ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। जनप्रतिनिधियों की उदासीनता ने निराशा और गहरी कर दी है।
दिव्यांग नेयामत अली
Maharajganj: महराजगंज जिले के लक्ष्मीपुर क्षेत्र में रहने वाला 18 वर्षीय नेयामत अली पिछले चार वर्षों से एक इलेक्ट्रिक ट्राईसाइकिल के लिए सरकारी दफ्तरों और जनप्रतिनिधियों के चक्कर लगा रहा है। जन्म से ही दोनों पैरों और एक हाथ से विकलांग नेयामत सामान्य जिंदगी जीने का सपना तो देखता है, लेकिन सरकारी तंत्र की ढुलमुल कार्यशैली और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता ने उसकी राह को और कठिन बना दिया है।
डाइनामाइटन न्यूज़ संवददाता के अनुसार, नेयामत के पिता रियाजुद्दीन समरधीरा चौराहे पर रहते हैं और सिलाई का छोटा-सा काम करके परिवार का पालन-पोषण करते हैं। उनके कुल नौ बच्चे हैं, जिनमें छह लड़के और तीन लड़कियां शामिल हैं। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद रियाजुद्दीन ने अपने सबसे छोटे बेटे नेयामत की पढ़ाई कभी नहीं रुकने दी। वे रोज उसे साइकिल पर बैठाकर स्कूल ले जाते रहे, ताकि विकलांगता उसके सपनों की राह में बाधा न बने।
नेयामत 80 प्रतिशत विकलांग है और उसका प्रमाणपत्र भी बन चुका है। उसे विकलांग पेंशन तो मिलती है, लेकिन अन्य कोई सरकारी सहायता आज तक नहीं मिली। नेयामत बताता है कि वह हाईस्कूल अच्छे अंकों से पास कर चुका है और इस समय इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रहा है। उसका सपना है कि वह आगे बढ़े, पढ़-लिखकर खुद अपने पैरों पर खड़ा हो। लेकिन इलेक्ट्रिक ट्राईसाइकिल के बिना वह आज भी कहीं आने-जाने के लिए दूसरों पर निर्भर है।
Aligarh News: इलाज को जा रही महिला के लिए काल बनकर आया डंपर, पढ़ें आखिर क्या हुआ?
रियाजुद्दीन बताते हैं कि उन्होंने ब्लॉक से लेकर जिला मुख्यालय तक अधिकारियों से कई बार गुहार लगाई। हर जगह आवेदन दिया, जांच कराए जाने की आश्वासन भी मिला, लेकिन आज तक ट्राईसाइकिल मंजूर नहीं हुई। परिवार की माली हालत ऐसी नहीं कि वह खुद इलेक्ट्रिक ट्राईसाइकिल खरीद सके।
सबसे अफसोसजनक बात यह है कि क्षेत्र के जनप्रतिनिधि भी नेयामत की जिंदगी बदलने के लिए आगे नहीं आए। चुनावों के दौरान वोट मांगने वाले जनप्रतिनिधि कई बार मदद का भरोसा देकर चले गए, लेकिन चुनाव खत्म होते ही किसी ने दोबारा मुड़कर देखने की भी जरूरत नहीं समझी। यही उदासीनता परिवार के मन में गहरी निराशा छोड़ गई है। नेयामत के मुताबिक, “मैं पढ़ाई करना चाहता हूं, आगे बढ़ना चाहता हूं, लेकिन बिना इलेक्ट्रिक ट्राईसाइकिल के घर से निकलना भी मुश्किल है। उम्मीद है कि एक दिन मेरी समस्या किसी तक पहुंचेगी और मुझे भी सामान्य जिंदगी का अवसर मिलेगा।”