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मुलायम सिंह यादव को ‘धरतीपुत्र’ क्यों कहा गया? उनके बचपन के क्रांतिकारी स्वभाव, पहलवानी से राजनीति तक की यात्रा और समाज के कमजोर वर्गों के लिए किए गए कार्यों को जानिए इस विस्तृत रिपोर्ट में।
मुलायम सिंह यादव को मिला ‘धरतीपुत्र’ का नाम
Lucknow: आज देश के पूर्व रक्षा मंत्री, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और 'पद्म विभूषण' मुलायम सिंह यादव की जयंती हैं। मुलायम सिंह को जानने वाले लोग आज उन्हें अलग-अलग तरीकों से याद कर रहे हैं। अपनों के बीच ‘नेताजी’ के नाम से लोकप्रिय रहे मुलायम सिंह यादव को ‘धरतीपुत्र’ के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों उन्हें यह उपाधि मिली…
मुलायम सिंह यादव की इस उपाधि को समझने के लिए उनके राजनीतिक जीवन पर नज़र डालना ज़रूरी है। आज़ादी से पहले जन्मे मुलायम में बचपन से ही क्रांतिकारियों जैसा जज़्बा था। इसका उदाहरण यह है कि मात्र 14 वर्ष की उम्र में वे तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ निकाली गई रैली में शामिल हो गए थे। उस समय शायद उन्हें भी नहीं पता था कि यही स्वभाव आगे चलकर उन्हें राजनीति का चमकता सितारा बना देगा।

मुलायम के पिता चाहते थे कि उनका बेटा पहलवानी करे, लेकिन किस्मत ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था। वर्ष 1962 में जब मुलायम सिंह कुश्ती प्रतियोगिता में हिस्सा लेने पहुंचे तो उनकी कुश्ती देखकर चौधरी नत्थू सिंह यादव बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने मुलायम को अपने साथ रखा, उनकी मुलाकात राम मनोहर लोहिया से करवाई और अपनी राजनीतिक विरासत यूपी की जसवंतनगर सीट उन्हें ‘तोहफे’ में दे दी।
मुलायम सिंह यादव
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— डाइनामाइट न्यूज़ हिंदी (@DNHindi) November 22, 2025
नत्थू सिंह प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े थे। उनके कहने पर मुलायम सिंह ने वर्ष 1967 में जसवंतनगर से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद वे इसी सीट से कुल सात बार विधायक बने।
मुलायम सिंह यादव
राजनीति में आने के बाद, मुलायम सिंह यादव ने समाज में मौजूद कई बुराइयों को दूर करने की कोशिश की। चाहे छुआछूत हो या जाति प्रथा- उन्होंने हमेशा इसका खुलकर विरोध किया। कहा जाता है कि अपने इसी सामाजिक दृष्टिकोण के चलते, उन्होंने छोटे भाई की सैफई में हुई शादी में वाल्मीकि और दलित समाज के लोगों को विशेष रूप से आमंत्रित किया और घर पर दावत दी।
उन्होंने पिछड़े और अनुसूचित जाति के लोगों, मजदूर वर्ग और सामाजिक रूप से कमजोर तबकों के हक में लगातार आवाज उठाई। इन्हीं प्रयासों ने उन्हें जनता से गहरा समर्थन दिलाया और यही वजह है कि वे अपने गुरु से मिली सीट पर 1967, 1974 और 1977 के मध्यावधि चुनाव में लगातार विजयी रहे। समाज के कमजोर वर्गों की आवाज बनने और ज़मीन से जुड़े नेता की छवि के कारण ही लोग उन्हें प्यार से ‘धरतीपुत्र’ कहने लगे।