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ग्रेटर नोएडा के बिसाहड़ा गांव में वर्ष 2015 में हुए चर्चित अखलाक हत्याकांड मामले में यूपी सरकार ने मुकदमा वापस लेने की अर्जी दाखिल कर दी है। इस मामले में 12 दिसंबर को अदालत में सुनवाई होगी। सरकार ने सामाजिक सद्भाव का हवाला दिया है, जबकि अखलाक पक्ष के वकील का कहना है कि यह गंभीर मॉब लिंचिंग का मामला है और केस वापस नहीं होना चाहिए। इस केस की पूरी कानूनी पृष्ठभूमि, गवाहों के बयान, फोरेंसिक रिपोर्ट और मौजूदा विवाद को विस्तार से पढ़िए।
अखलाक
Greater Noida: ग्रेटर नोएडा के दादरी स्थित बिसाहड़ा गांव में 10 साल पहले हुए अखलाक हत्याकांड मामले में यूपी सरकार ने मुकदमा वापस लेने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए शासन के आदेश के आधार पर जिला शासकीय वकील (फौजदारी) ने ग्रेटर नोएडा की फास्ट ट्रैक कोर्ट-1 में आवेदन दाखिल कर दिया है। अदालत इस अर्जी पर 12 दिसंबर को सुनवाई करेगी। सरकार ने तर्क दिया है कि “सामाजिक सद्भाव” की बहाली के लिए यह कदम उठाया गया है, हालांकि पीड़ित परिवार के वकील का कहना है कि यह गंभीर मॉब लिंचिंग का मामला है और केस वापस होना संभव नहीं है।
28 सितंबर 2015 की रात बिसाहड़ा गांव में गोमांस सेवन की अफवाह फैलने के बाद भीड़ ने अखलाक के घर पर धावा बोल दिया था। भीड़ ने लाठी-डंडों से हमला कर 50 वर्षीय मोहम्मद अखलाक की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी और उसके बेटे दानिश को गंभीर रूप से घायल कर दिया था। इस घटना ने देश भर में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा दिया था और मामला राष्ट्रीय सुर्खियों में आया था।
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अखलाक की पत्नी इकरामन की शिकायत पर शुरुआत में 10 लोगों को नामजद किया गया था। बाद में जांच के दौरान गवाहों इकरामन, असगरी, शाहिस्ता और दानिश के बयान बदलते गए और कुल 18 आरोपियों के नाम सामने आए। पुलिस ने धारा 147, 148, 149, 307, 302, 323, 504, 506, 427, 458 और 7 क्रिमिनल लॉ एक्ट के तहत मामला दर्ज किया था। सभी 18 आरोपी वर्तमान में जमानत पर बाहर हैं और केस ट्रायल में है।
घटनास्थल से मिले मांस के नमूने को मथुरा की फोरेंसिक लैब भेजा गया था। 30 मार्च 2017 को आई रिपोर्ट में मांस को “गौवंशीय” बताया गया। रिपोर्ट के बाद गांव में कई दिनों तक तनाव रहा और पंचायतें हुई, जिसके बाद स्थिति सामान्य हुई।
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सरकार द्वारा दाखिल प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि गवाहों के बयानों में आरोपियों की संख्या में बार-बार बदलाव हुआ है और किसी भी आरोपी के पास से न कोई आग्नेयास्त्र और न ही कोई धारदार हथियार बरामद हुआ। पत्र में कहा गया कि घटना अचानक की थी और इससे पहले दोनों पक्षों के बीच कोई रंजिश नहीं थी, इसलिए “सामाजिक सद्भाव” की बहाली के लिए मुकदमा वापस लेने की अनुमति दी जाए।
अखलाक के परिवार के वकील यूसुफ़ सैफ़ी ने कहा कि यह “सामाजिक सद्भाव” का मामला नहीं, बल्कि सीधा-सीधा मॉब लिंचिंग और हत्या का केस है। उन्होंने कहा कि गवाहों के स्पष्ट बयान हैं, जांच अधिकारी ने चार्जशीट दाखिल की है और सबूत साफ तौर पर मौजूद हैं। सैफी ने कहा कि धारा 321 के तहत सरकार अनुरोध तो कर सकती है, लेकिन निर्णय अदालत का होगा और ऐसे गंभीर मामलों में केस वापसी संभव नहीं है।
अब अदालत 12 दिसंबर को इस अर्जी पर सुनवाई करेगी। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कोर्ट सरकार की दलीलों को स्वीकार करता है या फिर ट्रायल जारी रखने का आदेश देता है। यह फैसला न सिर्फ बिसाहड़ा गांव बल्कि पूरे देश में मॉब लिंचिंग के मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल साबित हो सकता है।