The MTA Speaks: हंगामा, टकराव और तीखी बहस, देखे मानसून सत्र पर ये खास विश्लेषण

इस बार का मानसून सत्र पहले ही दिन से हंगामे, टकराव और तीखी राजनीतिक बहस का गवाह रहा। देखिए मानसून सत्र को लेकर वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने खास विश्लेषण किया।

Post Published By: Deepika Tiwari
Updated : 21 August 2025, 3:23 PM IST
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New Delhi:  संसद का मानसून सत्र अब अपने अंतिम पड़ाव पर है। 32 दिनों तक चला यह सत्र कल यानि गुरुवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो जाएगा। इस बार का मानसून सत्र पहले ही दिन से हंगामे, टकराव और तीखी राजनीतिक बहस का गवाह रहा। महंगाई, बेरोजगारी, मणिपुर मुद्दा, विपक्षी दलों के नेताओं की गिरफ्तारी और एजेंसियों के दुरुपयोग जैसे विषयों पर विपक्ष लगातार हमलावर रहा। वहीं सरकार ने अपनी नीतियों और फैसलों को लेकर मजबूती से बचाव किया। लेकिन इस सत्र का असली राजनीतिक तापमान सत्र समाप्त होने से ठीक एक दिन पहले तब चरम पर पहुँच गया, जब गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में एक साथ तीन अहम विधेयक पेश कर दिए।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़वाल  आकाश ने मानसूत्र सत्र को लेकर अपने चर्चित शो The MTA Speaks में खास विश्लेषण किया ।

इन तीनों विधेयकों ने न केवल सदन की कार्यवाही को हिलाकर रख दिया, बल्कि पूरे देश की राजनीति को एक नई बहस की ओर मोड़ दिया। गृह मंत्री शाह ने जो तीन बिल पेश किए, उनमें से सबसे ज़्यादा चर्चा संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 की हो रही है। यह ऐसा प्रस्तावित संशोधन है, जो यदि अस्तित्व में आया तो भारत की संसदीय राजनीति का चेहरा बदल सकता है।
गृह मंत्री ने लोकसभा में पेश करते हुए कहा कि इस संशोधन का उद्देश्य शासन तंत्र को ज़्यादा जवाबदेह और पारदर्शी बनाना है। उनका तर्क था कि लोकतंत्र की आत्मा तभी सुरक्षित रहेगी जब संवैधानिक पदों पर बैठे लोग बेदाग़ हों। सरकार का कहना है कि देश की जनता की नज़र में यदि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री गंभीर अपराध के आरोप में जेल में बैठा है और फिर भी कुर्सी पर बना हुआ है, तो यह न केवल संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन है बल्कि लोकतंत्र की साख पर भी सवाल उठाता है।लेकिन सरकार के इस तर्क पर विपक्ष भड़क उठा। विपक्षी दलों का आरोप है कि यह संशोधन संविधान के मूल ढांचे पर हमला है और इसका इस्तेमाल विपक्ष को डराने-धमकाने और सत्ता से बेदख़ल करने के लिए किया जाएगा।

30 दिनों तक हिरासत..

अब ज़रा विस्तार से समझते हैं कि 130वें संविधान संशोधन विधेयक में आखिर लिखा क्या है। इस प्रस्तावित विधेयक के अनुसार, यदि प्रधानमंत्री या कोई केंद्रीय मंत्री किसी गंभीर अपराध के आरोप में—जिसकी सज़ा पाँच साल या उससे ज़्यादा हो सकती है—गिरफ्तार होता है और लगातार 30 दिनों तक हिरासत में रहता है, तो राष्ट्रपति को यह अधिकार होगा कि वे उसे पद से हटा दें। राष्ट्रपति यह निर्णय प्रधानमंत्री की सलाह पर लेंगे। अगर खुद प्रधानमंत्री ही ऐसे आरोपों में जेल में हैं और 31वें दिन तक इस्तीफा नहीं देते, तो उनका पद स्वतः समाप्त हो जाएगा।
राज्यों के स्तर पर भी यही प्रावधान लागू होगा। यदि कोई मुख्यमंत्री या मंत्री जेल में है और लगातार 30 दिनों तक हिरासत में बना रहता है, तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर उसे हटा देंगे। अगर मुख्यमंत्री खुद जेल में है और 31वें दिन तक इस्तीफा नहीं देता, तो उसका पद भी स्वतः समाप्त हो जाएगा। यही प्रावधान दिल्ली की राज्य सरकार पर भी लागू होंगे।

ताकत के सहारे संवैधानिक ढांचे से खिलवाड़...

इस बिल में यह भी प्रावधान है कि हिरासत से छूटने के बाद राष्ट्रपति या राज्यपाल पुनः नियुक्ति कर सकते हैं। यानी व्यक्ति पर कानूनी रूप से दोष सिद्ध होने से पहले उसे हमेशा के लिए राजनीति से बाहर नहीं किया जाएगा।सरकार का कहना है कि यह संशोधन संविधान की मूल भावना को मज़बूत करेगा। इससे यह संदेश जाएगा कि कोई भी व्यक्ति कानून और नैतिकता से ऊपर नहीं है। प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री किसी को यह अधिकार नहीं है कि गंभीर आपराधिक आरोपों के बावजूद पद पर बना रहे और राज्य तंत्र को नियंत्रित करता रहे।लेकिन विपक्ष इसे लोकतंत्र पर सीधा हमला बता रहा है। विपक्षी दलों का आरोप है कि केंद्र सरकार अपनी बहुमत की ताकत के सहारे संवैधानिक ढांचे से खिलवाड़ कर रही है।

तीनों बिलों को संयुक्त संसदीय समिति...

लोकसभा में बिल पेश होने के साथ ही विपक्षी सांसदों ने जबरदस्त हंगामा किया। कई सांसद अपनी सीटों से खड़े होकर नारेबाजी करने लगे। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने तो हद कर दी। उन्होंने बिल की प्रतियाँ फाड़ दीं और टुकड़े-टुकड़े करके गृह मंत्री अमित शाह की ओर फेंक दिए। कागज़ के ये टुकड़े सदन की कार्यवाही में बिखर गए। स्पीकर को बीच-बीच में सांसदों से शांति बनाए रखने की अपील करनी पड़ी।स्थिति इतनी बिगड़ गई कि लोकसभा की कार्यवाही कुछ देर के लिए स्थगित करनी पड़ी। हंगामे के बीच अमित शाह ने कहा कि सरकार इस बिल पर एकतरफ़ा निर्णय नहीं थोपना चाहती। इसलिए तीनों बिलों को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजा जा रहा है ताकि विस्तृत विचार-विमर्श के बाद ही कोई अंतिम फैसला लिया जाए।

संशोधन संविधान के मूल ढांचे को ही नष्ट...

अब ज़रा देखते हैं विपक्ष की दलीलें। कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद और प्रख्यात वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इस बिल को "विचित्र चक्र" बताया। उनका कहना है कि गिरफ्तारी का मतलब अपराध सिद्ध होना नहीं होता। कई बार राजनीतिक कारणों से भी गिरफ्तारी हो सकती है। ऐसे में बिना मुकदमे के नतीजे का इंतज़ार किए, केवल हिरासत में रहने के आधार पर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को पद से हटाना लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ है।कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि यह संशोधन संविधान के मूल ढांचे को ही नष्ट कर देगा। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि यह कानून बन गया तो केंद्र सरकार विपक्षी राज्यों की सरकारों को गिराने के लिए इसका हथियार की तरह इस्तेमाल करेगी।

केंद्रीय एजेंसियों को विपक्षी सरकारों को अस्थिर...

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इसे "पुलिस राज्य" की दिशा में उठाया गया कदम बताया। उन्होंने कहा कि इस बिल से शक्तियों का पृथक्करण (Separation of Powers) ध्वस्त हो जाएगा। अब राजनीतिक विरोधियों को जेल भेजना और फिर उन्हें पद से हटाना बेहद आसान हो जाएगा। तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने भी यही आरोप लगाया। उनका कहना है कि इस बिल से CBI और ED जैसी केंद्रीय एजेंसियों को विपक्षी सरकारों को अस्थिर करने का अधिकार मिल जाएगा। यह संघीय ढांचे पर सीधा प्रहार है।

सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के लिए विशेष छूट

यानी साफ है कि विपक्ष का एकमत आरोप यही है कि यह बिल राजनीतिक बदले की भावना से लाया गया है। अब सवाल उठता है कि इस बिल के समर्थक कौन हैं और उनका तर्क क्या है। भाजपा और एनडीए के सांसदों का कहना है कि यह बिल लोकतंत्र को मज़बूत करेगा। उनका कहना है कि जब एक सामान्य नागरिक पर आपराधिक मुकदमा चलता है तो उसे जेल से बाहर आकर अपनी नौकरी जारी रखने की इजाज़त नहीं होती। फिर देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के लिए विशेष छूट क्यों होनी चाहिए?

देश में कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं...

समर्थकों का कहना है कि यह संशोधन जनता का भरोसा मज़बूत करेगा। इससे यह संदेश जाएगा कि देश में कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है। यह लोकतंत्र की जवाबदेही को बढ़ाएगा।
सत्र समाप्त होने से ठीक पहले इस बिल का आना अपने आप में राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। सरकार इसे अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। वहीं विपक्ष इसे सरकार का "गुप्त हथियार" बता रहा है।

क्या इससे सरकारें मज़बूत होंगी...

हकीकत यह है कि यदि यह संशोधन लागू हो गया तो भारतीय राजनीति की तस्वीर बदल जाएगी। अब तक कई मुख्यमंत्री और मंत्री जेल में रहते हुए भी पद पर बने रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि केंद्र ने उन्हीं घटनाओं को ध्यान में रखकर यह बिल लाया है। जैसे—दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और जेल से सरकार चलाने का मामला। यही कारण है कि विपक्ष इसे सीधे-सीधे विपक्षी राजनीति पर हमला मान रहा है।लेकिन इस बिल का असर सिर्फ वर्तमान राजनीति तक सीमित नहीं रहेगा। यह सवाल भी उठेगा कि क्या यह संशोधन लोकतंत्र को मज़बूत करेगा या अस्थिरता पैदा करेगा। क्या इससे सरकारें मज़बूत होंगी या बार-बार पद रिक्त होने की स्थिति से राजनीतिक अस्थिरता बढ़ेगी?

पारदर्शिता और नैतिकता को मज़बूत करना

देश की जनता और संविधान विशेषज्ञ इस पर गहन मंथन कर रहे हैं। क्योंकि अगर यह संशोधन अस्तित्व में आता है तो यह सिर्फ एक कानून नहीं होगा बल्कि भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली का भविष्य तय करेगा।गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में कहा कि सरकार का मकसद केवल पारदर्शिता और नैतिकता को मज़बूत करना है। उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वे इस बिल का विरोध सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि उनकी पार्टी के नेता इस प्रावधान की चपेट में आ सकते हैं।

सशक्त करेगा या सत्ता के दुरुपयोग का साधन...

संक्षेप में कहें तो लोकसभा में आज जो कुछ हुआ, उसने साबित कर दिया कि भारतीय राजनीति में आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर बड़ी बहस होगी। तीन अहम विधेयकों ने मानसून सत्र को विदाई के वक्त ऐतिहासिक बना दिया है। अब गेंद संयुक्त संसदीय समिति के पाले में है। वही तय करेगी कि इन विधेयकों का भविष्य क्या होगा। लेकिन एक बात साफ है कि संविधान (130वां संशोधन) विधेयक ने देश की राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है। यह विधेयक लोकतंत्र को सशक्त करेगा या सत्ता के दुरुपयोग का साधन बनेगा, यह आने वाला समय ही बताएगा।

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