

यह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि एक खौफनाक उदाहरण है उस लापरवाही का, जो अक्सर सरकारी तंत्र की ढिलाई की भेंट चढ़ जाता है। दनकौर के अच्छेजा बुजुर्ग गांव में 7 वर्षीय तैमूर के साथ जो कुछ हुआ, वह किसी भी इंसान को झकझोर सकता है। 22 मई को एक आम दोपहर में जब तैमूर अपने पड़ोसी की छत पर खेल रहा था, तभी उसके शरीर से 11,000 वोल्ट का करंट गुजरा और हमेशा के लिए उसके दोनों हाथ छिन गए।
नोएडा में खौफनाक हादसा (सोर्स इंटरनेट)
Noida (Uttar Pradesh): यह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि एक खौफनाक उदाहरण है उस लापरवाही का, जो अक्सर सरकारी तंत्र की ढिलाई की भेंट चढ़ जाता है। दनकौर के अच्छेजा बुजुर्ग गांव में 7 वर्षीय तैमूर के साथ जो कुछ हुआ, वह किसी भी इंसान को झकझोर सकता है। 22 मई को एक आम दोपहर में जब तैमूर अपने पड़ोसी की छत पर खेल रहा था, तभी उसके शरीर से 11,000 वोल्ट का करंट गुजरा और हमेशा के लिए उसके दोनों हाथ छिन गए।
परिवार के मुताबिक, घर की छत से बेहद नजदीक से गुजरती हाई-वोल्टेज लाइन की शिकायत कई बार उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के अधिकारियों को दी गई थी। लेकिन अफसोस, किसी ने ध्यान नहीं दिया। नतीजा, एक मासूम की जिंदगी अंधकार में डूब गई।
पीड़ित पिता नौशाद अली की शिकायत पर अब UPPCL के चार अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी है, जिनमें एक एसडीओ और एक जूनियर इंजीनियर भी शामिल हैं। बच्चे को तुरंत दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया, जहां संक्रमण रोकने के लिए डॉक्टरों ने कोहनी के ऊपर से दोनों हाथ काटने का कठिन फैसला लिया।
इस हादसे ने बिजली विभाग की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। आखिर क्यों पहले से दी गई चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया गया? क्या एक बच्चे का जीवन इतनी कम कीमत रखता है?
भारतीय कानून के तहत, अगर किसी की जान या अंग सरकारी लापरवाही (जैसे बिजली तार की सुरक्षा न होना) से जाती है, तो संबंधित विभाग के जिम्मेदार अधिकारी पर IPC की धारा 338 (गंभीर चोट पहुँचाना) या 304A (लापरवाही से मृत्यु) के तहत केस दर्ज हो सकता है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के दिशानिर्देशों के अनुसार, ऐसे मामलों में पीड़ित या उसके परिवार को 5 लाख रुपये तक का मुआवजा मिल सकता है। राज्य विद्युत विभाग या डिस्कॉम की पॉलिसी के अनुसार, मुआवजे की राशि तय होती है जो अक्सर 1 से 10 लाख रुपये तक हो सकती है। राजस्व विभाग या जिला प्रशासन भी आपदा राहत कोष से सहायता राशि जारी कर सकता है (आमतौर पर 4 लाख रुपये तक)। बच्चों के मामलों में, बाल कल्याण समिति (CWC) की ओर से विशेष पुनर्वास योजनाएं भी चलाई जाती हैं।
सूत्रों के अनुसार, यूपीपीसीएल के खिलाफ विभागीय जांच भी अलग से शुरू कर दी गई है, और संभव है कि लापरवाही साबित होने पर दोषियों की नौकरी तक चली जाए। फिलहाल बच्चे की हालत स्थिर बताई जा रही है लेकिन उसका भविष्य सरकार की संवेदनशीलता पर निर्भर करता है।