इंदौर की दिव्यांग शिक्षिका की राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु की मांग: सिस्टम पर उठे सवाल, जानें पूरा मामला

इंदौर की दिव्यांग शिक्षिका कुमारी चंद्रकांता जेठानी ने राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु की मांग की है। वर्षों से व्हीलचेयर पर बैठकर पढ़ा रही चंद्रकांता की हालत अब इतनी गंभीर हो गई है कि शारीरिक दर्द सहन नहीं हो रहा। अपनी संपत्ति और शरीर समाज को दान कर चुकीं चंद्रकांता को न सरकार से मदद मिली, न समाज से सहारा जिसके चलते अब उन्होंने जीवन से मुक्ति की गुहार लगाई है।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 28 July 2025, 2:33 PM IST
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Indore News: मध्य प्रदेश के इंदौर से एक दिल को छू जाने वाली खबर ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है। दिव्यांग शिक्षिका चंद्रकांता जेठानी, जो वर्षों से सरकारी स्कूल में पढ़ा रही हैं, ने राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु की मांग की है। यह मामला न सिर्फ उनकी निजी पीड़ा को दर्शाता है, बल्कि यह हमारे सिस्टम की असंवेदनशीलता का भी आईना है।

एक समर्पित जीवन

कुमारी चंद्रकांता जेठानी इंदौर के एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका हैं। व्हीलचेयर पर बैठकर सालों से वे बच्चों को पढ़ा रही हैं। लेकिन अब उनकी शारीरिक स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि 7-8 घंटे लगातार बैठकर पढ़ाना असहनीय हो गया है। बावजूद इसके उन्होंने कभी हार नहीं मानी। शिक्षा और समाज सेवा के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी निजी संपत्ति स्कूल के बच्चों के नाम कर दी, साथ ही एमजीएम मेडिकल कॉलेज को अंगदान और देहदान की पेशकश भी कर चुकी हैं।

सिस्टम की चुप्पी और असहायता

इतना कुछ करने के बावजूद चंद्रकांता को न तो प्रशासन से कोई विशेष सहयोग मिला, न ही उन्हें कोई सामाजिक या आर्थिक राहत। उन्होंने बताया कि एक बार अस्पताल में उन्हें गलत दवा दे दी गई थी, जिससे उनकी सेहत और बिगड़ गई। बाद में जब उन्हें एक आश्रम में भेजा गया, तो वहां भी उन्हें वो मान-सम्मान और सुविधाएं नहीं मिल सकीं जिसकी वे हकदार थीं। इस उपेक्षा और लगातार बढ़ते शारीरिक दर्द ने उन्हें इस हद तक तोड़ दिया कि अब उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से इच्छा मृत्यु की मांग कर डाली।

"अब जीना बोझ लगने लगा है"

चंद्रकांता ने कहा कि मैं अब रोज़ दर्द में जी रही हूं। व्हीलचेयर पर बैठकर पढ़ाना मेरी सेवा भावना का हिस्सा है, लेकिन अब शरीर जवाब दे रहा है। मुझे कोई सहारा नहीं है, इसलिए अब मरने की इजाज़त मांग रही हूं। उनकी यह अपील न सिर्फ उनकी शारीरिक पीड़ा का प्रतीक है, बल्कि यह समाज और प्रशासन की संवेदनहीनता पर करारा तमाचा भी है।

समाज और सरकार की जिम्मेदारी

चंद्रकांता जैसी महिलाएं हमारे समाज की असली प्रेरणा होती हैं। उन्होंने निस्वार्थ भाव से अपना जीवन दूसरों के लिए जिया, लेकिन जब उन्हें सहारे की ज़रूरत पड़ी, तो पूरा सिस्टम चुप रहा। सरकार को चाहिए कि ऐसे मामलों में न सिर्फ तुरंत मदद करे, बल्कि विशेष नीति बनाकर दिव्यांग कर्मचारियों के लिए सुविधाएं सुनिश्चित करे- चाहे वो स्वास्थ्य से जुड़ी हों, आवासीय या मानसिक सहारा।

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