गोरखपुर विश्वविद्यालय में क्यों बरपा हंगामा? शिक्षकों ने खोला मोर्चा

गोरखपुर विश्वविद्यालय की वरिष्ठता सूची पर विवाद खड़ा हो गया है। प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर समेत कई शिक्षक असंतुष्ट हैं। एससी-एसटी शिक्षकों ने बैठक कर जमकर विरोध जताया है। कई शिक्षकों ने वरिष्ठता सूची पर सवाल उठाते हुए इसके खिलाफ मोर्चा खोलने की योजना बना ली है।

Post Published By: Rohit Goyal
Updated : 16 July 2025, 3:09 PM IST
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Gorakhpur: गोरखपुर के दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय में इन दिनों हंगामा मचा हुआ है, और वजह है शिक्षकों की वरिष्ठता सूची का ना बनना! जी हाँ, तीन साल से यह सूची धूल फांक रही है, और अब तो हालात ऐसे हैं कि प्रोफेसरों के बीच "मैं बड़ा, तू छोटा" का खेल शुरू हो गया है। कोई विभागाध्यक्ष की कुर्सी पर सवाल उठा रहा है, तो कोई राजभवन तक शिकायत लेकर दौड़ पड़ा है।

सूची का सस्पेंस: 2001 से अटकी कहानी

विश्वविद्यालय में आखिरी बार वरिष्ठता सूची साल 2001 में बनी थी। तब से लेकर अब तक पानी में बहुत सारा पानी बह चुका है। 16 प्रोफेसर रिटायर हो गए, 10 ने विश्वविद्यालय छोड़कर दूसरी जगह नई पारी शुरू कर दी, और कई शिक्षकों की पदोन्नति हो गई। डिग्री कॉलेजों से आए नए शिक्षकों का नाम तक सूची में नहीं जुड़ा। लेकिन सूची? वो तो बस कागजों में ही घूम रही है! नतीजा? पांच विभागों में विभागाध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर घमासान मचा हुआ है।

प्रोफेसर बनाम प्रोफेसर

गणित विभाग: प्रो. उमा श्रीवास्तव ने प्रो. विजय कुमार श्रीवास्तव को विभागाध्यक्ष बनाए जाने पर तीखा पत्र विश्वविद्यालय प्रशासन को लिख डाला। उनका सवाल- "वरिष्ठता सूची कहाँ है, भाई?"

कॉमर्स विभाग: यहाँ तो लंबे समय से जंग छिड़ी है। प्रो. आरपी सिंह ने प्रो. श्रीवर्द्धन पाठक की वरिष्ठता पर सवाल उठाते हुए कार्य परिषद के सदस्यों को पत्र लिखकर सूची की मांग की है।

समाजशास्त्र विभाग: प्रो. सुभि धूसिया को विभागाध्यक्ष की कुर्सी से हटाकर प्रो. अनुराग द्विवेदी को बिठा दिया गया। नाराज प्रो. धूसिया ने सीधे राजभवन को पत्र लिखकर जांच की मांग कर दी।

और भी हैं सवाल: प्रो. सुधा यादव ने भी वरिष्ठता सूची की गुत्थी को लेकर प्रशासन को कटघरे में खड़ा किया है।

कौन गया, कौन रुका?

सूची में उन शिक्षकों के नाम भी शामिल हैं, जो अब विश्वविद्यालय का हिस्सा ही नहीं हैं। कुछ ने दूसरी यूनिवर्सिटीज में नई पारी शुरू की, तो कुछ रिटायर होकर घर बैठ गए।

यहाँ देखिए लिस्ट:

दूसरे संस्थानों में चले गए:
श्वेता शेखर (वनस्पति विज्ञान) - इलाहाबाद विश्वविद्यालय
डॉ. स्वर्णिमा सिंह (भूगोल) - दिल्ली विश्वविद्यालय
शुभाकर डे (संगीत कला) - बीएचयू, वाराणसी
डॉ. कपिंदर (प्राणि विज्ञान) - इलाहाबाद विश्वविद्यालय
डॉ. श्रद्धा शुक्ला (ललित कला) - लखनऊ विश्वविद्यालय
डॉ. शायका तंजीर (अंग्रेजी) - दिल्ली विश्वविद्यालय
डॉ. रुचिका सिंह (भूगोल) - इलाहाबाद विश्वविद्यालय
रिटायर हो गए:
प्रो. सुधाकर लाल श्रीवास्तव (इतिहास)
प्रो. दमयंती तिवारी (हिंदी)
प्रो. अवधेश तिवारी (कॉमर्स)
प्रो. विनय पांडेय (कॉमर्स)
प्रो. आनंद सेन गुप्ता (कॉमर्स)
प्रो. ओपी पांडेय (रसायन विज्ञान)
प्रो. नरेश भोक्ता (शिक्षा शास्त्र)
प्रो. लल्लन यादव (भौतिकी)
प्रो. शोभा गौंड़ (शिक्षा शास्त्र)
डॉ. सरिता पांडेय (शिक्षा शास्त्र)
प्रो. प्रदीप यादव (रक्षा अध्ययन)
प्रो. चंद्रभूषण गुप्ता (इतिहास)
प्रो. मुकुल शरण त्रिपाठी (प्राचीन इतिहास)

प्रशासन का वादा: "सूची आएगी, बस थोड़ा इंतजार!"

विश्वविद्यालय प्रशासन ने हंगामे को देखते हुए कमेटी बनाने का ऐलान किया। वादा किया गया कि एक महीने में नई सूची आएगी और हर साल जून में सूची अपडेट होगी। आपत्तियों का निपटारा कर अंतिम सूची जारी होगी। लेकिन, महीनों बीत गए, और सूची का अता-पता नहीं! प्रोफेसरों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है, और कार्य परिषद में भी यह मामला गूंज चुका है।

क्या है असली मसला?

वरिष्ठता सूची ना सिर्फ़ विभागाध्यक्ष की नियुक्ति को प्रभावित करती है, बल्कि शिक्षकों की पदोन्नति, सम्मान और जिम्मेदारियों पर भी असर डालती है। बिना अपडेटेड सूची के विश्वविद्यालय में भ्रम और विवाद का माहौल बना हुआ है। अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस गुत्थी को सुलझा पाएगा, या यह ड्रामा और लंबा खिंचेगा?

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