

न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2021 के आदेश और सुप्रीम कोर्ट के ही 5 मई 2022 के फैसले को भी रद्द कर दिया। कोर्ट ने मामले को फिर से सुनवाई के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय को भेजा और निर्देश दिया कि सभी पक्षों विष्णु वर्धन, टी. सुधाकर और अन्य की बात सुनी जाए।
सुप्रीम कोर्ट और नोएडा
Noida News: सुप्रीम कोर्ट ने हैदराबाद के व्यवसायी रेड्डी वीरन्ना को नोएडा प्राधिकरण द्वारा दिए गए 295 करोड़ रुपये के मुआवजे को अवैध और धोखाधड़ीपूर्ण तरीके से प्राप्त करार देते हुए रद्द कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यह मुआवजा तथ्यों को छिपाकर, सह-मालिकों को गुमराह करके और न्यायालय को धोखा देकर प्राप्त किया गया था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2021 के आदेश और सुप्रीम कोर्ट के ही 5 मई 2022 के फैसले को भी रद्द कर दिया। कोर्ट ने मामले को फिर से सुनवाई के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय को भेजा और निर्देश दिया कि सभी पक्षों विष्णु वर्धन, टी. सुधाकर और अन्य की बात सुनी जाए।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
अदालत ने अपने आदेश में कहा, "रेड्डी वीरन्ना बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य में उच्च न्यायालय का 28 अक्टूबर 2021 का आदेश रद्द किया जाता है क्योंकि यह धोखाधड़ी से प्रभावित था। इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट का 5 मई 2022 का निर्णय भी रद्द किया जाता है। हम अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए इन आदेशों को निरस्त करते हैं।"
क्या है पूरा मामला?
यह विवाद 1997 से चला आ रहा है, जब रेड्डी वीरन्ना, विष्णु वर्धन और टी. सुधाकर ने नोएडा सेक्टर-18 के छलेरा बांगर गांव में 5 बीघा से अधिक भूमि लगभग 1 करोड़ रुपये में खरीदी थी। 2005 में नोएडा प्राधिकरण ने इस जमीन का कुछ हिस्सा अधिगृहित कर लिया और बाद में यह जमीन डीएलएफ को 173 करोड़ रुपये में पट्टे पर दे दी गई।
स्वामित्व को लेकर झूठे दावे की शुरुआत
शुरुआत में तीनों पार्टनर अधिग्रहण के खिलाफ साथ थे और 2000 में निषेधाज्ञा भी प्राप्त की। लेकिन बाद में रेड्डी ने खुद को भूमि का एकमात्र मालिक बताना शुरू कर दिया। 2006 में रेड्डी ने विष्णु के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर एक समझौता डिक्री प्राप्त की। इसमें उन्होंने एक वेंकटरमण नामक व्यक्ति के हलफनामे का हवाला दिया जिसने खुद को विष्णु का वकील बताया। हालांकि, विष्णु ने तर्क दिया कि उस व्यक्ति को दिया गया पावर ऑफ अटॉर्नी पहले ही रद्द किया जा चुका था और उस आदेश के बारे में उन्हें कोई सूचना नहीं दी गई थी।
कब क्या हुआ?
2019 में रेड्डी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिट याचिका दाखिल की और मुआवजे को बढ़ाने या भूमि लौटाने की मांग की। उन्होंने विष्णु और सुधाकर को पक्ष नहीं बनाया, जो पहले तक सह-स्वामी थे। 28 अक्टूबर 2021 को, हाईकोर्ट ने रेड्डी की याचिका स्वीकार कर ली और राज्य को सर्किल रेट के हिसाब से 1.10 लाख रुपये प्रति वर्ग मीटर मुआवजा देने का निर्देश दिया 50% विकास शुल्क कटौती के बाद।
360 करोड़ तक पहुंचा मुआवजा, फिर घटाकर 295 करोड़
रेड्डी और नोएडा प्राधिकरण दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। रेड्डी ने पूर्ण मुआवजा मांगा (बिना कटौती), जबकि नोएडा प्राधिकरण ने बढ़े हुए रेट का विरोध किया। 5 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने रेड्डी की अपील आंशिक रूप से स्वीकार कर ली और उन्हें बिना कटौती के 1.10 लाख रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से पूरा मुआवजा देने का निर्देश दिया। यह राशि लगभग 360 करोड़ रुपये होती थी, लेकिन बाद में बातचीत के बाद 295 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह मान लिया कि पूरा मुआवजा धोखाधड़ी पर आधारित था। कोर्ट ने पहले दिए गए सभी आदेश रद्द करते हुए मामला दोबारा सुनवाई के लिए हाईकोर्ट को भेज दिया है।