बिहार एसआईआर: मीडिया रिपोर्ट के आधार पर जवाब नहीं, सुप्रीम कोर्ट का ईसी पर सख्त रुख

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार SIR से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट के आधार पर चुनाव आयोग से जवाब मांगने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि बिना हलफनामे के केवल समाचार रिपोर्ट पर कार्रवाई गलत मिसाल होगी। एनजीओ को तथ्यों के साथ औपचारिक रूप से आरोप दर्ज कराने के निर्देश दिए गए हैं।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 16 December 2025, 8:57 PM IST
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New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि केवल मीडिया रिपोर्ट के आधार पर किसी संवैधानिक संस्था से जवाब तलब करना एक गलत मिसाल कायम करेगा। शीर्ष अदालत ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर दायर एक याचिका पर चुनाव आयोग से जवाब मांगने से इनकार कर दिया। यह याचिका गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से दाखिल की गई थी।

मीडिया रिपोर्ट पर आधारित याचिका पर सख्त रुख

भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने स्पष्ट किया कि अदालतें केवल अखबारों में प्रकाशित रिपोर्टों के आधार पर किसी संस्था को कटघरे में खड़ा नहीं कर सकतीं। पीठ ने कहा कि ऐसा करना न केवल न्यायिक प्रक्रिया के विपरीत होगा, बल्कि इससे भविष्य में गलत परंपरा भी स्थापित हो सकती है।

एनजीओ को हलफनामा दाखिल करने की सलाह

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता एनजीओ को यह स्पष्ट निर्देश दिया कि यदि वे मीडिया रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों को गंभीर मानते हैं, तो उन्हें तथ्यों के साथ एक औपचारिक हलफनामा दाखिल करना चाहिए। अदालत ने कहा कि जब तक आरोपों को विधिवत रिकॉर्ड पर नहीं लाया जाता, तब तक चुनाव आयोग से प्रतिक्रिया नहीं मांगी जा सकती।

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वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने आरोपों का किया खंडन

चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने एनजीओ द्वारा मीडिया रिपोर्ट पर निर्भर रहने पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि अखबार में छपी खबर के आधार पर चुनाव आयोग को अदालत में जवाब देने के लिए बुलाना अनुचित है। द्विवेदी ने यह भी स्पष्ट किया कि मीडिया रिपोर्ट में लगाए गए आरोप तथ्यात्मक रूप से गलत हैं।

नोटिस जारी करने को लेकर उठा विवाद

याचिका में दावा किया गया था कि बिहार में एसआईआर के दौरान मतदाताओं के नाम हटाने के लिए लाखों पूर्व-भरे नोटिस केंद्रीय स्तर पर जारी किए गए। एनजीओ का आरोप था कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत ऐसे नोटिस जारी करने का अधिकार केवल स्थानीय निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी को है, न कि केंद्रीय प्राधिकरण को।

चुनाव आयोग का पक्ष

वरिष्ठ अधिवक्ता द्विवेदी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि सभी नोटिस संबंधित जिला चुनाव अधिकारियों की ओर से ही जारी किए गए थे। उन्होंने अदालत को बताया कि इस मामले में चुनाव आयोग ने निर्धारित कानूनी प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया है और किसी भी स्तर पर अधिकारों का उल्लंघन नहीं हुआ है।

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प्रशांत भूषण ने जताई गंभीर चिंता

एनजीओ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अदालत में दलील दी कि मीडिया रिपोर्ट में उठाए गए सवाल बेहद गंभीर और चिंताजनक हैं। उन्होंने कहा कि यदि ये आरोप सही पाए जाते हैं, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया और मतदाता अधिकारों पर सीधा प्रहार होगा। भूषण ने आग्रह किया कि चुनाव आयोग को इन आरोपों पर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट टिप्पणी

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने इस पर कहा कि न्यायालय स्थापित प्रक्रियाओं का पालन करता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक कोई पक्ष हलफनामे के माध्यम से तथ्यों को रिकॉर्ड पर नहीं लाता, तब तक अदालत दूसरे पक्ष से जवाब मांगने के लिए बाध्य नहीं हो सकती। अदालत ने दोहराया कि मीडिया रिपोर्ट स्वयं में सबूत नहीं मानी जा सकती।

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Published : 
  • 16 December 2025, 8:57 PM IST