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सोनभद्र की बिल्ली-मारकुंडी खदान हादसे में रेस्क्यू अभियान पूरा हो गया। सात मजदूरों के शव बरामद किए गए, अब मलबे में किसी के फंसे होने की संभावना नहीं। प्रशासन ने रेस्क्यू बंद करने की घोषणा की।
बिल्ली-मारकुंडी खदान हादसा
Sonbhadra: उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के बिल्ली-मारकुंडी क्षेत्र में पत्थर की खदान में हुए दर्दनाक हादसे में रेस्क्यू ऑपरेशन पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। जिलाधिकारी बद्रीनाथ सिंह और पुलिस अधीक्षक अभिषेक वर्मा ने संयुक्त रूप से घटनास्थल पर रेस्क्यू बंद करने की घोषणा की। प्रशासन ने हादसे से जुड़ा बड़ा अपडेट जारी किया है।
जिले के ओबरा थाना क्षेत्र स्थित बिल्ली-मारकुंडी के कृष्णा माइनिंग वर्क्स में शनिवार दोपहर खदान हादसा हुआ। शनिवार शाम से लेकर सोमवार दोपहर तक रेस्क्यू अभियान चला। एसडीआरएफ, एनडीआरएफ और अन्य टीमों ने मलबे में फंसे लोगों को खोजने का अभियान चलाया। चुनौतीपूर्ण कार्य के बाद मलबे से कुल सात शव बरामद किए गए।
इनमें से छह मृतकों की पहचान हो गई और उनका अंतिम संस्कार पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में संपन्न कराया गया। एक मृतक मजदूर का शव क्षत-विक्षत होने के कारण पहचान में दिक्कत आई।
रेस्क्यू में शामिल टीमों का कहना है कि मलबे के नीचे अब किसी और शव के होने की संभावना नहीं है। डॉग स्क्वाड टीम ने भी मौके का बारीकी से निरीक्षण किया। डीएम बद्रीनाथ सिंह ने बताया कि रेस्क्यू में देरी का मुख्य कारण एक विशाल चट्टान थी, जिसे हटाने में समय लगा। सभी शवों का पोस्टमार्टम कराने के बाद परिजनों को सौंप दिया गया।
डॉग स्क्वायड रेस्क्यू
पुलिस अधीक्षक अभिषेक वर्मा ने बताया कि रेस्क्यू अभियान 15 तारीख शाम 6:00 बजे से 18 तारीख दोपहर तक चला। इसमें एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और निजी कंपनियों की टीमों ने भाग लिया। बड़ी चट्टान को हटाकर वैकल्पिक मार्ग बनाकर रेस्क्यू सफलतापूर्वक संपन्न किया गया।
मृतक मजदूरों के परिजनों की तहरीर पर खदान मालिक और उनके सहयोगियों के खिलाफ ओबरा थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है। मामले की विवेचना ओबरा सीओ कर रहे हैं और दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
जिलाधिकारी बद्रीनाथ सिंह घटनास्थल पर
सोनभद्र खदान हादसा: अब तक 5 मजदूरों की मौत, असली जिम्मेदार कौन?
जिले के बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में हुआ यह हादसा सुरक्षा नियमों और प्रशासनिक लापरवाही पर कई सवाल खड़ा करता है। 2012 में भी इसी खदान क्षेत्र में हादसा हो चुका है। बावजूद इसके मजदूरों की सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाता। नियम कानून को ताक पर रखकर मजदूरों की जान जोखिम में डाली जाती है।
आदिवासी और गरीब इलाके होने के कारण मजदूर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, जिससे खदान मालिक नियमों को नजरअंदाज करते हैं। खनन विभाग और जिला प्रशासन की लापरवाही भी ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देती है।