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मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट फिर से राजनीति के केंद्र में आ गई है, क्योंकि इस सीट से समाजवादी पार्टी के विधायक सुधाकर सिंह का असामयिक निधन हो गया है।
Ghosi विधानसभा सीट पर सपा और बीजेपी आमने-सामने
New Delhi: घोसी से सपा विधायक सुधाकर सिंह ने 2023 में हुए उप-चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी और यूपी के कैबिनेट मंत्री दारा सिंह चौहान को 42 हजार से अधिक वोटों के बड़े अंतर से मात दी थी।
गुरुवार को एक अस्पताल में इलाजरत सुधाकर सिंह के निधन के बाद सीट खाली हो गई है और छह महीने के अंदर उप-चुनाव कराना कानूनन जरूरी है।
ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि जब राज्य में 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं, क्या इस समय में उप-चुनाव कराया जाएगा? अगर उपचुनाव कराया जाता है तो कौन-सी बड़ी पार्टियां चुनावी मैदान में होंगी और किन नेताओं को टिकट दिया जाएगा। इन सब बातों को लेकर चर्चाओं का दौर शुरु हो गया है।
सुधाकर सिंह स्थानीय स्तर पर काफी लोकप्रिय थे और किसान-दलित समुदाय में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती थी। उनके निधन से सपा में शोक की लहर है और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है। 2023 के उप चुनाव में उनकी बड़ी जीत ने उनके लोकप्रियता की गवाही दी थी।
UP News: सपा विधायक सुधाकर सिंह का निधन, अखिलेश यादव ने नम आंखों से दी श्रद्धांजलि
घोसी सीट पर अब सपा और बीजेपी के बीच फिर से सीधी भिड़ंत की संभावना है क्योंकि पिछली बार इन्हीं दो प्रमुख दलों ने मुकाबला किया था। सपा के लिए यह अहम सीट है, क्योंकि सुधाकर सिंह की जीत को पूर्वांचल में उनकी पकड़ मजबूत करने वाला मॉडल माना गया था।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव (फोटो सोर्स गूगल)
अभी तक उप-चुनाव की तिथि तय नहीं हुई है, लेकिन नियम के मुताबिक, छह महीने के अंदर इसे कराना होगा। यह उप-चुनाव 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले होने जा रहा है, इसलिए यह बड़े चुनाव से पहले दलों की रणनीति और ताकत का एक छोटा ‘शक्ति परीक्षण’ बन सकता है।
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सुधाकर सिंह की निभाई भूमिका देखते हुए, सपा उस वोट बैंक को फिर से मजबूत करना चाहेगी जो पिछली बार उनके साथ खड़ा था। बीजेपी के लिए यह मौका है कि वह पिछली हार से सबक लेकर इस सीट को जीत कर सपा की छवि को चुनौती दे सके।
सपा के लिए यह चुनौती होगी कि वे सुधाकर सिंह के करिश्माई नेतृत्व के बिना कैसे अपनी पकड़ बनाए रखें। जबकि बीजेपी को ध्यान देना होगा कि पिछले हार में क्या गलत हुआ था और उसे उन मुद्दों पर काम करना होगा ताकि मतदाता दोबारा उसके समर्थन में आएं।
आने वाले उप-चुनाव में सपा और बीजेपी के बीच कड़ा मुकाबला हो सकता है। यह सिर्फ एक सीट की लड़ाई नहीं है- यह पूर्वांचल में दोनों दलों की ताकत, रणनीति और जनसमर्थन की परीक्षा भी है।