

यूपी विधानसभा के चुनाव होने में अभी 18 महीने का वक्त है लेकिन चुनावी चौसर अभी से बिछनी शुरू हो गई है। The MTA Speaks में देखिए यूपी की राजनीति का सटीक विश्लेषण
इटावा कथाकांड पर बवाल
इटावा: यूपी में विधानसभा के चुनाव होने में अभी 18 महीने का वक्त है लेकिन चुनावी चौसर अभी से बिछनी शुरू हो गई है। राज्य का राजनीतिक तापमान धीरे-धीरे नहीं बल्कि अचानक उबाल पर आ गया है। भाजपा और समाजवादी पार्टी आमने-सामने हैं, लेकिन इस बार सिर्फ भाषणों और वादों को लेकर नहीं—बल्कि जमीन पर जातीय और सांस्कृतिक ध्रुवीकरण की नई रणनीति पर लड़ाई छिड़ चुकी है। घटनाएं एक के बाद एक घट रही हैं। विवाद उभर रहे हैं, पुराने घाव कुरेदे जा रहे हैं, और बीच-बीच में कुछ नए मोहरे भी सामने आ रहे हैं—जिनमें से दो सबसे चर्चित नाम हाल ही में सामने आए हैं: 'अहीर रेजीमेंट' और 'ब्राह्मण महासभा'। इन घटनाओं के तार कहीं न कहीं करणी सेना के पुराने उग्र आंदोलनों से भी जुड़ते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने शो The MTA Speaks में बताया, यह विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब इटावा जिले के दांदरपुर गांव में एक भागवत कथा का आयोजन हुआ, जिसमें दो कथावाचकों के साथ कथित तौर पर मारपीट की गई। इनमें से एक कथावाचक ने जातिगत पहचान को लेकर हो रही टिप्पणी को लेकर आपत्ति जताई थी। इस घटना ने देखते ही देखते तूल पकड़ लिया। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुए और मामला सियासी रंग लेने लगा। गगन यादव के नेतृत्व में 'अहीर रेजीमेंट' नाम का समूह सक्रिय हुआ, जो खुद को यादव समुदाय के स्वाभिमान का रक्षक बताता है। इस संगठन ने यादव महासभा जैसे संगठनों के साथ मिलकर कथावाचकों के विरोध में प्रदर्शन शुरू कर दिया।
दूसरी ओर, 'ब्राह्मण महासभा' ने आरोप लगाया कि कथावाचकों के साथ हिंसा उनकी जातीय पहचान के कारण की गई और यह पूरे ब्राह्मण समाज का अपमान है। इसी बीच एक गुट ने इटावा में प्रदर्शन प्रारंभ कर दिया, पुलिस ने लाठीचार्ज किया, हवाई फायरिंग की गई और कई लोगों को हिरासत में लिया गया। इस दौरान 'अहीर रेजीमेंट' के कार्यकर्ता स्थानीय प्रशासन और पुलिस पर भी हमलावर दिखे।अब आपको बताते हैं गगन यादव कौन है? मेरठ का रहने वाला गगन यादव खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताता हा। वह 'इंडियन रिफॉर्मर्स' नामक संस्था के अध्यक्ष है और सेना में 'अहीर रेजीमेंट' बनाने की मांग को लेकर लंबे समय से आंदोलनरत है। हालांकि उन पर यह भी आरोप है कि वे राजनीतिक रूप से भाजपा की ओर झुके हुए हैं। उनके भाजपा नेताओं के साथ के फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुए हैं। मगर गगन यादव ने इन आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि वे किसी भी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े हैं।
परियोजना के नाम पर सड़क चौड़ीकरण
यहां एक खास बात यह भी सामने आई कि भाजपा और सपा दोनों ही इस मुद्दे पर अपनी-अपनी चाल चल रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे जातीय हिंसा का नाम देकर विपक्ष पर हमला बोला, वहीं अखिलेश यादव ने इसे 'पीडीए' यानी पिछड़ा, दलित और वंचित वर्ग के खिलाफ सरकार प्रायोजित भेदभाव करार दिया। इस मुद्दे पर दोनों दलों की बयानबाजी से साफ है कि जातिगत राजनीति का मुद्दा अभी आगे और तूल पकड़ेगा। अब बताते हैं दो दिन पहले गोरखपुर की उस घटना के बारे में, जिसने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक और बड़ा विवाद खड़ा कर दिया। गोरखपुर शहर के बीचों-बीच स्थित अलीनगर के घने आबादी वाले इलाके में विरासत गलियारा परियोजना के नाम पर सड़क चौड़ीकरण किया जा रहा है।
गोरखपुर वासियो को जमीन का मुआवजा नहीं..
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि आदित्यनाथ शहर के विधायक हैं बावजूद इसके गोरखपुर वासियो को जमीन का मुआवजा नहीं दिया जा रहा है और बिना मुआवजे के सरकार जबरन दुकान-मकान ध्वस्त करने पर आमादा है। खानापूर्ति के नाम पर भवन के निर्माण को गिराने का पैसा दिया जा रहा है लेकिन वह भी ऊंट के मुंह में जीरे के समान, इसका विरोध कई दिनों से पीड़ित नागरिक कर रहे हैं। इन्हीं पीड़ितों से मिलने नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय गोरखपुर पहुंचे थे। इस प्रतिनिधिमंडल में पूर्व मंत्री, स्थानीय विधायक और पार्टी प्रवक्ता भी शामिल थे। मगर जब यह प्रतिनिधिमंडल गलियारे का निरीक्षण करने पहुंचा, तो वहां पहले से मौजूद भाजपा कार्यकर्ताओं ने बुलडोजर और जेसीबी लेकर उनका रास्ता रोक लिया।
करणी सेना के विवाद की लोग जमकर चर्चा
भाजपा नेताओं का कहना था कि यह सरकार की उपलब्धि है और विपक्ष को इसे देखने का हक नहीं है। इस पर सपा नेताओं ने विरोध किया और देखते ही देखते दोनों पक्षों में धक्का-मुक्की, नारेबाजी और मारपीट शुरू हो गई। गाड़ियां तोड़ी गईं, पुलिस ने बीच-बचाव किया और कुछ समय के लिए पूरा इलाका छावनी में बदल गया। इटावा कथा कांड के बीच, पिछले साल हुए करणी सेना के विवाद की लोग जमकर चर्चा कर रहे हैं। यह मामला तब गरमा गया जब लोकसभा चुनावों से ठीक पहले करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने देशभर में उग्र प्रदर्शन शुरू कर दिए। वजह बनी फिल्म 'पद्मावत' और कुछ राजनीतिक बयानों को लेकर करणी सेना की नाराजगी। राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कई शहरों में करणी सेना ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किए। जयपुर में तो एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान करणी सेना के प्रवक्ता ने टीवी डिबेट में तलवार निकाल ली थी। आगरा में तो पुलिस को करणी सेना के कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज करना पड़ा।
चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा
करणी सेना की मांगें ऐतिहासिक तथ्यों की शुद्धता और राजपूत गौरव की रक्षा से जुड़ी हुई थीं, मगर इन प्रदर्शनों ने कई बार कानून व्यवस्था को चुनौती दी। यूपी में लोकसभा चुनावों के दौरान आगरा, अलीगढ़ और वाराणसी में करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने राजमार्ग बंद किए, पुतले जलाए और कई जगहों पर तो सरकारी संपत्ति को नुकसान भी पहुंचाया।पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई पर करणी सेना ने मानवाधिकार आयोग में शिकायत की और आरोप लगाया कि राजपूत समाज को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है। वहीं भाजपा इस मामले में बैकफुट पर नजर आई, क्योंकि उसका परंपरागत क्षत्रिय वोटबैंक करणी सेना की कार्यवाहियों से प्रभावित था। करणी सेना के लोगों ने सपा के दलिल सांसद रामजी लाल सुमन के घर पर हमला बोला और जमकर तांडव मचाया। ये मामला लंबे वक्त तक जातिगत सुर्खियों में बना रहा।इन तीनों घटनाओं को एक साथ देखने पर साफ है कि उत्तर प्रदेश में जातीय और सांस्कृतिक पहचान को लेकर सियासी मोर्चाबंदी तेज हो चुकी है। 'अहीर रेजिमेंट' और 'ब्राह्मण महासभा' जैसे सामाजिक संगठन, करणी सेना जैसी सांस्कृतिक संस्था, और इन सब के बीच सरकार व विपक्ष का राजनीतिक दांव-पेंच अब चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा बन चुका है। भाजपा जहां हिंदुत्व और विकास को अपनी ताकत बता रही है, वहीं समाजवादी पिछड़ों, दलितों, वंचितों तथा अल्पसंख्यकों के साथ सरकार के संरक्षण में हो रहे अन्याय के खिलाफ पीडीए को एकजुट कर जनता तक पहुंचने की कोशिश कर रही है।
भावनाओं की लकीरें खींचकर वोट बटोरने का अभियान
यह सारा घटनाक्रम यह बताता है कि उत्तर प्रदेश में आने वाले दिनों में विकास, कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी जैसे मुद्दे नहीं चलेंगे, बल्कि पहचान की राजनीति—चाहे वो जाति की हो या धर्म की—यही सबसे बड़े नैरेटिव के रूप में उभरेगी। और यही बात 'The MTA Speaks' पर हम अपने दर्शकों को तथ्य और प्रमाणों के साथ बता रहे हैं कि राजनीति अब भावनाओं की लकीरें खींचकर वोट बटोरने के अभियान में तब्दील हो चुकी है, जहां वास्तविक मुद्दे हाशिए पर जा रहे हैं और दिखावटी संघर्ष नए नेता पैदा कर रहे हैं। जनता को सतर्क रहना होगा, क्योंकि यह समय केवल देखने का नहीं, समझने का है कि वाकई कौन किसके साथ खड़ा है।