The MTA Speaks: संसद का मानसून सत्र चढ़ा हंगामें की भेट…125 करोड़ का हुआ नुकसान, कौन जिम्मेदार? देखें विश्लेषण

संसद का मानसून सत्र 2025 हंगामे और टकराव में बीता।120 घंटे तय काम में सिर्फ 37 घंटे काम हुआ और करीब 125 करोड़ रुपये का नुकसान। वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिवड़ेवाल आकाश ने संसद के मानसून सत्र  को लेकर अपने चर्चित शो The MTA Speaks में गहन विश्लेषण किया।

Post Published By: Deepika Tiwari
Updated : 22 August 2025, 5:48 PM IST
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नई दिल्ली:  संसद का मानसून सत्र गुरुवार को अनिश्चितकाल के लिये स्थगित हो गया। यह सत्र भले ही विधायी दृष्टि से सफल दिखाई दे लेकिन राजनीतिक और लोकतांत्रिक दृष्टि से इसे अधूरा ही माना जा रहा है। भारतीय संसदीय इतिहास में यह सत्र फिर एक मिसाल बन गया है कि किस प्रकार विधायी कामकाज तो हुआ लेकिन स्वस्थ लोकतांत्रिक संवाद और बहस लगभग गायब रही। भारत की संसदीय परंपरा खुलकर चर्चा करने और विपक्ष की बात सुनने की रही है, लेकिन अब का चलन आरोप-प्रत्यारोप और शोर-शराबे का होता जा रहा है। इस सत्र ने इस प्रवृत्ति को चरम सीमा तक पहुँचा दिया।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिवड़ेवाल आकाश ने संसद के मानसून सत्र  को लेकर अपने चर्चित शो The MTA Speaks में गहन विश्लेषण किया।

21 जुलाई से शुरू होकर 21 अगस्त तक चलने वाला यह मानसून सत्र कुल एक महीने के लिये तय था। लोकसभा की कार्यवाही के लिये कुल 120 घंटे का समय नियत किया गया था। लेकिन विपक्ष के विरोध, लगातार हंगामे, पोस्टरबाजी और नारेबाजी के चलते इस बार केवल 37 घंटे ही काम हो सका। यानी लगभग 83 घंटे का नुकसान हुआ। अगर इसे आर्थिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो संसद में एक मिनट की कार्यवाही पर औसतन 2.5 लाख रुपये खर्च होते हैं। इस तरह एक घंटे का खर्च डेढ़ करोड़ रुपये से ज्यादा बैठता है। इस हिसाब से इस मानसून सत्र में देश की अर्थव्यवस्था को लगभग 125 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

12 लोकसभा से और 14 राज्यसभा से पारित...

फिर भी सरकार की तरफ से 26 विधेयक पारित करवा लिये गए। इनमें से 12 लोकसभा से और 14 राज्यसभा से पारित हुए। लेकिन कई विधेयक बिना बहस के पास हुए, जिस पर विपक्ष ने गंभीर आपत्ति जताई। लोकसभा में जिन विधेयकों को मंजूरी मिली, उनमें आयकर संशोधन विधेयक 2025, कर कानून संशोधन विधेयक, मर्चेंट शिपिंग बिल, भारतीय बंदरगाह विधेयक, राष्ट्रीय खेल संचालन विधेयक, राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग संशोधन विधेयक, भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) संशोधन विधेयक और ऑनलाइन गेमिंग प्रमोशन एवं रेगुलेशन विधेयक प्रमुख हैं। इनमें से ऑनलाइन गेमिंग बिल को लेकर खासा विवाद हुआ। वहीं राज्यसभा में इंडियन पोर्ट्स बिल और गुवाहाटी में नए आईआईएम की स्थापना से संबंधित संशोधन बिल प्रमुख माने गए।
इस सत्र की शुरुआत से ही टकराव का माहौल बन गया था। विपक्ष ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले और नौसेना के ऑपरेशन सिंदूर पर तत्काल चर्चा की मांग उठाई। विपक्ष का कहना था कि देश की सुरक्षा से जुड़ी घटनाओं पर सरकार को सदन में विस्तृत बयान देना चाहिए। लेकिन सरकार ने इसे बाद में चर्चा के लिये टाल दिया। इसी से विपक्ष भड़क उठा और नारेबाजी शुरू हो गई। हंगामे की यह स्थिति सत्र के लगभग हर दिन बनी रही।

विपक्षी नेताओं को जेल भेजकर...

सबसे अधिक विवाद बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर हुआ। विपक्ष ने इसे मतदाता सूची में गड़बड़ी और चुनावी धांधली की तैयारी बताया। इस मुद्दे पर लगातार नारेबाजी, पोस्टरबाजी और वॉकआउट होते रहे। कई बार कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। बिहार का यह मुद्दा पूरे सत्र पर हावी रहा और अन्य विधायी कार्य भी बाधित हुए।
राजनीतिक हलचल तब और तेज हो गई जब सत्र के अंतिम दिन से ठीक पहले गृह मंत्री अमित शाह ने तीन अहम विधेयक पेश किये। इनमें संविधान का 130वां संशोधन विधेयक, संघशासित प्रदेश संशोधन विधेयक और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक शामिल थे। इन विधेयकों में यह प्रावधान किया गया कि अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई मंत्री किसी गंभीर आपराधिक मामले में 30 दिनों से अधिक हिरासत में रहता है तो उसे पद छोड़ना होगा। सरकार का कहना था कि यह कदम राजनीति को अपराधमुक्त करने की दिशा में बेहद जरूरी है और इससे भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी। लेकिन विपक्ष ने इसे सत्ता के दुरुपयोग का नया हथियार बताया। विपक्षी सांसदों ने कहा कि इन प्रावधानों का इस्तेमाल खास तौर पर विपक्षी नेताओं को जेल भेजकर उनकी सदस्यता और पद खत्म करने के लिये किया जायेगा।

बिल विरोध के बीच पारित...

नतीजा यह हुआ कि विपक्षी सांसदों ने सदन में विधेयक की प्रतियां फाड़ दीं, कागज उछाले और जोरदार नारेबाजी की। माहौल इतना गर्मा गया कि अंततः सरकार को ये बिल संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजने पर सहमत होना पड़ा। इसके अलावा, ऑनलाइन गेमिंग प्रमोशन और रेगुलेशन विधेयक पर भी खासा हंगामा हुआ। सरकार ने कहा कि यह कानून युवाओं को सुरक्षित वातावरण में गेमिंग सुविधा देने और इस उभरते उद्योग को नियंत्रित करने के लिये जरूरी है। इसके तहत ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों को कानूनी ढांचे में लाया जायेगा। विपक्ष का कहना था कि इससे युवाओं में नशे और बेरोजगारी की समस्या और गहराएगी। फिर भी यह बिल विरोध के बीच पारित हो गया।

इंडियन पोर्ट्स बिल इसका सबसे बड़ा उदाहरण

इस सत्र में कुछ और छोटे लेकिन महत्वपूर्ण विधेयक भी पारित हुए, जैसे मणिपुर से जुड़े कर संशोधन विधेयक, गोवा विधानसभा सीटों का पुनर्समायोजन, और राष्ट्रीय खेल संचालन से जुड़ा बिल। लेकिन इन पर गहन चर्चा नहीं हो सकी। विपक्ष का लगातार आरोप रहा कि सरकार संसद को “लॉ पिलाने वाली मशीन” की तरह चला रही है — बहस किये बिना सीधे कानून पास करवाये जा रहे हैं।राज्यसभा की स्थिति भी लगभग वैसी ही रही जैसी लोकसभा की। बिहार SIR और विवादित विधेयकों को लेकर वहां भी वॉकआउट, नारेबाजी और बहिष्कार होते रहे। कई महत्वपूर्ण बिल विपक्ष की अनुपस्थिति में ही पारित हो गये। इंडियन पोर्ट्स बिल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

खिलाफ और जनहित की अनदेखी वाला सत्र

मानसून सत्र 2025 की सबसे बड़ी विडंबना यही रही कि विधेयक तो बड़ी संख्या में पारित हो गये, लेकिन लोकतांत्रिक विमर्श और जनता की आवाज़ संसद से लगभग गायब रही। महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे सीधे जनता से जुड़े विषयों पर कोई ठोस और गहन बहस नहीं हुई। संसद, जिसे लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है, वह एक राजनीतिक अखाड़े में तब्दील होकर रह गई। अब सवाल यह है कि क्या संसद वास्तव में जनता की आवाज़ को प्रतिनिधित्व दे रही है या केवल सत्ता और विपक्ष के बीच संघर्ष का मंच बनकर रह गई है। सरकार इस सत्र को विधायी उपलब्धियों के लिहाज से सफल बता रही है, वहीं विपक्ष इसे लोकतांत्रिक परंपराओं के खिलाफ और जनहित की अनदेखी वाला सत्र बता रहा है।

संसद की असली ताकत विधेयक पारित..

सच यह है कि संसद की उत्पादकता और जनता की अपेक्षाओं के बीच की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। यही वजह है कि विशेषज्ञ भी इस सत्र को एक चेतावनी की तरह देख रहे हैं कि अगर संसद में संवाद और बहस की परंपरा बहाल नहीं हुई तो लोकतंत्र की आत्मा कमजोर होगी। संसद की असली ताकत विधेयक पारित करने में नहीं, बल्कि जनप्रतिनिधियों की खुली बहस में है, जिससे देश की दिशा और दशा तय होती है।

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